Monday, September 7, 2009

देशक अवस्‍था आ जनताक प्रवृति

— मनोज झा मुक्‍ति

एखनुक परिवेशमे ककरोसँ पुछियौक देशक अवस्‍था केहन अछि ? त, कहता किकहू सभ ठाम भ्रष्‍टाचारे भ्रष्‍टाचार व्‍याप्‍त अछि । देशक नेता भ्रष्‍ट, कर्मचारी तन्‍त्रभ्रष्‍ट, पत्रकारिता जगत भ्रष्‍ट, व्‍यापारी भ्रष्‍ट...आर किदन किदन...सभचीज भ्रष्‍टेभ्रष्‍ट, तहन देशक स्‍थितिके कि कहबैक...। देशक स्‍थिति निश्‍चितरुपेण नीक त नहिंए अछि, मुदा एकर दोषी के ? सभजौं भ्रष्‍टाचारिए अछि त नीक व्‍यक्‍ति केओ नहिं ? आ देशक जनता कि दूधकधोएल अछि ? सबकेँ एकवेर अपना छातीपर हाथ राखिकऽ सोंचहिटा पड़त । आखिरकिया देशक हालति एहि तरहें दिनानुदिन खसकैत जाऽरहल अछि ? देशमें सब तरहक लोक हाएव कोनो आश्‍चर्यक गप्‍प नहिं ।

सबहक कहब ईछन्‍हि जे सभक्षेत्रमे भ्रष्‍टाचारीए लोकक चलाचल्‍ती छैक । अईसँ असहमत बहुतकम्‍मेगोटे हएता । मुदा यहो सत्‍ये छैक जे सत्‍यक बाटपर धिरे—धिरे आगा ससरैतलोक सेहो अई देशमे अछि । हँ, सत्‍यवादी धारमे लागल खाँटी राष्‍ट्रवादी सभकसँख्‍या बहुत कम अछि आ दिनानुदिन ओहि सँख्‍यामे ह्रास होइत जाऽरहल अछि ।तकर कारण कि ? जौं स्‍पष्‍टरुपसँ कहल जाए त दशक एहि परिस्‍थितिक जिम्‍मेवार आन केओनहिं, हमहि आँहाँ छी । हमही आँहाँ देशक नेताके, व्‍यापारी आ कर्मचारीकेँभ्रष्‍टाचारी बनावि रहल छियैक । हम आँहाँ एकटा नेताके भ्रष्‍टाचार करबालेल विवश कऽ दैत छियैक । जौंगाममे एकटा कोनो नेता साइकलपर चढिकऽ अवैत अछि या पैदल अवैत अछि तओकरा देखबाकले कोना जनता नहिं जाइत छियैक ।

एतवे नहिं ओई नेताकेअपना दरबज्‍जापर बैसऽदेवमें सेहो हमसब अपनाआपके हीन महशुस करैत छी । आ हमरे आँहाँक गाममे जौं एकटा नेता महँग गाड़ीमे चढिकऽ अवैत अछि त ओकरापाछा या कहु स्‍वागत करबाकलेल माइए पुते दौड़ैत छियैक, ओकरा अपनादरबज्‍जापर बैसबऽमे हमसब अपनाके गर्वान्‍वित भेल अनुभूति करैत छी । चुनावकसमयमे कतबो सकारात्‍मक सोंंचवला नेता किएक नहिं हुअए ओकरा भोंट देवाकबदलामें हमसब मतपत्रमे अपन जातिक उम्‍मेदवारके चिन्‍हमे मोहर लगवैत छी ।ओतवे नहिं अपन मतक महत्‍वके बुझितो हमसब अपना मतके पाई लऽ कऽ बेचि दैतछियैक जकर कारणसँ जकरालग अपन जातिक जनसँख्‍या वेसी अछि आ वेसी पाई अछिवएह नेता चुनाव जितैत छथि । कि हमर आँहाँक एहि तरहक व्‍यवहार एकटा नेताकेँभ्रष्‍ट बनवाकलेल विवश नहिं करैत छैक ।

जौं जातिक नामपर केओ जितैत अछि तओ अपना जातिक वाहेक आन जनताके वारेमे किया सोंचत ? आ अपना जातिकलेलसेहो किछु नहिं कऽसकैया, कियाक त ओ ई नीक जकाँ बुझने रर्हैत अछि जेअपना जातिकलेल हम काज नहिंयो करब तखनो हमर जाति हमरा भोंट देबेटा करत। आ ओ जे पजेरोबला नेता आ पाईबला नेताक तुलनामें अपनाके निरीहबुझैत अछि, ओहो हमरा आँहाँक सामिप्‍यता पएवाकलेल आ चुनाव जीतवाकलेलपाईएके अपना जीवनक सभसँ पैघ लक्ष्‍य बुझि ‘एनि हाउ, पाई कमाऊ’ के नीतिअवलम्‍वन कऽलैत अछि । आ जखन ओ पाइएक बलपर हमरआँहाँक भोट लेत त कियाहमरा आँहाँक विकासकलेल ओ सोंचताह ?

तहिना देशक कर्मचारिके हमही आँहाँसब अपन काज जल्‍दीसँ जल्‍दी करेबाकलेलया कानूनन नहिंयो होबऽवला काज गैरकानूनन रुपसँ करेबाकलेल घुस देल करैतछियैक आ एहिं तरहें एकटा कर्मचारीकेँ जवरदस्‍ती हमसब भ्रष्‍टारी बना दैत छियैक। ओनो कर्मचारीयो खासकऽ एकटा पुलिसमे जेबाकलेल हाकिम एकलाख टका लेलकरैत छैक, हाकिमके डाइरेक्‍टर बनेवाकलेल मन्‍त्रीद्वारा लाखो रुपैया घूस लेल जाइतछैक । जहन ओ कर्ज पैंच लऽ कऽ बहाल भेल रहैत छैक त कोनो बहन्‍ने कमेबेटाकरतैक । एकटा व्‍यापारीकेँ काला बाज़ारी करबामे सेहो हमसब अपने बहुत बेसीदोषी छी । हमसब बुझितो रहैत छि तइयो ओकर विरोधमे बजबाक हिम्‍मत नईकरैत छियैक ? हमरा आँहाँलेल के बाजि देत ? ककरो लग ओतेक फुरसति नहिंछैक ।

हमसब सबके भ्रष्‍टाचारी त कहैत छियैक, मुदा अपन टेटर नहिं देखैत छी ।सरकार अपन गाम अपने बनाबु कहिकऽ प्रत्‍येक गाममे १५ सँ ३० लाखधरि रुपैयाप्रतिवर्ष देल करैत अछि । गामक विकास कतेक भेल छैक, विशेषकऽ मधेशमे सेककरोसँ छुपल नहिं अछि । सभ पार्टीक प्रतिनिधिसब अपन बपौटी(पैत्रृक) सम्‍पतिबुझि खुलेआम लुटैत अछि आ हम आँहाँ मौन भऽ सबकिछु देखैत रहैछी । जौंकियो व्‍यक्‍ति ओइ काजक विरोध करैत छैक त हमहि आँहा केओ पार्टीक नामपर,केओ जातिक नामपर ओहन भ्रष्‍टाचारीकेा दूधक धोएल बनाऽदैत छियैक ।

ओहनभ्रष्‍टाचारीकलेल पार्टीयोसब अपन प्रतिष्‍ठाधरि दाओपर लगा दैत अछि ओकराबँचवऽमें । एकरा अरिक्‍त जे किछु कोनो गामठाममे जौं छोटछीन विकासक काजहोइत अछि त ओकरा विनाश करबामें हमसब बहादुरी बुझैत छी । अपना घरकअगााक सडकपर राखलगेल ग्राभेलक पाथर अपना घरमे घुसियाबऽमे त हमरा सबकेजोरा सम्‍भवतः कतौ नहिं भेटत । एतेक धरि कि सरकार विद्यालयसबके व्‍यवस्‍थित करबाकलेल अपनेगामक स्‍थानियव्‍यक्‍तिक अनुसारे चलेवाकलेल विद्यालय व्‍यवस्‍थापन समीतिके निर्माण योजना लाबिप्रायः सभ विद्यालयके समुदायमे हस्‍तान्‍तरण केलक, मुदा विद्यालय व्‍यवस्‍थापन समीतिअखन मात्र पाई कमेबाक एकटा स्‍थलक रुपमें परिणत भऽगेल अछि । चाहे विद्यालयमेशिक्षकक रखबामे होय या शिक्षककेँ सरुवामें हुए, विशेष कऽ मधेशक प्रत्‍येकविद्यालय व्‍यवस्‍थापन समीतिसभ एहि तरहक व्‍यापारमें लागिगेल अछि ।

विद्यालयक पढाईकेहन छैक, शिक्षक विद्यालयमें अवैत अछि कि नहिं, विधार्थी अवैत अछि कि नहिंताहिसँ व्‍यवस्‍थापन समीतिके कोनो मतलव नई रहल देखल जाऽरहल अछि । एहि तरहें देशक विकास कोना हायत ? जाधरि हमसब अपने नहिं सुधरब तआन के सुधारत ? जौं हमसभ एकटा सत्‍य बाटपर चलनिहार, देशभकत आ जनताकसमस्‍याके अपन बुझऽबला नेताक बदलामे तामझामबला पँजेरो एनिहार नेताकेनिरुत्‍साही नहिं करब त दिनानुदिन भ्रष्‍टाचारक दलदलमें हमसब धँसैत जाएब । सत्‍यकपक्षधरके मनोबल बढेनाई जरुरी आ सभक कर्तव्‍य भऽगेल अछि । आन कियो कियाहमरा आँहाँक सम्‍बन्‍धमे सोंचि देत ? ताएँ आनके दोष देबासँ पहिने एकवेरहमसभ अपने टेटर देखब कि ?

टेष्‍ट परीक्षा आबऽलागल, मैथिलीक विद्यार्थी पुस्‍तक बिहीन

मनोज झा मुक्ति
शैक्षिक वर्षक अन्‍त होमऽ लागल अछि, किछु दिनकवाद दशम कक्षाक टेष्‍ट परीक्षा सेहो हएत । आन आन विषयक विद्यार्थीक कोर्स अन्‍तो होमऽलागल अछि, मुदा हिलसि कऽ अथवा ककरो दबावसँ मैथिली विषय लेनिहार विद्यार्थी अखनो धरि पुस्‍तक केन्‍द्रक दुवारिपर हाजरी दैत बरोबरि भेटत । कारण जे दशम कक्षाक विधार्थी अखनो धरि नहि देखने अछि— दश किलासक मैथिली पोथी ।

धनुषा जिल्‍लाक लगभग एक दर्जन आ महोत्तरी जिल्‍लाक पर्सा पतैली लगायतक स्‍कूलमे मैथिली विषयक पढाई होइत अछि, मुदा विधार्थी आ शिक्षक दुनुगोटे मैथिलीक पुस्‍तक अखनधरि नई भेटलाकवाद फिरसान अछि । साझा प्रकाशनद्वारा प्रकाशित पुस्‍तक, जनक शिक्षा सामग्री केन्‍द्रद्वारा विधार्थीकलेल उपलब्‍ध कराओल जाइत अछि । जनकपुरधाम स्‍थित विद्यापति चौकपर रहल ‘विद्या पुस्‍तक केन्‍द्र’क विक्रेता कलानन्‍द झा कहलनि, ‘साझा प्रकाशनकेँ वेरवेर तगेदा कएलाकवादो मैथिलीक पुस्‍तक उपलब्‍ध नहि कराओल गेल’ ।

दुखक गप्‍प त ई अछि जे ताहिकालमे मैथिली विषयक पाठ्य पुस्‍तकक आभाव देखल गेल अछि, जाहिकालमे साझा प्रकाशनक अध्‍यक्ष छथि— मैथिलीक पैघ साहित्‍यकार/पत्रकार/कवि/फोरमक नेता/बहुतरास मैथिली संघ—संस्‍थाक अगुवा व्‍यक्‍तित्‍व श्री राम भरोस कापड़ि ‘भ्रमर’ । अपनाके मैथिलीक योद्धा आ साझा प्रकाशनक पहिल मैथिल/मधेशी चेयरमैन कहबामे गर्व कएनिहार कापड़िके पदपर पहुँचलाक वादो मैथिली पोथी नहि भेटव सर्वत्र आलोचनाक विषय बनल अछि ।
मैथिली विषयक पुस्‍तकक अभाव हएव, मैथिली भाषा आन्‍दोलनक व्‍यापकतामें सऽभसँ पैघ रोकावटकरुपमें देखाऽरहल अछि । मैथिलीक पाठ्य पुस्‍तकक सहज उपलब्‍धता जाधरि नई हएत ताधरि विद्यालयक शिक्षामें मैथिलीक पढाई मात्र भाषण धरि सीमित रहत । गणतन्‍त्र प्राप्‍तिकबाद मैथिलीकेा भजा कऽ भलेहिं कतेको मैथिल वरिष्‍ठ पदपर चलिगेल होथि, मुदा धरातलिय यथार्थ इएह अछि जे मैथिली काल्‍हियो पाछा छल आ एखनो सिसैकते अछि ।