Friday, April 17, 2009

२१म् शताब्दीक मैथिल

जे चाही से दऽ देव

हँ कऽ देव
आहाँके जे चाही से दऽ देव ।
नईं छोडू अप्पन आश
करु हमरा पूर्ण विश्वास
चिन्हि लिय हमरा, हम शुद्ध मैथिल छी,
प्राणे जँ लऽ लेब, तखनो ई कहैत रहब
हँ कऽ देव, आहाँके जे चाही से दऽ देव ।

यौ हम २१म् शताब्दीक मैथिल छी ।
हमरा नीक जकाँ बुमmल अछि, जे
माय—बाबु हमरा, हमरालेल नईं जन्मौलक
हम त जनमि गेलहुँ ।
ओतऽ, हमरे बुद्धिए छल विलक्ष्ण जे
हम कहुना कऽ पढि लेलहुँ ।
मूदा, ई हम्मर अप्पन गप्प अछि ।
बिनु जनेनही आहाँके जेब खाली हम कलेब
हँ कऽ देव, आहाँके जे चाही से दऽ देव ।

हमही छी नेता जौं मिथिलाके बात करब
काज करु आहाँ, हम योजना बनवऽमे रहब
नेता ओ समाजसेवी छी तेँ कोनाकऽ देब हम चन्दा
पाई, परिश्रम छोडिकऽ जे चाही दऽदेव
हँ कऽ देव, आहाँके जे चाही से दऽ देव ।

हम ओ मैथिल थोरबे छी जे सागपात खाइत रहब
आधुनिक युग छई तेँ, भोर साँमm मधुशाला जाइत रहब
खेतमें काज हम कोना करब, लिल—टिनोपाल चढौने छी
माथ मुडाकऽ दोसरके खेलहुँ, ओकरे पान दबौने छी
काज कियो करे, जस हमही लऽलेब
हँ कऽ देव, कआहाँके जे चाही से दऽ देव ।


मनोज झा मुक्ति

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