Saturday, October 10, 2020

देशमे व्याप्त संस्थागत भ्रष्टाचार ः बाजत के ? (भाग–२)

   देशमे व्याप्त संस्थागत भ्रष्टाचार ः बाजत के ?

(भाग–२)

–मनोज झा मुक्ति

अपना देशमे भ्रष्टाचार कतेक अछि ? कोना होइत अछि ? ई प्रश्न जौं किनकोसँ कएलजाए त उत्तर की भेटत से कहवाक बात नहि । हँ भ्रष्टाचार कोना होइत अछि से सर्वसाधारण मेसँ बहुत कमेके बुझल हैतन्हि । आश्चर्यक बात त ई अछि जे भ्रष्टाचारक खेती कएनिहार भ्रष्टचार निर्मूल करवाक बात करैत अछि । भ्रष्टाचारे भ्रष्टाचारसँ भरल एहि देशमे उदाहरणक कमी नहि अछि । देशक अधिकांश लोक कोनो ने कोनो तरहें भ्रष्टाचारमे लिप्त अछि । फर्क एतवा अछि जे कियो कम त कियो बेसी ।

गामक एकटा पान दोकानपर पान खएवाकलेल पहु्ँचलहुँ । पान लगएवालेल दोकानदारके कहि ठाढ छलहुँ त हमरासँ पहिनेसँ दोकानपर ठाढ  दूगोटे अनचिन्हार लोक ओतऽ बातचीतमे लीन छलाह । पानक प्रतिक्षामे बैसल हमर ध्यान ओहि दूनुगोटेक बातपर गेल । दूनुगोटे भ्रष्टाचारक सम्बन्धमे बात करैत छलाह । बात होइत छल विद्युत कार्यालयक सन्दर्भमे । सम्भवतः ओहिमेसँ एकटा विद्युत कार्यालयमे नोकरी कएनिहार रहथि आ दोसर हुनक कोनो सरकुटुम्ब जकाँ बुझाइत छलाह । हुनका सबहक बातचितक आधारपर भ्रष्टाचारक एकगोट संस्थागत नमूना हम प्रस्तुत कऽ रहल छी ।

देशक जनताके सुविधाकलेल विद्युत कार्यालयके स्थापना भेल अछि । देशक प्रत्येक गामघरमे विजुली पहुँचै आ विजुली वापतके राजश्व सरकारके असुली होइ से विद्युत कार्यालयके मुख्य काज अछि । कोनो गाममे विद्युतके पोल पहु्ँचएवाक होइ या कोनो घरमे मिटर लगबावऽके एहिमे खुलेआम भ्रष्टाचार कएल जाइत अछि आ बाजऽबला केओ नई अछि । अपना घरमे मिटर लगएवाकलेल कतेकोबेर कार्यालयके चक्कर लगबऽ परैत छैक । कार्यालयक चक्कर लगौलाकबाद सम्वन्धित कर्मचारीके बिना किछु लेने देने काज होएव बहुत मुस्किल अछि । कोनो गाममे या व्यक्तिगतरुपसँ विद्युत पोल लेवाकलेल त आरो मोस्किल अछि आ ठाहाठाही भ्रष्टाचार । एक त बहुत सोर्सफोर्स आ अनुनय विनयसँ पोल भेटैत छैक । कार्यालयसँ सम्बन्धित स्थानपर लऽजएवाकलेल सरकारेदिससँ पोल ढोआनीक पाइ देवाक या सम्वन्धित स्थानपर कार्यालयद्वारा पहुँचयवाक नियम छै । मुदा, अधिकांश जनताके अपने पाई खर्चकऽ पोल लऽजाय परैत छैक । केओ पोल ढोआनीक पाईके चर्चाधरि नई करैत अछि आ कार्यालयक कर्मचारीके कहवाक कोनो प्रश्ने नहि । कोनो नेता टाइप जनता जौं एकर चर्चा कएलक त ओकरा पोले लेनाइ कठीन भऽ जाइत छैक । अर्थात अधिकांश जिल्लामे विद्य्ुत पोलक ढुवानीक रकम शतप्रतिशत कार्यालयक हाकिम आ कर्मचारीमे बँटाजाइत अछि । दोसर पोल जहन सम्वन्धित स्थानपर पहुँचि जाइत अछि त पोल गारवाक जिम्मेवारी विद्य्त कार्यालयके होइत छैक । मु्दा पोल गारवाक काजमे खटनिहार प्राविधिक सम्वन्धित स्थानक जनतासँ भोजनक जिम्मेवारी त निर्वाह करवितेटा छैक, उपरसँ दक्षिणाक अभिलासा सेहो रहैत छन्हि । दुनुगोटाक गप्प जारिए छल, मुदा हमरा हडवडी भेलाक कारणे हम पान खाइत ओतऽसँ चलैत बनलहुँ ।

जनताके काज सुलभ तरिकासँ भऽजाई, जनतासँगे कोनो प्रकारक धोखा नई होइ ताहिलेल कार्यालय सबके निगरानी करवाकलेल जिल्ला–जिल्लामे सि.डि.ओ. कार्यालयक स्थापना कएलगेल अछि, जकरा पुर्ण अधिकार सम्पन्न बनाओलगेल छै । मुदा जहन स्वयं जिम्मेवार व्यक्तिए जौं ओहिमेसँ कमिशन लैत हो त जनता कतऽ जाएत ? विद्युत कार्यालय त एकटा छोटछिन नमूना मात्र अछि, अपना देशक कोनो निकाय नहिं अछि जे भ्रष्टाचारसँ अछुत हुए । ओना जाहि कार्यालयके खोजबिन करऽलागु, वएह कार्यालय या कहु वएह पेशा भ्रष्टाचारक अग्रणी स्थानमे देखाइ देत ।

गमघरमे एकटा कहवी छैक जे,‘पञ्चैतीमे झूठ नईं बजवाक चाही आ अदालतमे साँच नई बजवाक चाही ।’ जहने कहवी छैक त आइएसँ नई होएतै । ई कहवी कतेक सत्य छै या कि झूठ से प्रायसबलोक नीकजका बुझैत छी । जहन जे न्याय देवाक अधिकारी छै या कहु जतऽ न्यायक वास्ते जनता जाइत अछि ओतहि पाइयक बलपर मुद्दा फैसला होइ, ओहि देशमे आन आन कार्यालय आ आन आन पेशाक लोकसँ कि अपेक्षा कएल जासकैय ? कि ई बात निचासँ उपर तकके लोकके जानकारी नईं छै, जौं छई तहन मौनता किया ? के बजतै ?

सब पेशा आ कार्यालयमे भ्रष्टाचारक बात निचासँ उपरधरिक लोकके नीक जकाँ बुझल छैक, मुदा सबकेसब मौन रहि भ्रष्टाचार संस्कृतिके बढावा द रहल अछि । कानून त भ्रष्टाचार विरोधी बनले अछि, किछु भ्रष्टाचारीपर कारवाहीक बात सेहो सुनाइ दैत अछि, कि एहिसँ भ्रष्टाचार रुकतैक ?

जाधरि प्रत्येक मनुष्य भ्रष्टाचारके स्वयम् अपने मनसँ नई नकारत ताधरि ई सम्भव नहि बुझि पडैत अछि । ताँए अपन निश्चित मृत्युके प्रत्येक दिन जौं याद कएल जाए त लोकके मनसँ भ्रष्टाचार समाप्त होएत की ?

 

देशमे व्याप्त संस्थागत भ्रष्टाचार ः बाजत के ?

  देशमे व्याप्त संस्थागत भ्रष्टाचार ः बाजत के ?

–मनोज झा मुक्ति

अपना देशमे भ्रष्टाचार कतेक अछि ? कोना होइत अछि ? ई प्रश्न जौं किनकोसँ कएलजाए त उत्तर की भेटत से कहवाक बात नहि । हँ भ्रष्टाचार कोना होइत अछि से सर्वसाधारण मेसँ बहुत कमेके बुझल हैतन्हि । आश्चर्यक बात त ई अछि जे भ्रष्टाचारक खेती कएनिहार भ्रष्टचार निर्मूल करवाक बात करैत अछि । भ्रष्टाचारे भ्रष्टाचारसँ भरल एहि देशमे उदाहरणक कमी नहि अछि । देशक अधिकांश लोक कोनो ने कोनो तरहें भ्रष्टाचारमे लिप्त अछि । फर्क एतवा अछि जे कियो कम त कियो बेसी ।

चाह दोकानपर चाहक चुस्की लैत छलहुँ कि दूगोटे अनचिन्हार लोक ओहि दोकानपर पहँुचलाह आ चाह देवाकलेल दोकानदारके कहलखिन्ह । चाह पिवैत हमर ध्यान ओहि दूनुगोटेक बातपर गेल । दूनुगोटे भ्रष्टाचारक सम्बन्धमे बात करैत छलाह । बात होइत छल प्रहरीक सन्दर्भमे । सम्भवतः ओहिमेसँ एकटा प्रहरीमे नोकरी कएनिहार रहथि । हुनका सबहक बातचितक आधारपर भ्रष्टाचारक एकगोट संस्थागत नमूना हम प्रस्तुत कऽ रहल छी ।

समाजमे सुरक्षाक जिम्मेवारी, शान्ति सुरक्षाक जिम्मेवारी प्रहरीके दायित्व होइत छैक आधिकारिक रुपसँ । ककरोप्रति अन्याय नईं होइ अर्थात सबके न्याय भेटैक ताहिलेल सरकारद्वारा न्यायालयके व्यवस्था कएलगेल अछि । प्रहरीके ठगी,चोरी,जालसाजी, गुण्डागर्दी लगायतक काज रोकवाक जिम्मा होइत छैक । जहन प्रहरी अपने एहिकाजसबमे संलग्न होइ, तहन जनताक एहि तरहक समस्याके समाधान के करत ? प्रायः प्रहरी चौकीक काज कहुनाकऽ पाई उठाबिकऽ एस.पी.के देवाक काज लगभग लगभग संस्थागत भऽ गेल छैक । जौं कोनो चौकीसँ समयपर सकारलगेल रकम प्राप्त नई होइत छैक त ओहि चौकीक प्रमुखके जगेडा अर्थात जिल्लामे तानि लेल जाइत छैक आ ओकरा स्थानपर नयाँ चौकी प्रमुखके पठाओल जाइत छैक जे निश्चित समयपर रकम उगाही कऽ कऽ एस.पी.कार्यालयमे बुझबै चाहे जतऽसँ बुझवौक । ई बात पूर्णरुपें संस्थागत भऽगेल छैक । एकटा प्रहरी जवानसँ लऽकऽ प्रहरी मुख्यालयधरि ई काज होइत अछि, जे स्वयम् एहिकाजमे लागल होई ओ केना एकरा हटएवाक बात करत ? प्रहरी कार्यालय त मात्र एकटा उदाहरण अछि । अपना देशक कोनो निकाय नहिं अछि जे भ्रष्टाचारसँ अछुत हुए । ओना जाहि कार्यालयके खोजबिन करऽलागु, वएह कार्यालय या कहु वएह पेशा भ्रष्टाचारक अग्रणी स्थानमे देखाइ देत ।

गमघरमे एकटा कहवी छैक जे,‘पञ्चैतीमे झूठ नईं बजवाक चाही आ अदालतमे साँच नई बजवाक चाही ।’ जहने कहवी छैक त आइएसँ नई होएतै । ई कहवी कतेक सत्य छै या कि झूठ से प्रायसबलोक नीकजका बुझैत छी । जहन जे न्याय देवाक अधिकारी छै या कहु जतऽ न्यायक वास्ते जनता जाइत अछि ओतहि पाइयक बलपर मुद्दा फैसला होइ, ओहि देशमे आन आन कार्यालय आ आन आन पेशाक लोकसँ कि अपेक्षा कएल जासकैय ? कि ई बात निचासँ उपर तकके लोकके जानकारी नईं छै, जौं छई तहन मौनता किया ? के बजतै ?

जिल्ला स्तरमे सिडियो कार्यालयमे आम जनताक काज सबसँ बेसी पडैत छैक । सि.डि.यो. जिल्लाक सबसँ पैघ, शक्तिशाली आ जिम्मेवार अधिकारीक रुपमे मानल जाइत छैक । कोनो काज जौं जल्दिए करेवाक अछि त अपनासँ प्रायः सम्भव नहि अछि । अधिकांश सिडियो कार्यालयक बाहर लेखनदास एजेन्टकरुपमे काज करैत अछि । पासपोर्टक सन्दर्भमे चाहक चुस्की लैत ओसब गप्प करैत छलाह जे सेवाग्राहीसँ लेखनदास एक हजार टका कर्मचारीके देवाक बात करैत अछि, लेखनदास सेवाग्राहीक सोझेमे रकम उठौनिहार कर्मचारीके दैत अछि आ सेवाग्राहीक काज तुरत्त भऽजाइत छैक । जहन कार्यालय समय समाप्त भऽजाइत छैक त कर्मचारीद्वारा एजेन्ट लेखनदासके दूसय टका कमिसन वापत फीर्ता देल जाइत छैक । जहन जिल्लाक सम्पूर्ण जिम्मेवारी लऽ कऽ आएल सिडियो स्वयम् एहि तरहे सशुल्क सेवामे संस्थागतरुपसँ लागल अछि त जनता अपन फरियाद लऽ कऽ कतऽ पहुँचत ? कि ई बात कोना गृह मन्त्रालयक हाकिमसबके नईं बुझल छैक ? जौं सबके ई बात बुझल छैक त एकरालेल बजतै के ?

हमर चाह त खतम भऽगेल छल, मुदा भ्रष्टाचार खिस्सा सुनवाकलेल पुनः एकटा चाहके अर्डर दऽ हम ओहि दूनुगोटेक गप्पदिस कान थपने रहलहुँ । देशक कर्णधार रहल नेताजी सबहक भ्रष्टाचारक बहुत खिस्सा त सुनने छलहुँ, मुदा ई खिस्सा हमरा लेल नितान्त नव छल ।

प्रायः जिल्लामे किछु नेताजीसब प्रहरीसँ ढिठ्ठे अपन हिस्सेदारी माँगल करैत छथि । जेना कोनो जनताके काज लऽ कऽ जहन कोनो नेताजी एस.पी. कार्यालय या सिडियो कार्यालयमे जाइत छथि त हूनकर कमिशन पाकि जाइत छैक । ओहि लफडामे प्रहरी जे लेनदेन करैत अछि ओहिमेसँ नेताजीके हिस्सा देबहि पडैत छन्हि । नेताजीसब अपन कमिशन वापतके रकम पएवाकलेल तगादा करवासँ सेहो पाछा नई रहैत छथि । एहि तरहे भ्रष्टाचार व्याप्त अछि सगरो । सब पेशा आ कार्यालयमे भ्रष्टाचारक बात निचासँ उपरधरिक लोकके नीक जकाँ बुझल छैक, मुदा सबकेसब मौन रहि भ्रष्टाचार संस्कृतिके बढावा द रहल अछि । कानून त भ्रष्टाचार विरोधी बनले अछि, किछु भ्रष्टाचारीपर कारवाहीक बात सेहो सुनाइ दैत अछि, कि एहिसँ भ्रष्टाचार रुकतैक ?

जाधरि प्रत्येक मनुष्य भ्रष्टाचारके स्वयम् अपने मनसँ नई नकारत ताधरि ई सम्भव नहि बुझि पडैत अछि । ताँए अपन निश्चित मृत्युके प्रत्येक दिन जौं याद कएल जाए त लोकके मनसँ भ्रष्टाचार समाप्त होएत की ?


अपन टेटर कहिया देखब ?


 अपन टेटर कहिया देखब ?

                     — मनोज झा मुक्ति

    अखुनक परिवेशमे ककरोसँ पुछियौक देशक अवस्था केहन अछि ? त, कहता कि कहू सभ ठाम भ्रष्टाचारे भ्रष्टाचार व्याप्त अछि । देशक नेता भ्रष्ट, कर्मचारी तन्त्र भ्रष्ट, पत्रकारिता जगत भ्रष्ट, व्यापारी भ्रष्ट...आर किदन किदन...सभचीज भ्रष्टे भ्रष्ट, तहन देशक स्थितिके कि कहबैक...।

    देशक स्थिति निश्चितरुपेण नीक त नहिंए अछि, मुदा एकर दोषी के ? सभ जौं भ्रष्टाचारिए अछि त नीक व्यक्ति केओ नहिं ? आ देशक जनता कि दूधक धोएल अछि ? सबकेँ एकवेर अपना छातीपर हाथ राखिकऽ सोंचहिटा पड़त । आखिर किया देशक हालति एहि तरहें दिनानुदिन खसकैत जाऽरहल अछि ?

     देशमें सब तरहक लोक हाएव कोनो आश्चर्यक गप्प नहिं । सबहक कहब ई छन्हि जे सभक्षेत्रमे भ्रष्टाचारीए लोकक चलाचल्ती छैक । अईसँ असहमत बहुत कम्मेगोटे हएता । मुदा यहो सत्ये छैक जे सत्यक बाटपर धिरे—धिरे आगा ससरैत लोक सेहो अई देशमे अछि । हँ, सत्यवादी धारमे लागल खाँटी राष्ट्रवादी सभक सँख्या बहुत कम अछि आ दिनानुदिन ओहि सँख्यामे ह्रास होइत जाऽरहल अछि । तकर कारण कि ?

     जौं स्पष्टरुपसँ कहल जाए त देशक एहि परिस्थितिक जिम्मेवार आन केओ नहिं, हमहि आँहाँ छी । हमही आँहाँ देशक नेताके, व्यापारी आ कर्मचारीकेँ भ्रष्टाचारी बनावि रहल छियैक ।

      हम आँहाँ एकटा नेताके भ्रष्टाचार करबालेल विवश कऽ दैत छियैक । जौं गाममे एकटा कोनो नेता साइकलपर चढिकऽ अवैत अछि या पैदल अवैत अछि त ओकरा देखबाकले कोना जनता नहिं जाइत छियैक । एतवे नहिं ओई नेताके अपना दरबज्जापर बैसऽदेवमें सेहो हमसब अपनाआपके हीन महशुस करैत छी । आ हमरे आँहाँक गाममे जौं एकटा नेता महँग गाड़ीमे चढिकऽ अवैत अछि त ओकरा पाछा या कहु स्वागत करबाकलेल माइए पुते दौड़ैत छियैक, ओकरा अपना दरबज्जापर बैसबऽमे हमसब अपनाके गर्वान्वित भेल अनुभूति करैत छी । चुनावक समयमे कतबो सकारात्मक साेंंचवला नेता किएक नहिं हुअए ओकरा भोंट देवाक बदलामें हमसब मतपत्रमे अपन जातिक उम्मेदवारके चिन्हमे मोहर लगवैत छी । ओतवे नहिं अपन मतक महत्वके बुझितो हमसब अपना मतके पाई लऽ कऽ बेचि दैत छियैक जकर कारणसँ जकरालग अपन जातिक जनसँख्या वेसी अछि आ वेसी पाई अछि वएह नेता चुनाव जितैत अछि । कि हमर आँहाँक एहि तरहक व्यवहार एकटा नेताकेँ भ्रष्ट बनवाकलेल विवश नहिं करैत छैक । जौं जातिक नामपर केओ जितैत अछि त ओ अपना जातिक वाहेक आन जनताके वारेमे किया सोंचत ? आ अपना जातिकलेल सेहो किछु नहिं कऽसकैया, कियाक त ओ ई नीक जकाँ बुझने रर्हैत अछि जे अपना जातिकलेल हम काज नहिंयो करब तखनो हमर जाति हमरा भोंट देबेटा करत । आ ओ जे पजेरोबला नेता आ पाईबला नेताक तुलनामें अपनाके निरीह बुझैत अछि, ओहो हमरा आँहाँक सामिप्यता पएवाकलेल आ चुनाव जीतवाकलेल पाईएके अपना जीवनक सभसँ पैघ लक्ष्य बुझि ‘एनि हाउ, पाई कमाऊ’ के नीति अवलम्वन कऽलैत अछि । आ जखन ओ पाइएक बलपर हमरआँहाँक भोट लेत त किया  हमरा आँहाँक विकासकलेल ओ सोंचत ? 

      तहिना देशक कर्मचारिके हमही आँहाँसब अपन काज जल्दीसँ जल्दी करेबाकलेल या कानूनन नहिंयो होबऽवला काज गैरकानूनन रुपसँ करेबाकलेल घुस देल करैत छियैक आ एहिं तरहें एकटा कर्मचारीकेँ जवरदस्ती हमसब भ्रष्टाचारी बना दैत छियैक । ओनो कर्मचारीयो खासकऽ एकटा पुलिसमे जेबाकलेल हाकिम एकलाख टका लेल करैत छैक, हाकिमके डाइरेक्टर बनेवाकलेल मन्त्रीद्वारा लाखो रुपैया घूस लेल जाइत छैक । जहन ओ कर्ज पैंच  लऽ कऽ बहाल भेल रहैत छैक त कोनो बहन्ने कमेबेटा करतैक ।

     एकटा व्यापारीकेँ काला बाजÞारी करबामे सेहो हमसब अपने बहुत बेसी दोषी छी । हमसब बुझितो रहैत छि तइयो ओकर विरोधमे बजबाक हिम्मत नई करैत छियैक ? हमरा आँहाँलेल के बाजि देत ? ककरो लग ओतेक फुरसति नहिं छैक ।

     हमसब सबके भ्रष्टाचारी त कहैत छियैक, मुदा अपन टेटर नहिं देखैत छी । सरकार अपन गाम अपने बनाबु कहिकऽ प्रत्येक गाममे १५ सँ ३० लाखधरि रुपैया प्रतिवर्ष देल करैत अछि । गामक विकास कतेक भेल छैक, विशेषकऽ मधेशमे से ककरोसँ छुपल नहिं अछि । सभ पार्टीक प्रतिनिधिसब अपन बपौटी(पैतृक) सम्पति बुझि खुलेआम लुटैत अछि आ हम आँहाँ मौन भऽ सबकिछु देखैत रहैछी । जौं कियो व्यक्ति ओइ काजक विरोध करैत छैक त हमहि आँहा केओ पार्टीक नामपर, केओ जातिक नामपर ओहन भ्रष्टाचारीके दूधक धोएल बनाऽदैत छियैक । ओहन भ्रष्टाचारीकलेल पार्टीयोसब अपन प्रतिष्ठाधरि दाओपर लगा दैत अछि ओकरा बँचवऽमें । एकरा अरिक्त जे किछु कोनो गामठाममे जौं छोटछीन विकासक काज होइत अछि त ओकरा विनाश करबामें हमसब बहादुरी बुझैत छी । अपना घरक अगााक सडकपर राखलगेल ग्राभेलक पाथर अपना घरमे घुसियाबऽमे त हमरा सबके जोरा सम्भवतः कतौ नहिं भेटत । 

     एतेक धरि कि सरकार विद्यालयसबके व्यवस्थित करबाकलेल अपनेगामक स्थानिय व्यक्तिक अनुसारे चलेवाकलेल विद्यालय व्यवस्थापन समीतिके निर्माण योजना लाबि प्रायः सभ विद्यालयके समुदायमे हस्तान्तरण केलक, मुदा विद्यालय व्यवस्थापन समिति अखन मात्र   पाई कमेबाक एकटा स्थलक रुपमें परिणत भऽगेल अछि । चाहे विद्यालयमे शिक्षकक रखबामे होय या शिक्षककेँ सरुवामें हुए, विशेष कऽ मधेशक प्रत्येक विद्यालय व्यवस्थापन समीतिसभ एहि तरहक व्यापारमें लागिगेल अछि । विद्यालयक पढाई केहन छैक, शिक्षक विद्यालयमें अवैत अछि कि नहिं, विधार्थी अवैत अछि कि नहिं ताहिसँ व्यवस्थापन समीतिके कोनो मतलव नई रहल देखल जाऽरहल अछि ।

     एहि तरहें देशक विकास कोना होएत ? जाधरि हमसब अपने नहिं सुधरब त आन के सुधारत ? जौं हमसभ एकटा सत्य बाटपर चलनिहार, देशभक्त आ जनताक समस्याके अपन बुझऽबला नेताक बदलामे तामझामबला पँजेरो पर एनिहार नेताके निरुत्साही नहिं करब त दिनानुदिन भ्रष्टाचारक दलदलमें हमसब धँसैत जाएब । सत्यक पक्षधरके मनोबल बढेनाई जरुरी आ सभक कर्तव्य भऽगेल अछि । आन कियो किया हमरा आँहाँक सम्बन्धमे सोंचि देत ? ताएँ आनके दोष देबासँ पहिने एकवेर हमसभ अपने टेटर देखब कि ?

  


Sunday, September 27, 2020

जातिवादमे जकडाइत प्रदेश नं.२ : अनिष्टक संकेत


 

–मनोज झा मुक्ति

ओना नेपाल आ ताहुमे मधेशमे जातिपातिक राजनीति आइए आविकऽ शुरु नै भेलैय । अपनासबहकलेल ई कोनो नवका गप्प नई रहिगेल छै । एकसँएक अपनाके बुद्धिजीवी कहनिहार लोक जातिपातिक राजनीतिसँ अछुत नई रहिगेल अछि । किछु वर्ष पहिनेसँ नेपालेमे आ विषेश कऽ मधेशमे जातिपाति एकटा संस्कृतिकेँरुपमे बढैत जाऽरहल अछि ।

टोल सुधार समितिक चुनावसँ लऽकऽ माननीय आ माननीय सबमेसँ मन्त्रीधरिक चुनावमे जातीयता प्रतिष्ठाकरुपमे स्थान वनवैतगेल अछि । आर त आर चोरी,छिनरपन,अपहरण,गुण्डागर्दी लगायत निकृष्टसँ निकृष्ट काजमे जातीयताके ओतवे प्रवल समर्थनक मानिसिकता जाहि तरहें समाजक हरेक वर्ग,समुदायमे देखल जाऽरहल अछि, बहुत चिन्तनीय बात अछि ।

ओना मनुष्यक पहिचानमे जातीयता एकटा बहुत पैघ अवयव छै । सबगोटेके अपना अपना जातिपर गर्व करवाक चाही, मुदा कि अन्धभक्त भेनाई कतेक सही या वेजाय ? एहिपर चर्चा–परिचर्चा के शुरु करत आ कहियासँ ?

प्रदेश नं.२ मे किछुएदिन पहिने एकटा मन्त्रीद्वारा एकटा मन्त्रालयके सचिवके मारिपीटके घटना समाजिक संजालमे खुब चर्चा कमेलक । ओ काज निकृष्ट या उत्कृष्ट रहय तकर सामाजिक न्यायसँ बेसी एकसँएक विद्वानक पंक्तिमे अपनाके ठाढ कएनिहारसब सेहो अपनाके ब्राम्हण आ यादवके कित्तामे बँटवारा कएल देखलगेल । मन्त्री आ सचिवके मारिपीट त मात्र एकटा छोट उदाहरण अछि, एकटा छोटकोनो गल्ती या कमजोरी ककरो भेटवाक मात्र चाही  जातीवादके नंगा समर्थन या विरोध विशेषकऽ सामाजिक संजालमे शुरु भऽजाइत अछि ।

विचित्र त तखन बुझाइत अछि कि नीक काज कएनिहार कोनो जातिकलोकके जते सराहना नई होइत अछि, ताहिसँ बेसी खराब काज कएनिहार कोनो जातिक समर्थन या विरोधमे जातिक लडाकासब देखाइदेवऽलगैत अछि । अनेरे कुकर्मोके जाहि तरहें जातीवादके नामपर प्रश्रय जे भेटिरहल अछि ओ समाज,प्रदेश आ देशकलेल कोनो विषसँ कम नई अछि ।

समाज आ देशके सुधरवाक, परिवर्तन करवाक दिनराति चौक–चौराहासँ लऽकऽ सडक,सदन आ मिडियामे बजनिहार कथित बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता आ राजनीतिकर्मीसब जातियताक रंगदेवऽमे सबसँ आगु देखल जाऽरहल अछि । कि एहने परिवर्तनक पक्षधर हमसब छी ?

जतऽ जातिपातिक विष नई पनपल रहैछ, ओतऽ राजनैतिक दलसब जातिपातिक विषक वृक्ष दिनानुदिन रोपिते जाऽरहल अछि । मात्र आ मात्र जातिक भोंट लऽ,सत्ता प्राप्तीकवाद हमसब केहन रस्तापर देशके आगु बढवऽ चाहि रहल छी ? एकर जवाव ककरासँ पुछल जाए ?

जातिपातिक नामपर जाहि तरहें चोरके साधुक मुखिया बनाओल जएवाक काज भऽरहल अछि, केहन विधि आ व्यवस्थाके निर्माण कएल जाऽरहल अछि ? कि इएह आ एहने परिवर्तन हमसब समाजमे चाहि रहल छी जे सबजाति अपन अपन जाति जाहिगाम,टोल या मुहल्लामे अछि ओत्तहि जाऽकऽ वास करओ ? समाजक परिचय जे विविधिता रहल अछि, ओ समाप्त कएल जाए ? जँ, नहिं त मात्र भाषणमे विरोधक स्थान लैत आएल जातीवाद कहियासँ व्यवहारिकरुपमे समाजमे अपन स्थान बनाओत ? जतेक समय बितिरहल अछि, एकर प्रकोप ओतवे समाजमे देखाइ दऽरहल अछि । किया त एकर नाकारात्मक पक्षके पृष्टपोषकक संख्या दिनानुदिन बढिए रहल अछि । बौद्धिक आ सचेत वर्ग जातियताक नामपर पद आ प्रतिष्ठा आर्जन करवाक प्रतिस्पर्धामे लागल अछि आ राजनैतिक दल भोंटक लोभमे जातीवादके मलजल देवऽमे प्रतिस्पर्धी बनल अछि ।

आखिर कहियाधरि ई आगि समाजके मूल्य आ मान्यताके झरकवैत रहत आ समाजिकताके रक्ताम्य बनवैत रहत । आ विशेषकऽ प्रदेश नं.२मे जे जातियताके खेती जाहि तरहें वढैत जाऽरहल अछि, समाज, प्रदेश आ देशके महाभारी द्वन्द्वमे फँसवैत जाऽरहल अछि । जँ आइए आ एखनेसँ समाजक सऽभ वर्ग सचेत नईं होइजाएव त अपना घरक दुहारिपर कालके प्रतिक्षा करैत रहु, कखनो अपना चपेटमे लऽसकैत अछि ।

नीक आ बेजाय कएनिहार हरेक जातिमे होइत छैक । चोर,छिनार,डाकू आ हत्यारा एवम् भ्रष्टाचारीके कोनो जाति नहिं होइत छैक, ओ कोनो जातिक हुए ओकरा समाजसँ दुत्कारे भेटवाक जे हमरासबहक सामाजिक परम्परा रहल, तकरा पुनःसमाजिक प्रचलनमे लाएव आवश्यक अछि । जानकी सबके सदबुद्धि देथुन । समयमे सबके चेत खुलय ।