Monday, May 17, 2021

अस्तित्वक कटघेरामे मिथिला : मैथिलीक संघ संस्थासब

 मनोज झा मुक्ति

संसारक समृद्ध संस्कृति, मिठ्ठ भाषा आ दुराग्रही संस्कारसँ भरल मिथिला धिरेधिरे अपन सबचीज गुमवैत जाऽरहल अछि । सऽभ तरहें मिथिलाक पहिचान संकटमे पडैत जाऽरहल बातके स्वीकार करवामे किनको आपत्ति नई होएवाक चाही । आखिर, ई अवस्था कोना अएलै ? एकर दोषी के ? के एकर खोज करत ?

विद्वानक बात करव त एकसँ एक विद्वताक व्यक्ति सर्टिफिकेट सहित सहजे उपलब्ध भऽजएता । अभियानक बात करबै त उत्कृष्ट अभियान संचालन कएने प्रमाण सहित प्रस्तुत होवऽबलाके कमी नै भेटत । मिथिला आ मैथिली प्रति अपन जीवन समर्पण कऽदेने कहनिहार व्यक्ति आ संस्थाक गन्ती सेहो संख्यामे कम नई । मुदा, ई सब बात पेपर–पत्रिका, सभा–सेमिनार, गोष्ठी या मंचपरक गप्प अछि । ई आ एहन बात कहऽ\सुनऽमे जेतवे बड सुहनगर लगैत छैक, निर्वाह करऽमे ओतवे कठीन छै । किया त कहऽ÷सुनऽमे पाई आ परिश्रम नई लगैछै । ‘मंगनीके पाई त नौ मन तौलाई’ से सबठामकलेल बनल कहावत होइतो अपनासबहक माटिपानिकलेल एकदम सटीक बैसैत अछि ।

मिथिला÷मैथिलीकलेल मात्र नेपाल÷भारतमे बहुतो रास संघ\संस्था खुजल । बहुत, किछु दिन अस्तित्वमे रहल आ शिथिल होइत बिलागेल । किछु समय–समयपर खुजैत अछि, पुनः बन्द भऽजाइत अछि । आ किछु नामेमात्रलेल बोर्ड टांगिकऽ बैसल अछि । विगतमे मैथिली÷मिथिलाकलेल जमिनीरुपमे काज कएने संस्थासब एखन नाफा–घाटाके दोकानमे परिणत भऽ साइन बोर्ड झमकौने अछि । कहियो अभियान मुख्य उद्देश्य रहल संस्था अपनाके पूर्ण व्यावसायीक बनालेने कहैत अछि आ केहनो काजमे जीविकोपार्जनक प्रश्नके ठाढ कऽदैत अछि । 

मैथिली\मिथिलाकलेल काज कएनिहार व्यक्ति या संस्थाके जहन पुरस्कार या सम्मानक बात होइत छैक तहन मैथिली\मिथिलाक नाम भँजौनिहार व्यक्ति आ संस्थासब बुलबुलाकऽ निकलव कोनो नव बात नहि ।

हमर शिर्षक अछि जे मिथिला\मैथिलीसँ जुडल संघसँस्था सबहक अस्तित्व संकटमे अछि ।  ओना अस्तित्व बिहीन लोकसब रहल संस्थाक अस्तित्व कोना लहलहाओत ? कहवाक तात्पर्य ई जे नैतिक धरातलके बिसरिगेल लोक जहने कोनो संस्थामे रहत त धिरेधिरे अपन चरित्रके प्रभाव ओहि संस्थापर छोडवे करत । 

मिथिला\मैथिलीक संरक्षण आ संवद्र्धनलेल कोनो काज नईं होइत अछि या संस्थासब नई करैत अछि सेहो बात नई छै । मुदा, प्रश्न छै जे जाहि तरहक काज मिथिला\मैथिलीक अस्तित्व निखरारऽलेल÷जोगावऽलेल होएवाक चाही से कि भऽरहल छैक ? जाहि स्तरके काजक आवश्यकता मिथिला÷मैथिलीक छै, से कि कएलजारहल छै ? या जे काज कोनो व्यक्ति अथवा संस्था जे कऽरहल अछि, ताहिसँ मिथिला÷मैथिलीके अभिष्ट पुरा भऽरहलैय ?

हमरा जनतवे मिथिला÷मैथिलीकेलेल बहुत रास व्यक्ति आ संस्था काज कऽरहल देखवैत अछि । अन्तरर्राष्ट्रि«य मैथिली सम्मेलन, मैथिली लिटरेचर फेस्टिभल, मैथिली साहित्य सम्मेलन, कवि गोष्ठी, कथा गोष्ठी, विचार गोष्ठी, सम्मान कार्यक्रम, पुरस्कार वितरण समारोह, फग्ुआ फुर्रर् दंग, महामूर्ख सम्मेलन, विद्यापति स्मृति कार्यक्रम, चनमा,सांगितिक कार्यक्रम, नाटक महोत्सव लगायतक बहुत सभा÷सेमिनार महोत्सवक आयोजना प्रायः कतौ ने कतौ होइते रहैत अछि । लोक सहभागियो होइत छथि, खर्चो जुटवैत छथि, खर्चो करैत छथि । मुदा की मिथिला\मैथिलीके ओहिसँ उपलब्धी छै त ? जँ छै त, केहन ?

जहने काज होइत छै या कएल जाइत छै त किछु ने किछु उपलब्धि भेनाई स्वाभाविक छै, होएवो करैत छै । मुदा, जाहिरुपसँ मिथिला\मैथिलीक अस्तित्वपर चौतर्फी प्रहार कएल जाऽरहल छै, मान मर्दन कएल जाऽरहल छै, ओतऽ जाहिरुपक काज होएवाक चाही से कि भऽरहल छै त ? 

चाहे मिथिला राज्य नामाकरणक प्रश्न होई या मिथिला क्षेत्रमे मातृभाषामे पढाइयक । सरकारी कार्यालयसबमे मातृभाषाक प्रयोग बढावऽके अभियान होई या मिथिला क्षेत्रमे साइनवोर्ड, पर्चा÷पम्पलेट, वालपेन्टिगं अपन भाषामे लिखएवाक अभियान, कतेक संस्था जमिनीस्तरपर एहि काजमे अपन उर्जा लगौने अछि ? विगतमे कएलगेल काजके कतेकदिनधरि गन्ती कराविकऽ दोकानक बिक्री होइत रहत या बेचैत रहब ? 

भाषा कोनो जातिक नईं होइत छै, भूगोलक होइतछै से साश्वत सत्यके जनितो मिथिलाक क्षेत्रमे भाषागत जे वितण्डा मचाओल जाऽरहल छैक, ताहिपर मात्र सभा÷सेमिनारमे विचार विमर्श कहियाधरि सिमीत रहतै ? मिथिला क्षेत्रक लोककेँ जाहिं तरहें झूठफूस बाजिकऽ मैथिलीक विरोधी मानसिकता तैयार कएल जाऽरहल छै, तकरा के फरिछेतै ?

जँ कोनो राजनीतिक दल या कोनो नेताके भरोसे बैसल रहब त सबहक अस्तित्व बँचत कि डूबत से प्रायःलोक बुझिरहल छियै । विवेकहीन विभिन्न पार्टीक कार्यकर्ता आ नेताक कारणे सेहो मिथिला÷मैथिलीकेँ अस्तित्वपर प्रहार कएल जाऽरहल छै से सबके नीकजकाँ बुझल अछि । भोंटक लोभे आ दोपटा ओढवाकलेल कोनो नेता या मन्त्री केहनो एवम् ककरो मंचपर जाऽकऽ आयोजक अनुसारके भाषण करऽमे कनिक्को नईं हिंचकिचाएल करैछ अछि । नेता अपना माइयक बोलीके कखनो कोनो भाषा त कखनो कोनो भाषा कहऽमे कनिक्को विचारधरि नई करैत अछि ।

एहन अवस्थामे मिथिला÷मैथिलीकलेल लागल प्रत्येक व्यक्ति आ संघ\संस्थापर ऐतिहासिकरुपसँ कलंकक टीका थारी सजल दरबज्जापर प्रतिक्षा कऽरहल अछि । जौं सबकियो अपन–अपन काजके जमिनी स्तरपर नई करव, मिथिला क्षेत्रक लोकके मानसिकतामे विष रखनिहारकेँ नंगा करैत, फरिछिएवाक काज अविलम्ब शुरु नई भेल त सबहक अस्तित्व घोर संकटमे लगभग लगभग पडैत जाऽरहल अई ।

अपनाके मिथिला\मैथिलीक सेवक कहनिहार, मिथिला\मैथिलीक अभियानी कहनिहार, मिथिला\मैथिलीक नामपर पेट पालनिहार व्यक्ति आ संघसंस्थासबके अविलम्ब एकटा रणणीति बनाविकऽ मिथिलाक गामगाम आ टोलटोलमे पैसऽके शुरु कऽदेवऽपरत ।

नेपाल आ भारत संविधानमे मातृभाषामे पठन–पाठन कराओल जएवाक बात रहितो बहुत कम व्यक्ति आ संस्था एहिदिस प्रयास कएलक । किछु व्यक्ति या संस्थाक प्रयाससँ मैथिली विद्यालयधरि पहुँचल त, मुदा सहयोगक आभावमे थकमका रहल अछि । जँ सहयोगी हाथ, संघसंस्थासबके आवाज बुलन्द नई कएलगेल त पाठशालाधरि पहुँचल मैथिली दम तोडिदेत । एहिलेल व्यक्तिगतरुपसँ या संस्थागतरुपसँ मिथिला\मैथिलीकलेल कएल जाऽरहल खर्चमेसँ मैथिलीक पठनपाठनके सहयोग कऽ जोगौनाई सन ठोस काजक संस्कार कहियासँ शुरु होएतै ?

सरकार जनगणनाक तैयारीमे अछि, पाईकेलेल अपना मायके बेचिलेने मैथिलीएक किछु बेटा गामगाममे नौटंकी करऽमे लागल अछि । ककरो राजनीतिक अभिष्ट पुरा करवामे अपन भाषाके दोसर ठामक भाषा, जातिक भाषा कहिकऽ विभिन्न गतिविधि कऽरहल अछि । गामगाममे अभियानी या संघसंस्थाके जाऽकऽ अपन अस्तित्व रक्षा सन महत्वपूर्ण काज शुरु करवामे शारिरीक, नैतिक आर्थिक सहयोगक वातावरण निर्माणकलेल गोष्ठी कहिया होएतै ?

एकटा बात निश्चित अई जे मिथिला÷मैथिलीक बात कएनिहार, काज कएनिहार, दोकान खोलनिहार, भँजौनिहार सबहकलेल खतराक घण्टी बाजिगेल अछि । एहन समयमे मिथिला÷मैथिलीकलेल खुजल संघसंस्थाक अस्तित्व कटघेरामे अछि । जँ अस्तित्व जोगएवाक अछि, नैतिकता बँचल अछि त संघसंस्थासब एहि दिस ठोसगर सोंच बनाविकऽ आगा बढऽमे विलम्ब नई करी । ओना त किछु विलम्ब भइएगेल अछि, आब जँ आओर विलम्ब भेल त सबहक अस्तित्व मात्र संकटमे नई अछि, सबहक नामके इतिहास कलंकीत करवाक प्रतीक्षामे सेहो अछि । जानकी समय अछैते सबमे चेतना देथुन्ह । 

 

 



 

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