Monday, April 20, 2009

नेपाल रल्वेक दुरावस्था आ सरकारक कानमे तेल



महेन्द्र कुमार मिश्र

हमरा सब जकाँ भूपरिवेष्ठित मुलुकमे यातायातक चारि प्रणली मध्ये जल मार्गक विकाशकेँ कल्पना तत्काल केनाई सम्भव नहि । वायुमार्ग अति महग यातायातक साधन भेलाक कारणे आम नेपाली जनता, सर्वसाधारणकलेल सम्भव नहि अछि । सडक मार्ग आशा अनुरुप्नहियो होइत बहुतहद धरि निर्माणक पूर्वाधार तैयार करबाक चेष्टा अवश्य कऽलेलगेल अछि । अूदा विडम्वना केहन, विश्वक सबसँ सस्त, आरामदामयी, सुरक्षित एवं लोकप्रिय यातायात रेल्वेसेवा प्रणाली नेपालसँ विस्थापित होयबाक अवस्थामे अछि ।
इन्टरनेट एवं कम्प्युटरक युगमे जनसँख्याक वृद्धि भऽरहल अवस्थामे एकठामसँ दोसर ठाम शीघ्रातिशिघ्र पहँुचवाक आतुरता, ताहिक लेल रेलसेवा सनक आरामदायी आ सुरक्षित आधुनिक प्राविधिक सुसम्पन्न रेल मार्ग उपेक्षित एवं लावारीश अवस्थामे अछि ।

अखनो सँसारक दूर्लभ ईन्जन मार्टिनवर्नद्धारा निर्मित न्यारेगेज रेल्वे ईन्जन नेपालमे उपलब्ध अछि, मूदा संचालनमे नहि अछि । बेलायती शासनकालक रेल्वे ईन्जनसन १९३७, वित्रmम संवत१९९४ साल सँ संचालित सेवा आई पूर्णरुपेण उपेक्षित बनल अछि । बहुतो नेपाली जनताकेँ जानकारी नहि हैतनि जे नेपालोमे रेल संचालनमे छैक ।१९९०मे सर्वप्रथम सर्भे कऽ १९९२ सँ निर्माण काज प्रारम्भभेल विदेशकलेल काठ ढुवानीमे प्रयोग कायलगेल, जखन नेपालक हरियोवन समाप्त होबऽलागल तत्पश्चात ई रेल सेवा मानव सेवामे प्रयोग होवऽलागल ।

आजुक परिवर्तित अवस्थामे आवागमनक साधनकेँ रुपमे स्थापित भेल आजुक परिवर्तित अवस्थामे आवागमनक साधनकेँरुपमे स्थापित भेल । वैज्ञानिक युगमे अन्य विकशित देश अचम्भित सवकाश कएलक, भारतमे आजुक दिन सबसँ पैघ रेले मन्त्रालय छैक । भारतक आर्थिक् रीढक रुपमे रेल्वे स्थापित अछि । जापान, प्रmान्स आदि देशक रेल सेवामें आश्चर्यजनक प्रगति कएलक अछि ।
एक घण्टामे ४०० किलो मिटरक दूरी तय करैत अछि । भारतमे वेलायति साम्राज्यद्धारा रेलसेवा प्ररम्भ आ विस्तार भेल । प्रय ओही समय वि.सं. १९९४मे युद्ध शम्शेरक शासनकालमे नेपाल सरकार रेल्वे( एन.जे.जे.आर.) नेपाल जनकपुर जयनगर रेलसेवा आ (एन.जी. आर.) भारतक रक्सौल होइत वीरगँज अमलेखगँज तक साचालित रहै, मूदा बहुत पहिने सँ सेवा बन्द अछि । आब मात्र ५१ कि.मि. मार्ग जयनगर विजलपुरा सँचालित सेवा जनकपुर सा विजलपुरा, २०५९ साल अषाढ २३ गते आएल भिषण बाढिक प्रकोप सँ बिग्धी नदी पुल क्षतिग्रस्त भेने यहो रेल सेवा पूर्णरुपेण बन्द भऽ २९ कि.मि.मे मात्र सिमीत अछि ई सेवा । सरकारक अकर्मन्यता, लापरवाही तथा उपेक्षाक कारणे लोहाक लीक माटि सँ भरल अछि, घासपात जनमिगेल अछि, ठाम ठाम निर्मित यात्री प्रतिक्षालय सेहो ध्वस्त भऽरहल अवस्था छैक ।
रेलक जमीन सब सेहो अतित्रmमण मात्र नहि लिकेपर तरकारी बजार छानल गेल अछि, मूदा सरकार आ सम्बन्धित निकाय रेल प्रशासनक ध्यान एम्हर नहि देखल जा रहल अछि । वेर वेर जानकारी आ तथादा कएलाक बादो कोनो सुनवाइ नहि भऽरहल जनताक सिकायत रहल अछि ।

देशक ऐतिहासिक धरोहर एवं तराई मात्र नहि नेपालक गौरव रेलसेवा जीर्ण अवस्थामे अछि । बुमmना जाइत अछि जे यहि सेवाकलेल कोनो मायबाप नहि रहल । अखन धनुषा महोत्तरी धरि ई रेलसेवा सँचालित भेल अवस्थामे एहि मार्ग सँ जतेक यात्री आवत जावत करैत छल ताही अनुपातमे आन कोनो यातायात एवं सवारी साधन सा आवत जावत नहि होइत अछि जकर सत्य तथ्य यात्रीक सँख्या सँ पुष्टी होइत अछि । पर्यटनक युगमे रेलसेवा एनो उपेक्षित रहल ताहिसँ तराईवासीके जनमानसमे केहन भावना उत्पन्न हायत ?

असमान भेदवाभ सँ ग्रसीत मानल जाए की नहि ? आई जौं एहन छोट समस्या पहाड मे रहितै तहन की एहीना उपेक्षित रहैत रेल सेवा ? जनकपुरधाम धार्मिक् स्थल तथा पर्यटनकलेल आवऽबला यात्री मध्ये सर्वाधिक भारतिीय नागरिक रहैत अछि, एकदिनमे कमसँ कम पाँच छौ हजारक सँख्यामे यात्री आवत जावत करैत अछि । दूर्भाग्यवस महोत्तरी जिल्लाक मध्य क्षेत्रमे एकमात्र यातायातक साधन रेले अछि, ओहो अखन बन्द अछि । अन्य यातायातक सुविधा नइ रहल क्षेत्रक ई सेवा वन्द भेने जनजीवन कतेक प्रभावित हेतै तकर अनुमान सहजहिँ कायल जा सकैया ।

अशत्तm विमारी, उद्योगव्यापार, दैनिकजीवनक उपभोग सामग्रीक आभाव तथा त्रmय वित्रmयक समस्या सा एम्हरके जनमानस बहुत प्रभावित भेल अछि । प्राय प्रत्येकदिनक ई समस्याकेँ कारण रेलसेवा अभिषाप सिद्ध भऽरहल अछि । नयाँ नेपालक निर्मा०ँम्ै ज्ू६ल् द्यल् त्थ्ँ ज्न् प््रतिनिधि सबहक पूर्ण दायित्व होइत छन्हि, की त रेलसेवा फेर सा सञ्चालन कएल जाय या रेलसेवा बन्द कऽ वैकल्पिक मार्ग निर्माणमे ध्यान देथि । गणतन्त्रस्थापनाक महा अभियानमे एहि क्षेत्रक कम योगदान नहि रहल । राजनीति योगदान करऽबला बीर शहीदक पुण्यभूमि आई उपेक्षित अछि । आर्थिक योगदानमे सेहो रेलसेवा उल्लेखनिय काज बरबामे सहायक रहल अछि ।

दाता मित्र राष्ट््रक सरकार तथा जनप्रतिनिधिद्धारा रेलसेवा विस्तार आ सुव्यवस्थित करबामे उत्साहजनक आश्वासन सेहो भेटल,मूदा अखन धरि ई काज कियाक नहि सफल भऽरहल अछि ? भारतीय जनता, राजनीीत्क् द्यल्? स्म्ँीज्क् क्ँईकर्ता वेरवेर ई सवाल सदन सँ लकऽ सडक धरि उठा रहल अछि, भाषण एवं सार्वजनिक अभिव्यक्ति सेहो सँचार माध्यमसँ जानकारी भेट रहल अछि । तात्कालिन रेल मन्त्रि रामविलास पासवान, वर्तमान रेल मन्त्रि लालू प्रसाद यादवजेक अभिव्यक्ति सेहो सार्वजनिक भेल अछि कि जयनगर, जनकपुर, विजलपुरा होइत वर्दिबास धरि ब्रोडगेज रेलसेवा विस्तार कायल जाएत ।

भारतीय राजदूतावास सँ सेहो प्रस्ताव आएल कि जनकपुर विजलपुरा रेल्वेसेवा विस्तार कऽ काठमाण्डौ धरि महँुचाएल जाय तकरालेल नेपाल सरकारद्धारा प्रस्ताप पेश करओ आ ताहिमे भारत सरकार पूर्ण सहयोग करत । किछु साल पूर्व नेपाल भारत बीच रेलसेवा विस्तारक सन्दर्भमे बिना विष्कर्ष वार्ता भाग भेल एहि वार्ता सा पूर्वो एकटा वार्ता दिल्लीमे भेल छल । पहिल आ दोसर चरणक वार्तामे सहभागी सरकारक प्रधिनिधिक कथन अनुसार ई वैसार उपलब्धी मूलक रहल कुटनीतिक माध्यम सँ निष्कर्षमे पहँुचवाक मे दुनु पक्ष सहमत भेल ,मूदा आश्चर्यक बात जे एतेक वर्ष बित रहल अछि अखनधरिक ब्रोडगेजक बात छारिदी, सँचालित नेरो गेज लिंक आ ३ कडोर लागतक पूल निर्माण क कियाक नहि भऽरहल अछि ।

पंचायतकालमे सेहो जापान सरकार नेपाल रेलसेवाक विस्तार निर्माण प्रस्ताव रखने छलाह, हुनकर शर्त रहनि जे जापाने सरकारक रेखदेखमे ई काज हायत, मुदा कमिशनक कारणे ओ म्रस्ताव पतन भेल । एमाले सरकारक सभय तत्कालिन निर्माण तथा यातायात मन्त्रि भरत मोहन अधिकारी जनकपुर रेल्वे आ नेपालक विकाश विषयक गोष्ठीमे हुनकर अभिव्यक्ति छलन्हि, जे जनकपुरधाम सनक पवित्र स्थलक पर्यटकिय विकाशक लेल राष्ट््िरय सहमतिक आवश्यकता अछि । निकट भविष्यमे निर्माण तथा यातायात मन्त्रालयद्धारा जापान, भारत तथा प्रmान्स सरकार सपक्ष रेल्वेसेवाक आधुनिकीकरण एवं विस्तारकलेल लिखित प्रस्ताव पठायब जे प्रतिवद्धता जनौने छलाह ।

नेपाली काँग्रेसक मन्त्रिगणद्धारा वेरवेर निरीक्षण भेल ओ आशाजनक आश्वासन भेटैत रहल,मूदा समस्या अखनो यथावते अछि । अवस्था दयनिय अछि, पुरान भौतिक सँरचना, रेल्वे ट््रयाक,स्लीपर, इन्जनकोच तथा पूलसब जीर्ण अवस्थामे अछि । कर्मचारी व्यवस्थापन कमजोर रहलाक कारण रेल कम्पनीक आर्थिक अवस्था सेहो बहुत कमजोर अछि ।

हालहिमे नेपाल आ भारत सरकार बीच भेल सहमति अनुसार जयनगर सँ वर्दीबास धरि ७० किलोमिटर रेल्वेसेवा विस्तार करबालेल भारतक राइट्स नामक कम्पनि सन २००७ जुलाईमे सर्भे काज सम्पन्न कयलक अछि । तत्पश्चात भारतीय रेल सरकारक चीफ इन्जिनियर आ सहायक इज्निियर सबहक टोली पुन सर्वे काज सम्पन्न कयलक जे काजक पूर्णता देवऽमे कम सँ कम पाँच वर्ष लागत, मूदा प्रश्न अछि जे पाँच वर्षक अवधि धरि एहि क्षेत्रक अवस्था कि हायत ? यहि अवस्थाके ध्यानमे रखैत नेपाल सरकार तत्काल सँचालित लीक आ पूल निर्माण क रेल सँचालन मे आवओ ।

बहुत प्रयासकबाद अर्थमन्त्रि ११ कडोर रुपैया देवाक निर्णय कयलथि । यहि प्रयासमे यातायात मन्त्रिक पूर्ण सहयोग रहलन्हि, मूदा ११ कडोर रुपैया भऽ की रहल छैक ? ११ कडोर मध्ये ५ कडोर जनकपुरसँ पूर्व आ ६ कडोर जनकपुर सँ पश्चिम बिजलपुरा धरिक मर्मत निर्माणकलेल छुटियाओल गेल छल तथापि अखन धरि काज प्ररम्भक गँधधरि नहि आबिरहल अछि ।

यातायतक प्रणलीमे रेलसेवा एकटा एहन प्रणली प्रमाणित भेल अछि । जे जतेक लम्बा खूरी धरि विस्तार करय ततवे वेसी आरामदायी हायत आ सँगहि ओतवे आमदानी होयवाक निश्चित अछि । सामान ढुवानी, यात्री आवत जावतमे राजश्ववृद्धिक सँगहि रोजगारीक अवसर सेहो प्राप्तक साथसाथ आहि क्षेत्रक सर्वाङ्गीन विकासक पूर्वाधार सुनिश्चित रहत । रेल्वेसेवा त्रmमश रुपान्तरीत होइत संस्थानसँ कम्पनिमे परिणत भेल ई स्वायत्तता प्रप्त कम्पनिमे सात मन्त्रालयक शेयर अछि, मनोमानी ढँगसँ बिना मूल्याङ्कन कयल जायत त कैयक असबके सम्पति छैक । कम्पनि चाहे त अपने बलबूत्तापर रेलसेवा सँचालन कऽ सकैत अछि ।

एकटा सक्षम व्यवस्थापन, पारदर्शिताक आवश्यकता छैक । आशा राखी लोकतान्त्रिक सरकार एहि शुभकाजमे सहयोग करय, नहि त वोहि क्षेत्रक जनता आब हाथ पर हाथ धऽ बैसल नहि रहत आ देसर विकल्पक खोजीमे जुटत, जकर परिणाम सरकारमे सहभागी दल एवं सरकारके भोगहिटा परतैक ।

अवैद्य नागरिकताः सिक्कमीकरणक प्रयास
मनोज झा मुक्ति

नेपालमे नागरीकता वितरण बहुतो वर्ष पहिने सँ चर्चित विषय बनल अछि । खास कऽ पहिल मधेशवादी दलक रुपमें जानल जाइत नेपाल सदभावना पार्टी अपन स्थापने कालसँ नागरीकताके अपन प्रमुख मुद्दाक रुपमे रखैत आएल छल । प्रजातन्त्रक आगमनकबाद २०४८ सालमे बनल सरकारक समयमे सेहो नागरीकताक प्रश्न सदन गर्मओने छल ।सदभावना पार्टीक अडान रहैक बहुतो मधेशी जनता नागरीकतासँ बञ्चित अछि, सबके नागरीकता देल जाए । सदभावना पार्टीक एहि अडानपर जनमोर्चा लगाएतक दलसब एकरा भारतक विस्तारवादी नीति कहैत विरोध करैत छल । हूनकर सबहक कहब रहैनि जे मधेशीसबके नागरीकता दऽदेलासँ नेपाल सिक्कमीकरण भऽ जायत ।

जनआन्दोलन २०६२÷०६३ सँ पहिने सेहो नागरीकता वितरणकलेल आयोग सब बनैत रहल, अपन प्रतिवेदन बुमmवैत रहल । कोनो बेर जौं नागरीकता देलोगेल त æसबै भारतीयहरुलाई नागरीकता दियो, देशमा अब विखण्डन हुन्छ” कहैत, रिट दायर कऽ मधेशमे देल जाचुकल नागरीकताके बदर सेहो कराओल गेल ।

एकटा विदेशी नागरीकके नेपालक नागरीकता देनाई वास्तवमे बहुत बडका षडयन्त्र होइत छैक, देशक हीत विपरीत काज होइत छैक । देश हीतक विपरीत काज कयनिहार ककरो नईं छाडल जएबाक चाही । ताहुमे नागरीकता सन सँवेदनशील विषयमें त सबहक नजरि रहब ओतबे जरुरी होइत छैक । मुदा जोर जोरसँ गरजनिहार सबहक मानसिकता एहिबेरक नागरीकता वितरणक समयमे देखागेल । नागरीकता वितरणक तथ्याँक अनुसार लगभग २४ लाख नागरीकता समुच्चा देशमे वितरण कायलगेल । जाहिमे लगभग ११ लाख तराई मधेशमे आ १३ लाख पहाड हिमालमें । कि वास्तवमें नागरीकता प्रप्त केने चौबिसो लाख व्यक्ति नागरीकता लेबाक हकदार रहथि ? ई एकटा पैघ प्रश्न अछि । हँ सदनमे बहुत हँगामा कायलगेल, अपनाके देशक ठिकदार कहनिहार देखावटी देशभक्त पार्टीसबद्धारा । अहु हँगामा सबहक एकहिटा कहब छल जे तराई मधेशमे सबटा भारतीय सबके नेपाली नागरीकता द कऽ देशके सिक्कमीकरण करबाक तैयारी कायल जाऽरहल अछि । मुदा कि नागरीकता वितरण कयनिहार अधिकारीमे कएटा व्यक्ति तराई या मधेशी मूलक रहथि ? आँगुरपर गनल जा सकैया । अवैद्य रुपसँ वितरण कायलगेल नागरीकता मधेशक विरोधमें बहुत पैघ षडयन्त्र अछि । मधेशमें जाऽक गैर मधेशी अधिकारीसबद्धारा जे किछु मात्रामे विदेशी सबके मोटगर पाई ल कऽ नागरीकता वितरण कायलगेल अछि से मधेशीसबके अपने धर्तीमे गुलाम बनयबाक चालि अछि । एकर दू टा पक्ष अछि, जौ नागरीकता लेने विदेशी भुख्खे मरत त उदारवादी मधेशी अपनो हिस्साक भोजन देबऽमे पाछा नई रहत, आ मानसिक एवं शारीरिक यातनाक पीडा मmेलैत रहत । जौ पाइके बलपर नागरीकता लेने कोनो धन्निक विदेशी गाममे रहत त गामक जिमदार बनिकऽ सबके फेरसँ कमैया बनालेत जेना पश्चिमी तराई मधेशमे थारु सबके पहाड सँ विस्थापित पहाडी सबद्धारा कमैया बनालेल गेल । ताएँ एहि बातपर मधेशीसब सचेत रहथि आ विदेशी सबके नागरीकता लेबऽसँ सकभर रोकलथि । मुदा तैयो पाइयक भुखल आ द्धेष भावनासँ कुटिकुटिकऽ भरल गैर मधेशी अधिकारीसबद्धारा मधेशोमे किछु नागरीकता अवैद्यरुपसँ वितरण कायलगेल ।

दोसर दिश पहाड आ हिमालमे जे जनसँख्यो सँ बेसी नागरिकता वितरण भेल ताइके विषयपर सदनमे ककरो बकार धरि नहि फुटल । कत चलिगेल ओई देशभक्त नेता सबहक देशभक्ति ? ई अहिने प्रष्ट कऽदैत अछि जे ओइ खोखला देशभक्तसबक नियति, ओसब कि चाहैत अछि, आ कत सँ सञ्चालित अछि ?

वास्तवमे अवैद्य नागरीकता वितरण क कऽ नेपालके सिक्कमीकरण करबाक प्रयाश सोंचल सममmलरुपमें शुरु भऽगेल अछि । नेपालमे लाखोके सँख्यामें तिब्बती, भुटानी आ भारतीय(दार्जिलिङ्ग) नागरीकके नागरीकता द कऽ वैद्य नागरीक बनयबाक खेल शुरु भऽगेल अछि, आ तकरा सब मधेश विरोधी मानसिकताक लोक भितरिया मोन सँ स्वागत करैत गदगद भऽ रहल अछि । एकर कारण एक्कहिटा अछि जे नागरीकता लेनिहार तिब्बती, भुटानी आ भारतीय(दार्जिलिङ्ग) लोकके मुँहकान आ प्रायःके भाषा नेपालक ओइ बेतुक्का देशभक्त नेता सबसँ मिलैत जुलैत अछि । ई सिक्कमीकरण नईं त कि अछि ? देशक सम्पूर्ण सचेत नागरीकके सोंचबाक चाही ।

मधेशको मर्म अनुरुप संविधान नबने सशक्त संघर्ष


मधेशको मर्म अनुरुप संविधान नबने संविधान सभा छोडेर सशक्त संघर्ष गर्छौ
महन्थ ठाकुर
अध्यक्ष (तराई मधेश लोकतान्त्रिक पार्टी)


(देशमा निर्माण हुन लागेको नयाँ संविधानमा जनताको भावना बुझ्न महोत्तरी आइपुग्नु भएका तराई मधेश लोकतान्त्रिक पार्टीका अध्यक्ष एवं तमलोपा संविधान सभादलका नेता महन्थ ठाकुरसँग गरिएको कुराकानीको प्रमुख अंश)

१. जनताको भावना बुझ्न जुन प्रकारको लिखित प्रश्नहरु लिएर आउनु भएछ, कस्तो जटिलता रहेको छ त्यसमा ?

—.प्रश्नहरुमा भाषा सम्बन्धि कठिनाइहरु रहेका छन् । चाहे पहाडका जनताहुन या मधेशका, सबै जनतालाई यस प्रकारको समस्या परेको छ । प्रश्नहरु ज्यादै लामो लामो तथा कानूनी जटिलता युत्तm शब्दहरु रहेको छ । जसरी भन्नुस न, सार्वभौमसत्ता शब्दलाई जनतालाई कसरी सम्झाउने ?

२. यी प्रश्नहरु तयार गर्दा तपाईहरुसँग छलफल त भयो होला नि ?

—सामान्यतया यी विषयहरुमा कुनैदलसँग छलफल गरिंदैन र हामीसँग पनि कुनै प्रकारको छलफन गरिएन ।

३. के लाग्छ यस्तो स्थितिमा जनताको हीतको संविधान बन्ला ?

—हेर्नुस, जनताकोलागि बन्छ कि बन्दैन त्यो प्रश्न होइन । २०३६सालमा बहुदललाई हराइए पनि एउटा लोकतान्त्रिक मान्यता के स्थापित भयो भने जनताले नै आफ्नो मतले बहुदललाई हरायो । त्यसतै, संविधानलाई मान्यता प्रदान गराउन भएपनि जनताको घरदैलोमा पुगेको देखाउनु पनि कुनै न कुनैरुपमा लोकतन्त्रलाई स्थापना गर्ने एउटा कडीको रुपमा लिनु पर्दछ, संविधान बनाउने अधिकार जनताको हो भनेर ये प्रकृयाले प्रमाणित गरेको छ ।

४. कस्तो खाले प्रश्न या सुझावहरु जनताबाट आइरहेको छ ?

— जनताबाट राम्रो सुझावहरु पनि आइरहेको छ । रुपन्देहीमा एउटा ५० वर्षे मानिस आएर भन्नु भयो, ‘श्रीमान् मधेशीसँग भइरहेको भेदभाव कसरी हट्छ त्यो कुरा संविधानमा लेख्नु होला’ यति भन्दै सरासर उहाँ आफ्नो बाटो लाग्नु भयो ।

५. नेपाली जनतालाई कस्तो खाले संविधान चाहिएको महशुश गर्नु भएको छ ?

— नेपालको भौगोलिक अवस्था, सँस्कृति, जनसंख्याको वितरणले जहिले पनि नेपाललाई सहमतिको आधारमा जाने निर्देश गरेको छ । यसको विपरीत जो जो आज सम्म नेपालमा जान खोज्यो, ऊ विफल भएको छ । राजाले एक्लै शासन गर्न खोज्यो विफल भयो, काँग्रेस पूर्ण बहुमत पाएर पनि एक्लै आफ्नो अवधिभरि सरकार चलाउन सकेन । अहिलेको एकिकृत माओवदी सरकार संख्यात्मकरुपमा कमजोर छैन तर पनि एक्का शासन चलाउन खोज्यो भने विफलता निश्चित छ । अर्थात सहमतिको आधारमा संविधानको निर्माण भयो भने जनताको पक्षको संविधान बन्नेछ र बहुमतिय आधारमा संविधानको निर्माण भयो भने अहिले देखिएको समस्याहरु रहिनै रहन्छ ।

६. अहिले कस्तो खाले समस्या रहेको छ ?

— एउटा विषेश समुदाय बाहेकलाई छोडेर पहाड,मधेश सबैठाउँका जनता आन्दोलित छन्, जो सदियौं देखि विभिन्न प्रकारका अवसर तथा हकबाट बञ्चित हुँदै आएको छ । उनिहरुको भावनालाई सम्बोधन गर्नु एकदमै आवश्यक रहेको छ ।

७.संविधानप्रति जनतामा कस्तो खाले शंका उपशंका रहेको छ ?

—जनतामा दूई खाले शंका व्याप्त रहेको छ । एउटा त संविधान बन्छ कि बन्दैन र अर्को दलीय भागवण्डाको आधारमा त कतै संविधानको निर्माण हुँदैन ? यसो भएमा द्धन्द्ध पूर्णरुपमा समाप्त हुन सक्दैन ।

८. यदि दलीय भागवण्डाको आधारमा संविधानको निर्माण भएमा तमलोपाले कस्तो रणनीति अख्तियार गर्छ त ?

—राष्टि«य राजनीतिमा हाम्रो मूल प्रश्न ‘मधेश’ हो । मधेशको माँगलाई उपेक्षा गरियो भने जस्तो सुकै संविधान पनि हामीलाई अमान्य हुनेछ । यदि मधेशी जनताको भावनालाई उपेक्षा गरियो भने तमलोपा अहिले संघर्षमा त छँदैछ, हामी संविधान सभाबाट राजिनामा गरेर शसस्त्र त होइन सशक्त आन्दोलनमा जानेछौं ।

९. नेपालका राजनीतिक सत्ताको कुन कुरा सुधार्नु पर्ने आवश्यकता छ ?

—कुनै स्थापित शक्तिलाई आफ्नो स्थान जब कुनै कारणवस छोड्नुपर्ने हुन्छ तब वर्षौं देखि दबाइएको जनता आफ्नो क्षतिपूर्ति खोज्छन् र फलस्वरुप आन्दोनको उदघोष हुन्छ । आन्दोलनको पहिलो कारण राज्यद्धारा गरिएको भेदभावप्रतिको आत्रmोश हो । र कुनैखाले विरोधलाई सत्ताले कहिल्यै सहजरुपमा लिएन, सजाय तथा दण्डदिने प्रवृतिलाई बढावा दिंदै आयो । महिलाको आन्दोलनलाई ‘डलरखेती’को सँज्ञा दिइनु, मधेश आन्दोलनलाई ‘विखण्डनकारी’को सँज्ञादिनु लगाएतका कामहरु लोकतन्त्रको भाषण दिएर नथाक्ने नेताहरुबाट हुँदै आएको छ । दलहरु सत्तामा पुग्दा विरोध नसहने बानी जुन परेको छ, वास्तविक लोकतन्त्रको अनुभूति गराउन यी यस्ता प्रवृतिहरु सुधार्नु पर्ने नै हुन्छ ।

१०. प्रेस स्वतन्त्रताप्रति तमलोपाको कस्तो धारणा रहेको छ ?

— स्वतन्त्र न्यायपालिका र स्वतन्त्र प्रेस लोकतन्त्रको ग्यारेन्टर हुन्छ । जनताको अधिकारको वारेमा प्रेसले सूचना प्रवाह गर्छ र अदालतले त्यसलाई संरक्षण गर्छ । प्रेस कसैप्रति पूर्वाग्रही हुनु हुँदैन र कसैको हीतकारी पनि हुनु हुँदैन । तथापि ‘अस्पताल खोल्नुको अर्थ रोग नै नलाग्नु भने हुँदैन ।’

११.भारतको राजधानी नयाँ दिल्लीमा भईरहेको नेताहरुको भ्रमणप्रति सरकारको अगुवाई गरिरहेका एकिकृत माओवादीका नेताहरुको व्यत्तm आशंकालाई कुनरुपमा लिनु भएको छ ?

—हेर्नुस, माओवादीले १० वर्षे जनयुद्ध भारतमै बसेर गर्यो, १२ बुँदे सम्झौता पनि भारतमै गर्यो त्यसैले उनिहरुलाई थाहा भएर होला शंका लागेको हुनसक्छ । एकिकृत माओवादीका नेताहरुको आत्मविश्वासको कमीले यस्ता शंका लागेको मात्र हो । अब ज्ञानेन्द्र वा कुनै राजा आउने कुनै संभावना नेपालमा छैन । कथम कदाचित दलहरुले राजालाई ल्याए पनि नेपाली जनताले मान्नेवाला छैन ।

मैले व्यत्तिmगतरुपमा नेताहरुको भारत भ्रमणलाई नकारात्मकरुपमा लिएको छैन, यो सबै स्वभाविक प्रकृया हो ।

Sunday, April 19, 2009

कस्तो महानता ? भारत विरुद्ध नेपाली जनतालाई उक्साउनेहरु




कस्तो महानता ?
भारत विरुद्ध नेपाली जनतालाई उक्साउनेहरु....


मनोज झा मुक्ति
नेपाल एउटा भूपरिवेष्ठित राष्ट« हो जसको तीन तिरबाट विशाल मुूलूक भारत र एकातर्फबाट सँसारको अर्को ठूलो देश चीनले घेरेको छ । भौगोलिक सुगमता, मिल्दोजल्दो सँस्कार र सँस्कृतिले गर्दा आफ्नो दुवै छिमेकी मध्ये नेपालको सम्बन्ध भारतसँग अलि बढि नै रहने गरेको छ । यसको अतिरिक्त नेपालीहरुको शिक्षाको केन्द्र, कामगर्ने ठाउँ, राजनैतिक सहयोग लगायतका कार्यले गर्दा पनि नेपाल—भारतको सम्बन्ध प्रगाढ रहिआएको छ ।


नेपालमा परापूर्वकाल देखिनै भारतको सहयोग हरेक कार्यमा अविस्मरणिय छ, यसमा दुईमत छैन । चाहे राणा शासनलाई समाप्त गर्न होस या पञ्चायति व्यवस्थाबाट नेपाली जनतालाई मुक्त गराउने आन्दोलन होस, चाहे राजतन्त्रको अन्त्यकोलागि गरिएको आन्दोलन किन नहोस नेपाली जनाले गरेका हरेक सँघर्षहरुमा प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्षरुपमा भारतको योगदान रहेकै छ । हुनत, भारतको स्वतन्त्रता संग्राममा नेपालीहरुले निर्वाह गरेको भूमिकालाई पनि विर्सन सकिन्न ।

एउटा उखान नै चलेको छ हामीकहाँ, ‘नेपालमा मन्त्री बन्नलाई एकचोटी दिल्ली भ्रमण गर्नै पर्ने हुन्छ ।’ र बेला—बेलामा यस उखानलाई हाम्रो नेताहरुले प्रमाणित पनि गर्दै आएका छन् ।नेपालका नेताहरुमाथि कुनै समस्या आइपर्यो भने वा कुनै प्रकारको सहयोगको आवश्यकता पर्यो भने भारतलाई गुहार्ने चलन हामीकहा चलि आएको छ । तर दुखद पक्ष केहो भने आपूm या आफ्नो पार्टीलाई पृष्टपोषण गर्न भारतीय सहयोग पाएर जन्मेका तथा हुर्केका नेताहरु न्ेपालका जनताहरुमा भारत विरुद्धको मानसिकता तयार गर्नमा पछि हटेका छैनन् ।

राणा शासन अन्त्यकोलागि थालिएको विद्रोह, पञ्चायत फाल्न गरिएको आन्दोलन, माओवादीको १०वर्षे जनयुद्ध र राजतन्त्रको समूल नष्टगर्नै आन्दोलन सबैको तानाबना भारतमै बुनियो तथा भारतमै बसेर आन्दोलनहरुको शुभारम्भ गरियो । आफ्नो पार्टी चलाउन प्रशासनिक खर्च होस या आफ्नो क्षेत्रमा विकासको नाममा होस हाम्रा नेताहरु भारतको सहयोगको सदैव अपेक्षा गरेको हुन्छ । भनिन्छ भारतीय दतावासमा जुन नेताको जति पकड छ, उसलाई त्यति शक्तिशाली नेपाली राजनीतिमा मानिन्छ । नेताहरु आफ्नो बाल—बच्चाहरुको विभिन्न छात्रवृतिहरुकोलागि भएपनि आफ्नो सम्बन्ध बलियो बनाएर राख्न चाहन्छ । तर, यी कुराहरु सत्य भएपनि नेपालका नेताहरुको चरित्र बुझिनसक्नु देखिन्छ ।

एकातिर हरेक क्षेत्रमा भारतका सहयोग लिएर आफ्नो राजनीतिदेखि आफ्नो जीविकोपार्जन गरिरहेका हाम्रा नेताहरुको भारत विरोधी भाषणहरु जब पत्र—पत्रिकाहरुमा पढ्न पाइन्छ, त्यतिबेला नेताजीहरुको चरित्र हेरेर लाग्छ हामी विकास गर्न अझै धेरै समय लाग्छ । आपूmहरु भारतबाट जस्तोसुकै सहयोग लिन पनि पछि नपर्ने हाम्रा नेताहरु आफ्ना देशका जनताहरुको बीचमा भारतलाई नेपाल विरोधी राष्ट«कोरुपमा दर्शाएर के गर्न खोजेकोहो, पत्ता लगाउन धेरै मुस्किल छ ।




आपूmलाई केही भयो भने भारततिर कुद्ने नेताहरु आपूm बाहेक अरु दलकाकोही भारततिर गयो भने त्यसलाई नराम्रो तरिकाले जनताको बीचमा प्रस्तुतगर्ने बानी किन लागेको होला ? यो प्रवृति एउटा मात्र पार्टीको नेतामा भए त हुन्थ्यो नि, सबै पार्टीका नेताहरुको चाला यही नै अहिले सम्म देखिएको छ ।

र्
म बाहेक अरुकसैले भारतबाट सुविधा नपाओस’ भन्ने सोंच हो कि भारत वा ‘कसैलाई धम्क्याउँदा बढी भागबण्डा पाइन्छ’ भन्ने सोंच हो, बुझिनस्कनु छ । या भारतले नै यस्तै सम्बन्ध चाहेको हो हाम्रो नेताहरुसँग ? ‘नेपाली जनताले भारतबाट लिने गरेको सहयोगकोवारेमा थाहा पायो भने कतै आफ्नो पर्दाफास त हुदैन ?’ यस कारणले पनि हाम्रा नेताहरु आम जनमानसमा आपूmलाई प्रवल विरोधी देखाउने नाटक गरेको हुनसक्छ । नेपाली जनतालाई भ्रममा राखेर हण्डीखाने प्रवृति जबसम्म हाम्रा नेताहरुले त्याग्दैनन् तबसम्म हामी साँचो राष्ट«को निर्माणगर्ने कल्पना गर्न सक्दैनौ । नेपाली जनताले पनि हाम्रा नेताहरुको यस्ता द्वैध चरित्रलाई बुझ्नुपर्ने अति आवश्यक छ । कि त हाम्रो नेताहरु कसैबाट केही लाभ नै नलेओस् वा लिन्छ भने त्यसतै कुरा गएर आफ्ना जनताहरुको बीचमा गर्नसक्नु पर्छ ।

अहिले विभिन्न हाम्रा नेताहरुको दिल्लीमा उपचार गराउने कुरालाई लिएर नेपाली राजनीतिको वृतमा सत्ताधारिहरुको टाउको दखिरहेको छ । विभिन्न शंका—उपशंका गरिराखिएको छ । नेपालका सर्वसाधारण जनतालाई थाहा नभएपनि हाम्रा नेताहरुलाई राम्ररी थाहा छ होलाकि दिल्लीमा नेताहरु कस्तोखाले उपचार गराउन जाने गर्छन । अनि ‘आपूm गयो भने देशहीतकोलागि र अरु गयो भने देश भाँड्नकोलागि’ जस्तो वाहियात भाषणहरु किन ? यावतकुराहरु सोंचेर, हेरेर अब नेपाली जनताहरु वस्तविक रुपमा सोंच्न वाध्य भएका छन् कि कतै हाम्रा नेताहरु साच्चिकै देशलाई समृद्धि र विकाशबाट सँधै—सँधैकोलागि टाढा त राख्न चाँहदैन ? कि आफ्नो भ्रमको राटीलाई जनताको टाउकोमा सेक्दैराखौं भन्ने सोंच छ ?

होइन, यदि भारत वास्तविकरुपमा नेपालको अहित चाहन्छ, नेपाली जनताको कुभलो चिताउँछ भने हामी किन विभिन्न बहानामा भारतको सहयोग र सानिध्यता चाहन्छौ ? किन हामी आफ्नो आत्मविश्वास बढाउने तिर सोंचिराखेका छैनौं ? पशुपतिनाथले हाम्रो चरित्र सुधार्न प्रेरणा हामीलाई देओस् ।

Saturday, April 18, 2009

यस्तो पाराले संविधान बन्दैन !



सुझाब संकलनकालागि गएका सभासदहरुको अनुभव : यस्तो पाराले संविधान बन्दैन
—निलम वर्मा, सभासद, मधेशी जनाधिकार फोरम नेपाल

म संविधान निर्माणकोलागि जनताको अभिमत बुझ्ने त्रmममा नवलपरासी र तनहुँ जिल्लामा गएकी थिए । संकलनको त्रmममा तनहँु र नवलपरासीको नगरपालिकाको सभाहलमा संयुत्तm टोलीको छलफल गरियो ।

प्रश्नको सन्दर्भमा मधेशी जनताहरुले नेपाली भाषामा मात्र रहेको प्रश्नावलीको विरोध गर्यो । मधेशी जनताहरु विरोधमा आएकोमा हामी ३ जना मधेशी सभासदलाई सम्हाल्न लगाइयो । मधेशी जनताहरुको माँग रहेको थियो, ‘प्रश्नहरु हाम्रो मातृभाषामा हुनुपर्छ’ । साधारण जनताकोलागि ४५ पन्नाको २९४वटा प्रश्नहरुको उत्तर किन र कसरी दिने ? जनताहरुको गुनासो थियो,‘संविधान बनि सकेको छ, तपाईहरु आफ्नो भत्ता पचाउन मात्र आउनु भएको छ, यो सुझाव संकलन मात्र एउटा नाटक हो’ । नवलपरासीमा थारुहरुले हाम्रो कार्यत्रmमलाई एकदिन विथोलेको थियो ।

हाम्रो टोलीले घरदैलोमा गएर मत संकलनगर्ने भनेपनि एउटा पनि घरमा हामी जान सकेनौं । ६ हजार जनसंख्या भएको एउटा गाउँमा मात्र ७० वटा जति प्रश्नहरु बाँडिनु एकदमै अव्यवहारिक लाग्यो । ६ हजारमा जब ७० जनाको मत मात्र आउछ भने बाँकीको भावनालाई नयाँ बन्ने संविधानले समेट्ने कि नसमेट्ने ? कुनै—कुनै गाउँमा त ५० वटा जति प्रश्नहरुमात्रै बाँडियो । प्रश्नहरु पूर्णतया अवैज्ञानिक तरिकाको थियो । जनताहरुले नबुझ्ने जटील थियो । प्रश्नहरुवारे सभासदहरुलाई कुनै प्रकारको पूर्व जानकारी तथा ट«ेनिँग केही दिइएको थिएन । म त भन्छु ५० प्रतिशत भन्दा बढी सभासदहरु ती प्रश्नहरुको जवाफ दिन सक्तैनन् । प्रश्नावलीको सन्दर्भमा प्रत्येक समितिहरुमा जुनरुपले व्यापकरुपमा छलफल हुनुपर्दथ्यो त्यस्तो केही भएन ।

आम जनताहरुले हाम्रो प्रश्न भन्दापनि ‘भारत—नेपालको खुल्ला सिमाना हुन पर्ने, इन्डियाको गाडी नेपालमा जसरी विना रोकटोक चल्छ, त्यसैरुपमा नेपाली गाडीहरुपनि भारतमा बिना रोकटोक आउन जानु पर्यो । बेरोजगार छौं रोजगारी चाहिन्छ । दलित जनजातिको बच्चा पढ्न पाउनु पर्छ, दलित जनजातिको छोरा—छोरीहरुको विवाह गर्न खर्च चाहियो र मधेश एक प्रदेश हुनु पर्यो ’ जस्ता प्रश्नहरु जनताले हामीसँग गरेका थिए । जनताले सडक, पुल, शौचालय, बच्चाको नोकरी, बृद्धा भत्ता समयमा नपाएको गुनासो, विधवा भत्ताको अव्यवहारिक नीतिको खारेजी लगायतका चाँसो देखाएका थिए ।

जनताहरुलाई न्यायालय, प्रान्तवारे जानकारी नै छैन त के विचार दिन्छन् । अभिमत संकलनको सन्दर्भमा जुन प्रकारले प्रचार—प्रसार हुन पथ्र्यो त्यसरी भएन । परासीमा ११ बजेदेखि हाम्रो कार्यत्रmम थियो र १२ बजे त्यहाँ प्रचार—प्रसार नै शुरु गर्यो, के भन्नु हुन्छ यसलाई ? शिक्षितवर्गहरुको टिप्पणि थियो,‘ यत्रो लामो—लामो धरै प्रश्नहरु जनता विरुद्धको षड्यन्त्र हो, भाषा स्थानिय भएन, प्रश्नहरु मातृभाषामा किन भएन ?’ २३ दिनमा ९६ गा.वि.स. र एउटा नगरपालिकामा कसरी अभिमत संकलन हुन सक्छ ? कतिपय बुद्धिजीबिहरुलाई त खबर समेत हुन सकेन ।

यसरी अभिमत संकलन गर्नु भन्दा एउटा टेप रेकर्डरमा जनताको आवाजहरुलाई रेकर्ड गरेर ल्याइनु पथ्र्यो । प्रमुख केही सीमित प्रश्नहरु मात्र लिएर जानु पर्दथ्यो जसलाई स्थानिय भाषाहरुमा अनुवाद गराएर लैजानु पर्दथ्यो । समय एकदमै कम भयो ।

हाम्रो जनताले बुझ्छ कि बुझ्दैनन् त्यो सबै नेताहरुले राम्ररी बुझ्नु पथ्र्यो त्यो नबुझेर ठूलो गल्ति गरेका छन् राजनैतिक दलहरुले ।

मेरो विचारमा यो त्रुटिपर्णछ, नत जनताको भावना आउँछ नत नयाँ नेपालको निर्माण हुन्छ । प्राध्यापक, वकिल लगायतका बुद्धिजीबिकहाँ नै प्रश्न पुगेन भने आम जनताले कस्तो सुझाव दिन्छ ? जसरी उत्कृष्ट संविधान बन्ने ढोल पिटिंदैछ, त्यसतो केही हुनेवाला छैन । सरकारको पैसा र सभासदहरुको समय वर्वाद गर्ने काम मात्र भएको छ । मधेशी जनता एकचोटी फेरि ठगिएको छ । मधेशवादी पार्टीहरुले आफ्नो धारणा आम जनतालाई बुझाउन जसरी आफ्ना कार्यकर्तालाई परिचालित गर्नु पथ्र्यो त्यस्तो नगरेर ठूलो गल्ति गरेको छ ।

आम जनताले हामीले लगेको प्रश्नमा खासै रुचि देखाएनन्

— सरिता गिरि, सभासद एवं अध्यक्ष, नेपाल सद्भावना पार्टी(आ.)

म जनताको अभिमत बुझ्ने त्रmममा पश्चिम नेपालको कैलाली र कञ्चनपुर जिल्लामा गएकी थिएँ । म जम्मा ८ दिन जति फिल्डमा जाने मौका पाएँ । आम जनताले प्रश्नमा भन्दा पनि आफ्नै थुप्रै सुझावहरु थिएका छन् । मुख्यरुपमा जनताले आपुmले भोग्दै गरेको सामुदायिक समस्या, लिँग विभेदको समस्याहरु सुझावको त्रmममा राखे । कैलालीमा तेस्त्रो लिँगी समेतले हामीलाई आफ्नो सुझाव दिएका छन् । प्रशिक्षक, कृषक, व्यापारीले अ—आफ्नो समस्या राखे ।नयाँ संविधानमा आफ्ना आकाँक्षाका कुरापनि नआएको होइन । शहरी क्षेत्रमा नियोजित ढँगले ‘सँघियताले देश टुत्रm्याउने हुनाले सँघीयतामा जानु हुन्न’ भन्ने प्रश्न पनि आए । ग्रामीण जनताहरु आफ्नो समस्याको आधारमा संविधान बन्नुपर्ने धारण राखे । ग्रामीण क्षेत्रमा महिलाहरुमाथि गरिराखिएको भेदभावका गुनासाहरु पनि आए ।

केही ठाउँमा त ‘तपाईहरु भत्ता पचाउन मात्र आउनु भएको छ,संविधान निर्माण त पहिला नै भइसकेको ’ भन्ने प्रश्नहरुपनि जनताले हामीलाई गरे । मालाई लाग्छ प्रश्नको जटीलताको कारणले नै यस्ता प्रश्नहरु जनताले हामीसँग गरेका हुन् । मैले जानु भन्दा अगाडी नै संवैधानिक समितिमा भनेको थिएँ कि समान्य जनताले बुझ्ने ड«ाफ्ट तयार गरेर जनतामा जानु पर्दछ । अहिलेको प्रश्नमा हामीले आपत्ति जनाएका थियौं । यसमा भाषयी जटिलता छ, लामा—लामा प्रश्नहरु छ त्यसैले जनमत संकलनका लागि उपयुक्त छैन । यो कुनै अवधारणा पत्र लेख्न गाइडकोरुपमा मात्र प्रयोग हुन सक्छ ।

हुन त हिजोको ६वटा संविधान निर्माण भन्दा यसपालिको संविधान निर्माणको प्रकृया अलि अग्रगामी छ । प्रश्नावलीमा रहेको २९४वटा प्रश्नको जवाफ ६०१ सभासद मध्ये कतिले दिन्छ या दिंदैन भनेर म भन्दिन ।मलाई लाग्छ कि ग्रमीण क्षेत्रमा जसरी हामी पुग्नु पथ्र्यो त्यसरुपमा हामी पुगेनौं । प्रचार प्रसार पनि भएन ।

विषयगत समितिले तयार गरेका प्रश्नहरुलाई संविधानविद्लाई जिम्मा लगाएर बढीमा ३ पेजको प्रश्नहरु सरल तरिकाको, विभिन्न मातृभाषामा अनुवादित भएको भए धेरै राम्रो हुन्थ्यो । सर्वसाधारण किसान, व्यापारी, कर्मचारीका समस्याहरु के छन्, ति समस्याहरुको संविधानमा सम्बोधन कसरी गर्न सकिन्छ त्यस अनुरुपको प्रश्नावली वैज्ञानिक र व्यवहारिक हुन्थ्यो । हामी सहमतिय प्रणालीमा गए मात्र जनताको संविधान निर्माण हुनसक्छ, कनै पार्टीविषेश या बहुमतिय प्रणलीमा गए जनताकोलागि कुनै पनि हालतमा संविधानको निर्माण हुन सक्दैन।

कस्तो महानता.....स्ववियू निर्वाचनले सँकेत गरेको नेपालको भविष्य...



मनोज झा मुक्ति


देशमा कुशल राजनीतिकर्मीको उत्पादन गर्नु, राजनीतिक संस्कार निर्माण गराउने उद्देश्यले विद्यार्थीलाईँ राजनीति गर्ने मौका दिइन्छ । विद्यार्थीले राजनैतिक सँस्कार सिकून भनेर क्याम्पसहरुमा स्वतन्त्र विद्यार्थी युनियनको चुनावको प्रावधान गरिएको छ । हुनत धेरै पहिलादेखि नै नेपालमा स्वतन्त्र विद्यार्थी युनियनको चुनाव हुँदै आएको छ । देशको धेरैवटा क्याम्पसहरुमा चैत्र ६ गते र केही क्याम्पसहरुमा चैत्र १७ गते चुनाव सम्पन्न भएको छ ।


यसपालिको चुनाव कुनै पहिलो त थिएन, तर अरु बेलाको चुनाव जस्तो पनि रह्न सकेन । यो चुनावले देशको राजनीति कुन अवस्थामा छ र भविष्यको राजनीतिक कता जाँदैछ, त्यसको संकेत गरेको छ । हुनत विद्यार्थीको चुनावमा अन्य चुनावभन्दा अलि बढ़ि नै मारिपीट, होहल्ला हुनुलाई सामान्य मानिन्छ । किनकि त्यसमा उमेरको दोष पनि रहने गर्दछ । यो कुरा बेग्लै हो कि अबत सांसद, जिविस र गाविसको चुनावमा विद्यार्थी चुनावभन्दा बढी नै होहल्ला र मारपीटको माहौल रहन्छ । त्यसमा यो पनि मान्नसकिन्छ कि सांसद, जिविस र गाविसको चुनाव लड़नेहरु विद्यार्थी राजनीतिबाट नै आएका हुँदैनन् त्यसैलेले सबैमा राजनीतिक संस्कार नभएको पनि हुन सक्छ ।


आजका युवालाई भोलीको देशको भविष्य भनिन्छ । त्यसैले सरकार र समाजको प्रयास रहेको हुन्छ कि देशका युवा शिक्षित र संस्कारित होउन । प्रसंग छ युवासँग जोडिएको विद्यार्थी राजनीतिको । यसपालिको स्वतन्त्र विद्यार्थी युनियनको चुनावमा खासगरि मधेशमा जुन नजाराहरु हेर्न पाइयो त्यसले धेरैहद सम्म नेपालको र विषेशगरि मधेशको आउने भविष्यलाई वर्णन गर्दछ । एउटा सांसदको चुनावमा जुन प्रकारको तामझाम र तरिका देखिदैन त्यस प्रकारको पजेरोमा प्रचार—प्रसारको झाँकी लगायतका चुनावी रौनक विधार्थी चुनावमा देखियो । त्यसमा पनि एउटा—दूइटा होइन ५÷५, ६÷६ वटा पजेरोमा चुनावको प्रचार गरिनु एउटा विद्यार्थी नेताको शौख थियो या बाध्यता ? या आउने भविष्यको कुनैपनि चुनावहरुमा गरिने प्रचार—प्रसारको तरिकाको तरिकाको भावि रुपरेखा ? जब एउटा विद्यार्थीको चुनावमा –जसको कुनै प्रकारको आम्दानी हुँदैन) यस प्रकारले खर्च गरिन्छ मात्र प्रचार—प्रसारमा त अन्य—अन्उचुनावमा या यी विद्यार्थी नेता नै जब देशको राजनीति गर्छन तब के गछैन् ?हो, कुनै पेशागत संघ÷संस्थाको चुनाव यदि भएको भए त्यति आश्चर्यको कुरा हुने थिएन ।


प्रचार—प्रसार बाहेक मतदातालाई खुवाउनु—पिलाउनु अलावा जेबखर्च दिने जुनप्रकारको संस्कृति बढ़िरहेको छ, त्यसले कुन प्रकारको राजनीतिक संस्कार हाम्रा भविष्यका नेताल सिखिरहेका छन् ? पहिलो कुरा कि एकटा विद्यार्थीसँग यतिका पैसा कहाँबाट आयो ?दोस्रो कि यस्ता नेताबाट भविष्यमा देशको राजनीति भ्रष्टाचार मुत्तm हुने आश कति गर्न सकिन्छ ? चुनावमा मतदान गर्नकालगि लाइनमा उभेका विद्यार्थीसँग कुनै प्यानलमा भएपनि व्यत्तिmगत मतकोलागि आग्रह गरिंदै थियो ।


एउटा पार्टीको भातृ संगठनको रुपमा चुनाव लडेपनि व्यक्तिगत रुपमा मत माग्नु, कुन प्रकारको राजनीतिक संस्कारलाई बढाबा दिइएको हो ? यदि यहि कुरा हो भने स्वतन्त्र रुपमा चुनाव किन न लडने ? के यसले पार्टीभन्दा गुटबन्दी राजनीतिलाई बढाबा दिने सँस्कार विकसित गर्न खोजिएको हो ? वा पार्टीप्रति अविश्वास राख्नुपर्छ भन्ने सँस्कारलाई बढावा दिन खोजिएको संकेत हो ? त्यसतै लाइन लागेका मतदातासँग आफ्नो जातिको उम्मेदवारलाई मतदिन भनेर खुलेआमरुपमा चिच्याउनुले जातिवाद राजनीतिलाई मलजल हालेको होइन र ?


स्वतन्त्र विद्यार्थी युनियनको चुनाव देशकालागि भावी नेता जन्माउने एउटा माध्यम हो । जुन प्रकारले अन्य चुनावपछि नेता या दलहरुसँग चुनावी खर्चको विवरण मागिन्छ, त्यसै प्रकारको प्रावधानलाई कठोरतापूर्वक पालन हुन्छ कि हुँदैन ? भविष्यको राजनीतिलाई यदि एउटा सही बाटोमा ल्याउनु छ भने यस प्रकारले भएको स्वतन्त्र विधार्थी युनियनको चुनावलाई सरकार, राजनीतिक पार्टी एवं सम्बन्धित पक्षहरुले सत्रिmयतापूर्वक जाँचगरि आफ्नो जिम्मेवारी देखाउनु अति आवश्यक देखिन्छ । यदि राजनीतिक संस्कार नै यहि हो भने त कुनै कुरै होइन ।


हामीले विचारपूर्वक मनन गर्न जरुरी छ कि हामीहरु कुन प्रकारको राजनीतिक रुपरेखा बनाउन चाहन्छौ ? यदि यस प्रकारको देशको भविष्यप्रति हामीहरु गम्भीर हुँदैनौ भने देशको भविष्य कस्तो हुने हो ? यसपालिको स्ववियु चुनावको विकृतिहरुलाई हटाउनु विषेश गरि सरकार र राजनीतिकपार्टी सबभन्दा ठूलो चुनौती रहेको छ ।

कस्तो महानता.. ? नयाँ नेपालका प्रधानमन्त्रीको गणतान्त्रिक भाषण...

मनोज झा मुक्ति
हाम्रो देशमा सबैथोक नयाँ भएको छ । नहोस पनि किन ! देशमा संविधानसभाको चुनाव नयाँ, जम्बो आकारको संविधान सभा नयाँ, राजतन्त्र फेरिएर गणतन्त्रात्मक देश भएको नयाँ, यस्ता यस्तै प्रायः धेरै कुरा नयै नयाँ नै भएर होला जनतादेखि नेता सम्म, पियन देखि हाकिम तथा कृषक, व्यापारी, पत्रकार, लेखक, मजदूर लगायत सबै तह र तप्काका मानिसहरुले नयाँ नेपाल बाहेक अरुकुरा कमै गरेका भेटिन्छन् ।
पुरै देश नै नयाँ भएको बेलामा संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्र नेपालका प्रथम प्रधानमन्त्री नयाँ नहुने त कुरै भएन । १० वर्षे जनयुद्ध पछि त्रmान्तिको बलमा प्रधानमन्त्री हुनुभएका पुष्पकमल दहाल æप्रचण्ड”को नाम वास्तविकरुपमा कर्म वहाँको कर्म अनुरुपकै रहेको प्रमाणित भएको छ । देशको प्रधानमन्त्री हुनुहुन्छ पुष्पकमल दहाल र वहाँ नै æप्रचण्ड”को नामले एकिकृत नेकपा माओवादीको अध्यक्ष हुनुहुन्छ ।
प्रधानामंत्रीको रुपमा सदन भित्र बोल्दा वा विभिन्न टोलीको डेलिगेसन लिएर जानेसँग कुरागर्दा वहाँ फूल जस्तै कोमल भएर प्रस्तुत हुनुहुन्छ र पार्टीका कार्यकर्ताहरुको बीचमा æप्रचण्ड” जस्तै विवेकहीन, हठी जस्तो कुरा गर्नुहुन्छ । अचम्मको कुरा त के छ भने जुनसुकै बेला नेपाली जनताको हवाला दिंदै आफ्नो दुइटै चरित्रमा वहाँ धेरै हदसम्म सफल हुनु भएको छ । मिठो कुरागर्दै कहिल्यै पुरा नहुने आफ्नो आश्वासनले देशी देखि विदेशी सम्मकालाई थामथुम पार्न एकातिर सफल हुनुभएकोछ भने अर्कोतिर कुराकुरामा विद्रोह गर्ने धम्की दिएर सत्तामा टिकिराख्न सफल भई नै रहनु भएको छ ।

सम्भवतः अब वहाँले आफ्नो यी चलाखीपूर्ण चालहरु आम जनता र विदेशी हीतमीतहरुले थाहा पाइसक्यो भनेर राम्ररी बुझिसक्नु भएछ, त्यसैले होला अब बोल्नै नहुने छाडा शब्दको प्रयोगगर्न थाल्नु भएछ । एउटा प्रधानमन्त्रीले सार्वजनिक ठाउँमा जथाभावी बोल्न मिल्छ कि मिल्दैन ? हाम्रो देशमा गणतन्त्र संस्थागत भइनसकेर होला नेपाली जनताहरुले गणतन्त्रमा यस्तै हुँदाहुन भनेर नै सोंचेका छन कि ? तर, आफ्नो मूलुक भर्खर गणतन्त्रको बाटोमा वामेसर्न खोजेपनि धेरै नेपालीहरुले ठूल्ठूला गणतान्त्रिक देशको नियम कानून र व्यवहारका वारेमा धेरथोर जानेका छन् । अरु गणतान्त्रिक मूलुकका प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रीहरु त त्यति छाडा हुँदैनन् क्यारे ! अनि हाम्रो प्रधानमन्त्री र मन्त्रीहरु फेरि किन छाडा भए ? मूर्ख नै हो भनौ भने प्रधानमन्त्रीले स्नातक सम्मको अध्ययन गर्नु भएको छ ।
विवेकहीन पनि कसरी मान्ने ? कहिलेकाहीं मीठो र गहकिलो कुरा पनि गर्छन नै । आम नेपाली जनता अहिले अलमलमा परेका छन् । हुनत हाम्रा प्रधानमन्त्री र मन्त्रीहरु अरुदेशको नक्कल होइन, नेपालमा बेग्लै किसिमको आफ्नो माटो सुहाँउदो व्यवस्था हुनुपर्ने धारण पनि बेला बेलामा नराखेका होइनन् । हो, यो पछिल्लो व्यवस्थाको बारेमा नेपाली जनता अनभिज्ञ भने पक्कै छन् । कतै त्यस्तै व्यवस्था अन्तर्गत नै यो जेपायो त्यो बोल्ने, आफ्नो मर्यादाको वास्ता नै नराखी बोल्ने कुराहरु त हुँदैनन् ? नेपाली जनताले सोंच्न थालेका छन् ।
एकीकृत नेकपा माओवादी र उनका सहयोगीहरुले यस्तै प्रकारको व्यवस्था ल्याउन चाहेका हुन त ? के नेपालमा ल्याउन खोेजिएको नयाँ व्यवस्थामा प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रीहरुले ठग र बहुलासरह नै बोल्ने हो त ? या मनपरि गर्नेलाई बाध्य भएर सबैले समर्थन नै गर्नुपर्ने जस्ता बाध्यता हुने हो । के यी यावत प्रश्नहरु हाम्रा नयाँ नेपालका गणतान्त्रिक प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रीहरुले आफ्नो बोली र व्यवहारले देखाइरहेका छैनन् त ? संघीय लोकतान्त्रिक गणतनत्र संत्रmमणकालिन अवस्थामा रहेको बेलामा आफ्नो जिम्मेवारी गम्भिरताका साथ प्रधानमन्त्री र मन्त्रीहरु तथा सहयोगी, विपक्षी या तथस्टरुपमा बसेका दलहरुले बहन गरेनन् भने नयाँ नेपालमा हुने नयाँ व्यवस्था वास्तवमा विश्वसामु नमूना नै बन्ने छ, सकारात्मक होइन कि नकारात्मकरुपमा । हामी र हाम्रो देश असफल र छाडाको पार्यायवाची नबनौं । नेपाल र नेपालीहरुको शान र मान बढाउन नयाँ नेपालका गणतान्त्रिक प्रधानमन्त्रीज्यूले नयाँ ढँगले शुरुवात गर्ने हो कि ? आफ्ना विकृतिहरु हटाएर !

अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन : कचोट लागल


मनोज झा मुक्ति


१९म् अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन वितलाहा चैतमासक २९ आ ३० गते नेपालक राजधानी काठमाण्डूमें सम्पन्न भेल । मूदा जाई तरहक उत्साह मोनमें छल, बहुत कचोट लागल सम्मेलनकेँ उद्घाटन आ समापन देखिकऽ ।
सम्मेलनक जिम्मा पओने वरिष्ट पत्रकार एवं राजनीतिकर्मी रामरिझन यादवक कार्यक्षेत्र काठमाण्डूसँ बाहर भेलाक कारणे आयोजन कठीन होएब निश्चिते छल । अखनधरि देखल जाएबला मैथिली कार्यत्रmम आयोजनाक खराब पक्ष सबसँ अछुत इ सम्मेलन नहि रहऽ सकल । कोनहुँ समिति बनएबाकालमे, समितिमे रहिकऽ जाइ तरहे बहुतोलोक सुति रहैत छथि सैह विडम्बना अहु सम्मेलनमें देखलगेल । अपन—अपन काज गछियोकऽ नई करबाक प्रवृति अखन अपना समाङ्गसँ नई हटल से प्रमाणित केलक अछि ई सम्मेलन ।
सम्मेलनमे नेपाल आ भारत दूनु देशक मिथिलाञ्चलसँ ३०० सहभागी होएबाक बात छल । सहभागिसब ऐलथि, मूदा निक जकाँ व्यवस्थापन नहि भऽ सकल । सम्मेलनमें मैथिली आ मिथिलाप्रति अनुरागी कम आ कोनो पार्टीक कार्यकर्ता सभक बेसी जमघट बुझाइत छल ।
२९ गते ९ बजे बसन्तपुरसँ धोती—कुर्ता आ पाग पहिरिकऽ झाँकी निकालबाक कार्यत्रmम छल, मूदा ११ बजेधरि एक डेढसय लोकक उपस्थिति मात्रे छल । मैथिली आ मिथिलासँ सम्वद्ध सँघ—संस्थासब काठमाण्डू उपत्यकामें ३ लाखसँ बेसी मैथिल रहल ठोकुवा दाबी कयल जाएत अछि । अपनाके मैथिलीक योद्धा कहऽबला किछु गोटे त उपराग देबऽमे सेहो पाछा नई परलथि "जे हमरा खबरि किया नई भेल" ? देखिकऽ अजगुत लागल आ दुःख सेहो जे जौ हम अपना आपके मैथिलीके योद्धा कहैत छी त कि व्यत्तिmगतरुपसँ खवरि केनाई जरुरिए छियै ? कोनो माध्यमसँ जानकारी होएब पर्याप्तता नहि छई ?
हँ, कहुनाकऽ विलम्बेसँ सही बसन्तपुरसँ जाउलाखेलधरि धोती—कुर्ता त कमसम, मूदा पागक प्रदर्शन करैत जुलुश पहुँचल । जुलुश प्रदर्शन वास्तविकरुपमे एहि सम्मेलनक सबसँ नीक पक्ष रहल । एकरा नेपालमें मिथिला आ मैथिलक स्थानके प्रमाणित करबामे ठोस कदमके रुपमें अवश्य लेल जा सकैय ।
सम्मेलनके उद्घाटन कयलथि नेपालक प्रधान मन्त्री प्रचण्ड । ओ अपना भाषणसँ सहभागि सभक मोन जितलथि ताइमें कोनहुँ शंका नई । काठमाण्डू उपत्यकामे कवि कोकिल विद्यापतिक शालिक रखबाक बात सहभागि सबहक दवावपर त कहलथि मूदा राखि देताह ताइके बादेमे पतियाओल जाऽसकैय । तहिना सम्मेलनमे उपस्थित अतिथि फोरमक नेता जय प्रकाश प्रसाद गुप्ता त अन्तराष्ट्रिय विमानस्थलक नाम विद्यापति विमान स्थल होएबाक कहिकऽ प्रचण्डसँ भाषणमें एक कदम आगा रहल प्रमाणित कयलथि । ओ कहलथि जे "जौ काठमाण्डूक विमान स्थलक नाम विद्यापति विमान स्थल नई होएत त निजगढमे विद्यापति अन्तराष्ट्रिय विमान स्थल बेगर हमसब मानऽबला नई छी" । जे हुए बहुत निक गप्प जौं हुनक बात मात्र नेताक भाषण जौं नई होए ।
सम्मेलनमें नेपालक हिन्दी आन्दोलनके अगुवा आ अन्तराष्ट्रिय मैथिली परिषद् नेपालक अध्यक्ष राजेश्वर नेपाली अपनाके आसन ग्रहण नई कराओलगेल कहिकऽ सम्मेलन बहिष्कार करबाक घोषण त कएलथि मूदा किछुएकालकबाद ओ मञ्चपर आसीन भेल नजरि औलथि । पहिलदिनक कार्यत्रmम साँस्कृतिक कार्यत्रmम करैत सम्पन्न भेल ।
दोसर दिन अर्थात चैत ३० गते ९ बजेसँ विचार गोष्ठीक कार्यत्रmम छल, मूदा कार्यत्रmमक संयोजक बहुभाषाविद् गंगा प्रसाद अकेला अपने १० बजे एलाह । विचार गोष्ठीमे दूगोट कार्यपत्र प्रस्तुतक कार्यत्रmम छल, ताइमे नेपालदिससँ राम रिझन यादव आ भारतदिससँ डा धनाकर ठाकुरक कार्यपत्र रहनि । कोनो सम्मेलनमे विचार गोष्ठीक सत्रके बहुत पैघ महत्व देल जाइत छैक, मूदा एहि सम्मेलनमे विचार गोष्ठीक सत्र सबसँ महत्वहीन बुझि पडल । विचार गोष्ठीमे गन्थन क कऽ कोनो निष्कर्ष निकालि ताइपर कार्य आगु बढएबाक कोनो सम्मेलनके मुख्य उद्देश्य रहल करैत अछि । मूदा एतऽ अपन अपन कार्यपत्र प्रस्तुत कयलाकबाद प्रस्तोतासब आ अधिकाँश मञ्चपर आसिन व्यक्तिसब मञ्च छोडिकऽ निपत्ता भऽ गेलाह । ओना टिप्पणी करबाकलेल कुल २६ गोटे मञ्चपर गेलाह, मूदा कार्यपत्रपर बहुत कम आ प्रायःलोक अपने राग अलापि कऽ विचार गोष्ठीके अपन व्यक्तिगत विचारक मञ्च बनावऽमे सेहो पाछा नई परलाह । सम्मेलन कोन निष्कर्षपर पहुँचल कोनो सहभागिके मालुम नई भऽसकल ।
सम्मेलनमे विचार गोष्ठीक सत्रकबाद कवि गोष्ठीक आयोजना भेल छल । ताही बीचमे सम्मेलनक संयोजक रहल राम रिझन यादव अन्तराष्ट्रिय मैथिली परिषद् नेपालक समितिके नव कार्यकारिणीक घोषणा कएलथि । जाहिमे प्रमुख पदक अलावा जे जे मञ्चपर आबि बजने छलथि ओ सबगोटे कार्य समितिक सदस्य भेल घोषणा कएलथि । घोषणा कएल पश्चात किछु युवा एहन गलत प्रत्रिmयाके विरोध करैत हो—हल्ला करबाक शुरु कएलथि । ओना सम्भवतः ई पहिल एहन कार्यसमितिक निर्माण होएत जाहिमें मञ्चपर जे जे जाकऽ बजलाह ओ सबगोटे सदस्य बनाओलगेल होई ।
तहिना कवि गोष्ठीक सत्रमे सेहो तहिना देखलगेल । कवि गोष्ठीमें सोंचसँ बेसी कवि लोकनिकेँ कविता वाचनकलेल आओल मूदा समयक आभावके कारणे सभ कविके मौका नई देबऽ सकलाक कारणे किछु कविके मोनमे दुःख होएब अतिश्योत्तिm नहिं । काठमाण्डूमे सेहो एतेकरास मैथिली कविता आएब बहुत उत्साहक पक्ष कहल जाऽसकैया मैथिलीक लेल । सम्मेलनमें किछु गोटे सम्मेलनकेँ वास्ते अपन काठमाण्डू यात्राके व्यक्तिगत काजमें सेहो प्रयोग करैत देखलगेल । सम्मेलन छोडिकऽ काठमाण्डू घुमबाक वास्ते आएल जकाँ देखनिहार सहभागि सबहक सेहो कमी नई छल ।
समग्रमे मैथिलक वर्चश्वताके काठमाण्डूमे स्थापित करबाक पक्षमे सफल रहल १९म् अन्तराष्ट्रिय मैथिली सम्मेलन, उद्देश्य आ निष्कर्ष बिहीन बुझाएल ।



jmukti@gmail.com
काठमांडू नेपाल

दू गोट हाइकू

१. अ‍ैंठन छोडू २. निन्नसँ उठू
जौर बेंओत करु मिथिला कतऽ छल
घर खसत । पुछत लोक ।

मनोज झा मुक्ति

Friday, April 17, 2009

२१म् शताब्दीक मैथिल

जे चाही से दऽ देव

हँ कऽ देव
आहाँके जे चाही से दऽ देव ।
नईं छोडू अप्पन आश
करु हमरा पूर्ण विश्वास
चिन्हि लिय हमरा, हम शुद्ध मैथिल छी,
प्राणे जँ लऽ लेब, तखनो ई कहैत रहब
हँ कऽ देव, आहाँके जे चाही से दऽ देव ।

यौ हम २१म् शताब्दीक मैथिल छी ।
हमरा नीक जकाँ बुमmल अछि, जे
माय—बाबु हमरा, हमरालेल नईं जन्मौलक
हम त जनमि गेलहुँ ।
ओतऽ, हमरे बुद्धिए छल विलक्ष्ण जे
हम कहुना कऽ पढि लेलहुँ ।
मूदा, ई हम्मर अप्पन गप्प अछि ।
बिनु जनेनही आहाँके जेब खाली हम कलेब
हँ कऽ देव, आहाँके जे चाही से दऽ देव ।

हमही छी नेता जौं मिथिलाके बात करब
काज करु आहाँ, हम योजना बनवऽमे रहब
नेता ओ समाजसेवी छी तेँ कोनाकऽ देब हम चन्दा
पाई, परिश्रम छोडिकऽ जे चाही दऽदेव
हँ कऽ देव, आहाँके जे चाही से दऽ देव ।

हम ओ मैथिल थोरबे छी जे सागपात खाइत रहब
आधुनिक युग छई तेँ, भोर साँमm मधुशाला जाइत रहब
खेतमें काज हम कोना करब, लिल—टिनोपाल चढौने छी
माथ मुडाकऽ दोसरके खेलहुँ, ओकरे पान दबौने छी
काज कियो करे, जस हमही लऽलेब
हँ कऽ देव, कआहाँके जे चाही से दऽ देव ।


मनोज झा मुक्ति