Saturday, October 10, 2020

देशमे व्याप्त संस्थागत भ्रष्टाचार ः बाजत के ? (भाग–२)

   देशमे व्याप्त संस्थागत भ्रष्टाचार ः बाजत के ?

(भाग–२)

–मनोज झा मुक्ति

अपना देशमे भ्रष्टाचार कतेक अछि ? कोना होइत अछि ? ई प्रश्न जौं किनकोसँ कएलजाए त उत्तर की भेटत से कहवाक बात नहि । हँ भ्रष्टाचार कोना होइत अछि से सर्वसाधारण मेसँ बहुत कमेके बुझल हैतन्हि । आश्चर्यक बात त ई अछि जे भ्रष्टाचारक खेती कएनिहार भ्रष्टचार निर्मूल करवाक बात करैत अछि । भ्रष्टाचारे भ्रष्टाचारसँ भरल एहि देशमे उदाहरणक कमी नहि अछि । देशक अधिकांश लोक कोनो ने कोनो तरहें भ्रष्टाचारमे लिप्त अछि । फर्क एतवा अछि जे कियो कम त कियो बेसी ।

गामक एकटा पान दोकानपर पान खएवाकलेल पहु्ँचलहुँ । पान लगएवालेल दोकानदारके कहि ठाढ छलहुँ त हमरासँ पहिनेसँ दोकानपर ठाढ  दूगोटे अनचिन्हार लोक ओतऽ बातचीतमे लीन छलाह । पानक प्रतिक्षामे बैसल हमर ध्यान ओहि दूनुगोटेक बातपर गेल । दूनुगोटे भ्रष्टाचारक सम्बन्धमे बात करैत छलाह । बात होइत छल विद्युत कार्यालयक सन्दर्भमे । सम्भवतः ओहिमेसँ एकटा विद्युत कार्यालयमे नोकरी कएनिहार रहथि आ दोसर हुनक कोनो सरकुटुम्ब जकाँ बुझाइत छलाह । हुनका सबहक बातचितक आधारपर भ्रष्टाचारक एकगोट संस्थागत नमूना हम प्रस्तुत कऽ रहल छी ।

देशक जनताके सुविधाकलेल विद्युत कार्यालयके स्थापना भेल अछि । देशक प्रत्येक गामघरमे विजुली पहुँचै आ विजुली वापतके राजश्व सरकारके असुली होइ से विद्युत कार्यालयके मुख्य काज अछि । कोनो गाममे विद्युतके पोल पहु्ँचएवाक होइ या कोनो घरमे मिटर लगबावऽके एहिमे खुलेआम भ्रष्टाचार कएल जाइत अछि आ बाजऽबला केओ नई अछि । अपना घरमे मिटर लगएवाकलेल कतेकोबेर कार्यालयके चक्कर लगबऽ परैत छैक । कार्यालयक चक्कर लगौलाकबाद सम्वन्धित कर्मचारीके बिना किछु लेने देने काज होएव बहुत मुस्किल अछि । कोनो गाममे या व्यक्तिगतरुपसँ विद्युत पोल लेवाकलेल त आरो मोस्किल अछि आ ठाहाठाही भ्रष्टाचार । एक त बहुत सोर्सफोर्स आ अनुनय विनयसँ पोल भेटैत छैक । कार्यालयसँ सम्बन्धित स्थानपर लऽजएवाकलेल सरकारेदिससँ पोल ढोआनीक पाइ देवाक या सम्वन्धित स्थानपर कार्यालयद्वारा पहुँचयवाक नियम छै । मुदा, अधिकांश जनताके अपने पाई खर्चकऽ पोल लऽजाय परैत छैक । केओ पोल ढोआनीक पाईके चर्चाधरि नई करैत अछि आ कार्यालयक कर्मचारीके कहवाक कोनो प्रश्ने नहि । कोनो नेता टाइप जनता जौं एकर चर्चा कएलक त ओकरा पोले लेनाइ कठीन भऽ जाइत छैक । अर्थात अधिकांश जिल्लामे विद्य्ुत पोलक ढुवानीक रकम शतप्रतिशत कार्यालयक हाकिम आ कर्मचारीमे बँटाजाइत अछि । दोसर पोल जहन सम्वन्धित स्थानपर पहुँचि जाइत अछि त पोल गारवाक जिम्मेवारी विद्य्त कार्यालयके होइत छैक । मु्दा पोल गारवाक काजमे खटनिहार प्राविधिक सम्वन्धित स्थानक जनतासँ भोजनक जिम्मेवारी त निर्वाह करवितेटा छैक, उपरसँ दक्षिणाक अभिलासा सेहो रहैत छन्हि । दुनुगोटाक गप्प जारिए छल, मुदा हमरा हडवडी भेलाक कारणे हम पान खाइत ओतऽसँ चलैत बनलहुँ ।

जनताके काज सुलभ तरिकासँ भऽजाई, जनतासँगे कोनो प्रकारक धोखा नई होइ ताहिलेल कार्यालय सबके निगरानी करवाकलेल जिल्ला–जिल्लामे सि.डि.ओ. कार्यालयक स्थापना कएलगेल अछि, जकरा पुर्ण अधिकार सम्पन्न बनाओलगेल छै । मुदा जहन स्वयं जिम्मेवार व्यक्तिए जौं ओहिमेसँ कमिशन लैत हो त जनता कतऽ जाएत ? विद्युत कार्यालय त एकटा छोटछिन नमूना मात्र अछि, अपना देशक कोनो निकाय नहिं अछि जे भ्रष्टाचारसँ अछुत हुए । ओना जाहि कार्यालयके खोजबिन करऽलागु, वएह कार्यालय या कहु वएह पेशा भ्रष्टाचारक अग्रणी स्थानमे देखाइ देत ।

गमघरमे एकटा कहवी छैक जे,‘पञ्चैतीमे झूठ नईं बजवाक चाही आ अदालतमे साँच नई बजवाक चाही ।’ जहने कहवी छैक त आइएसँ नई होएतै । ई कहवी कतेक सत्य छै या कि झूठ से प्रायसबलोक नीकजका बुझैत छी । जहन जे न्याय देवाक अधिकारी छै या कहु जतऽ न्यायक वास्ते जनता जाइत अछि ओतहि पाइयक बलपर मुद्दा फैसला होइ, ओहि देशमे आन आन कार्यालय आ आन आन पेशाक लोकसँ कि अपेक्षा कएल जासकैय ? कि ई बात निचासँ उपर तकके लोकके जानकारी नईं छै, जौं छई तहन मौनता किया ? के बजतै ?

सब पेशा आ कार्यालयमे भ्रष्टाचारक बात निचासँ उपरधरिक लोकके नीक जकाँ बुझल छैक, मुदा सबकेसब मौन रहि भ्रष्टाचार संस्कृतिके बढावा द रहल अछि । कानून त भ्रष्टाचार विरोधी बनले अछि, किछु भ्रष्टाचारीपर कारवाहीक बात सेहो सुनाइ दैत अछि, कि एहिसँ भ्रष्टाचार रुकतैक ?

जाधरि प्रत्येक मनुष्य भ्रष्टाचारके स्वयम् अपने मनसँ नई नकारत ताधरि ई सम्भव नहि बुझि पडैत अछि । ताँए अपन निश्चित मृत्युके प्रत्येक दिन जौं याद कएल जाए त लोकके मनसँ भ्रष्टाचार समाप्त होएत की ?

 

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