Wednesday, September 8, 2021

भ्रष्ट प्रतिनिधि आ लुटेरा रखवार


मनोज झा मुक्ति

चाह दोकान, पान दोकान, चौक, चौबटियासँ लऽकऽ प्रायः सऽभठाम जँ सबसँ बेसी चर्चाक विषय रहैत अछि त भ्रष्टाचारकेँ । एहि चर्चमे सर्व साधारण सोझ लोकसँ नामूद भ्रष्ट सेहो सहभागि रहैत छथि । कखनो काल त ई बुझाइत अछि जे सबठाम एहि तरहें भ्रष्टाचार भऽरहल अछि, तथापि देश कोना चलि रहल अछि ? जकरालेल देश अछि, जकरा देश चलयवाक जिम्मेवारी देल जाइत अछि आ जकरा लुटसँ बँचयवाक जिम्मेवार बनाविक राखलगेल अछि ओसब जहन भ्रष्ट भऽजाई त देशमे बिनु भ्रष्टाचारके कि होयत ? सबके सब नीक जकाँ बुझिरहल अछि जे भ्रष्टाचार चरम सीमापर भऽरहल अछि, पूर्णरुपेण संस्थागत भऽगेल अछि तैयो भ्रष्टाचारमे शून्य सहनशीलताक बात जोरसोरसँ चलैत अछि । देखलगेल अछि जतऽ भ्रष्टाचारके विरोधमे जतेक बेसी अमृतवाणी लिखल भेटैत अछि, ओतऽ ओतवे बेसी भ्रष्टलोककेँ हाली मोहाली रहैत अछि ।

सबहक मोनमे ‘‘सबसँ भ्रष्ट के ? कोन कार्यालय या विभागमे सबसँ बेसी भ्रष्टाचार होइत अछि ?’’ अएनाई स्वभाविक अछि । 

के अछि सबसँ बेसी भ्रष्ट ? केना बढिरहल अछि भ्रष्टाचार दिन दून्ना आ राति चौगुन्ना ?

जतऽके आमलोकके मोनमे बिनु लेनदेनके कोनो काज नई होएत या जतुक्का परिस्थिति सेहो बिनु लेनदेनके कोनो काज नई होबऽवला होई ओतऽ भ्रष्टाचारक खेत लहलहेवे करत ।

कोनहुँ व्यक्तिके निर्माण कोनो परिवारसँ होइत अछि । जकरा जेहन संस्कार देलजाइत अछि, ओकर निर्माण ओहने होइत अछि । कखनो काल एहि देशके जनताके व्यवहार आ सोंच देखलाकवाद ई लागव अस्वभाविक नहि जे ‘‘ बहुसंख्यक जनताक एहन सोंच भेलाकवादो एतेक कम भ्रष्टाचार केना भऽरहल अछि ?’’

जतुक्का जनता पडोसीक आरि छाँटऽमे बहादुरी बुझैत होई, सरकारी या सार्वजनिक सम्पतिके लुटके माल बुझैत होई, मिटर रहलाक बादो बन्सी फँसाकऽ बिजुली वारैत होई, अपन या धीयापुताक नोकरीलेल घुस देवाकलेल तैयार रहब अपन संस्कार बुझैत होई, जातिपातिक, टोल–गाम, पाई आ दारुपर अपन प्रतिनिधि चयन करैत होई, मानवताके ताखपर राखिकऽ नितान्त व्यक्तिगत स्वार्थकलेल ककरो गरदनि कटवाकलेल सदति उद्धत रहैत होई, ओतऽ केहन समाजिक वातावरण रहतै ? ओहि समाजमे भ्रष्टाचारी नै जनमतै आ भ्रष्ट वातावरण नई रहतै त प्रकृतिके त उपहासे होएतै कि ?

जतुक्का व्यापारी ग्राहकके जानके बिनु कोनो परवाह कयने खाद्य वस्तुमे मिलावट कएनाई अपन धर्म बुझैत होई, एक्कहिटा सामानक भाओ ग्राहकके मुँहकान देखिकऽ अलग–अलग लगाओल जाइत होइक, तौलमे कमी करब अपन बुधियारी बुझैत होई, देशक राजश्वके चोरी करवाकलेल अनेक जालझेल करब अपन कर्तव्य बुझैत होई आ व्यापारीके रोकनिहार–टोकनिहार कियो नई होई, तहन कालाबाजारी आ कोनो हालतिमे पाई कमयवाक या कहु जनताके लुटवाक सोंच रखनिहार व्यापारी भ्रष्टाचारमे लिप्त कोना नई भेटत ?

देशक निर्माणक जिम्मालेने ठीकदारे जहन १०० रुपैयाक समान ५०से रुपैयामे उपलब्ध करायब कहिकऽ कोनो तरहें ठीक्का हथियवैत होई, सिमेन्टक बदलामे राखे धऽकऽ ढलान कएनिहानके बोलबाला होई ओतुक्का कोनो निर्माण टिकाउ होएवाक चाही से कहब त बुडिबकइय छैक ने ?

अपना सनसन लोकतान्त्रिक देशक जनप्रतिनिधिए जहन चोर–बनोर भऽ जाई त समग्र विकासके बात त हवेमिठाई होएतै ने ? जतुक्का जनप्रतिनिधिए अपन–परायाक भाव राखिकऽ काज करैत होई, जे कोनहु परिस्थितिमे पाई–पाई आ मात्र पाई देखैत होई, ओतुक्का विकास केहन होएतै ? अपना कार्यकर्ताद्वारा कयलगेल केहनो कुकर्मके झाँपतोप करवाक काज कएनिहार जनप्रतिनिधिके भ्रष्ट नई कहवै त कोन नाम देल जाऽसकैय ?

लोकतन्त्रमे खवरदारी कयनिहार विपक्षीएसब जहन निर्वाचित जनप्रतिनिधिके कुकर्ममे सहभागि भऽजाई तहन बजनिहार के बँचि जयतै ? जतुक्का विपक्षी पार्टीक नेता÷कार्यकर्ता जनप्रतिनिधिके योजना सबहक ठीकदार भऽ कमीसन दैत होई ताहि स्थानके वातावरण भ्रष्टाचारमय नई रहतै त केहन रहतै ?

देशमे जनप्रतिनिधि अपन मनमानी नई करय ताहिके रखवारी करैत अनियमितता रोकवाकलेल जनताके राजश्वसँ राज्यद्वारा राखल राष्ट्रसेवक कर्मचारीए भ्रष्टाचार करवाक बाट देखवऽबला भऽ जाई, ओतऽ बजेटक सदुपयोग कोना होयतै ? जतऽ कर्मचारिय भरिसालके बजेट खर्चकरवाकलेल जनप्रतिनिधिसँ ठिक्का लऽलै, ओतऽ भ्रष्टाचारक गाछ दिन दुन्ना आ राति चौगुन्ना चतरतै कि नहिं ?

जाहि देशमे सबपर नजर रखनिहार पत्रकारक कलम लेनदेनमे ओझरागेल होई, जतऽ भ्रष्टाचारक समाचार नई लिखवालेल आ अपन झूठमूठक प्रचार करवाकलेल संचारकर्मी प्रयोग कयल जाइत होई, ओतऽ भ्रष्टाचारक बात बाहर कोना अओतैक ? यदाकदा बाहर चलियो अबै आ अख्तियार सन निकायधरि कहुना चलि जाई एवम् अख्तियारे जतऽ सबके क्लिन चीट थम्हादैत होई, तहन भ्रष्टाचारक विकास चौतर्फी किया नई होएतै ?

जाहि धर्तीपर सुरक्षेकर्मीक प्रत्यक्ष संलग्नतामे तस्करी कराओल जाइत होई, केहनो जघन्य अपराध कएलाक बादो पाईयक बलपर प्रहरी÷प्रशासन अपराधीके जमायक सम्मान दैत होई, ओतऽ अत्याचारके रुपमे भ्रष्टाचार कि समाप्त होयतै ?

आखिर भ्रष्टक श्रेणीमे के अव्वल आ के दूर्वल कहनाई कठीन अछि । समग्रतामे ई कहल जाऽसकैय जे आम जनता आ समाजे सबसँ पैघ भ्रष्टाचारी अछि जे कोनो ने कोनोरुपें अपनो भ्रष्टाचारमे शामिल अछि या भ्रष्टाचारके सहयोगी बनल अछि । नई त कमसँकम अपना चारुदिस भ्रष्टाचारके देखैत चुपचाप गुवदी लदने अछि ।

आखिर कहिया तक होइत रहत भ्रष्टाचार ?

जँ कोनो शिक्षित या बुझनुक लोकलग ई प्रश्न करवै त उत्तर सामान्यरुपसँ भेटत– समय अओतै त अपने आपसब समाप्त भऽजयतै । प्रश्न ई अछि जे– ओ समय कहिया अओतैक ? कि अपने आप ओ समय चलि अओतै कि ककरो ने ककरो प्रयास करऽ पडतैक ?

जाधरि सबकियो देशक उन्नतिक सोंच अपनाआपमे नई लाओत आ अपनाके कोनो तरहक भ्रष्टाचार करऽसँ नई रोकत, तहियाधरि भ्रष्टाचारक गाडी दौडते रहत । अपन–पराया, जाति–पातिक फेरिमे नई परिकऽ जहियासँ भ्रष्टाचारक विरोध खुलिकऽ नई भेनाई शुरु होयत ताधरि भ्रष्टाचार हटवाक काज प्रारम्भ नहिं भऽसकैय । आ जहन कोनो काजके प्रारम्भे नईं होएत त काज आगा कोना बढत ? भगवति हमरासबके भ्रष्टाचारी बनऽसँ रोकथि आ भ्रष्टाचारके विरोध करवाक मतिक संग शक्ति प्रदान करथि ।