Monday, May 17, 2021

भौतिक पूर्वाधार विकासक क्रममें लोप होइत स्थानीय संस्कृति

 मनोज झा मुक्ति

देश संघीयतामे गेलाकवाद सबठाम भौतिक पूर्वाधारक काजमे आमूल परिवर्तन भऽ रहल अछि । गाम गामक सडक गल्लीसब ढलान भेल अछि त कार्यालय भवन आ प्रवेशद्वारक संगहि धार्मिक स्थलसब एवम् पोखरिक सौन्दर्यीकरणक काज जोरसोरसँ होइत देखल जाऽरहल अछि । भऽरहल भौतिक निर्माण कतेक टिकाउ अछि से अलग बात । बिनु नालाके सडक ढलान या ठामठाममे निर्माण भेल या निर्माणक क्रममे रहल प्रवेशद्वारक आवश्यकता आ अपरिहार्यताक विषय अपने ठाम अछि । समग्रमे ई कहल जाऽसकैय जे भौतिक पूर्वाधारक विकास देशमे यत्र तत्र सर्वत्र भऽरहल अछि । गामघर आ छोटमोट शहर सुन्दर लागऽलागल अछि । मुदा, पहिचानकलेल आएल संघीय देशमे पहिचानक प्रमुख अवयव रहल संस्कार आ संस्कृति मरनासन्न अवस्थामे पहुँचैत स्पष्टरुपसँ देखल जाऽरहल अछि ।

स्थानीय संस्कृतिक विकास होई, अप्पन संस्कृतिक संरक्षण आ संवद्र्धन होई ताहिलेल स्थानीय तहमे यथेष्ट बजेटके व्यवस्था कयलगेलाक वादो निर्वाचित पदाधिकारक आ संस्कृतिकर्मीक निष्कृयतासँ पहिचानक पर्याय रहल संस्कृति लोप होएवाक क्रममे अछि । 

जाहि प्रकारक स्थानीय, प्रादेशिक आ संघीय सरकारक दृष्टिकोण संस्कृतिक विकासमे देखल जाऽरहल अछि, बहुत चिन्तनीय अछि । जनप्रतिनिधिसबके संस्कृति जेना विसराइएगेल होय तेना प्रतित होइत अछि, त संस्कृति अभियन्तासब मंच, सभा\सेमिनार आ गोष्ठीमे जहिना संस्कृति बचयवाक बात करैत छथि, कार्यपत्रसब प्रस्तुत करैत छथि ओ गामगाम आ टोलधरि नहिं पहुँचि ओतहि ठमकल रहि जाइत अछि । संस्कृति संरक्षण आ प्रवद्र्धनक नामपर जे बजेट जाहि निकायमे अवैत अछि ओ सबटा खर्च भेल अधिकांशठाम देखल गेल अछि ।

मिथिला संस्कृतिक पर्याय बनल फगुआ होय या जुडशीतल, सामा होय या झिझिया, जटजटिन होय या डोमकच्छ सबके सब आब नामेकलेल जिवीत रहिगेल अछि । कोनो सांस्कतिक कार्यक्रमक स्टेजपर गीतमे एकर प्रदर्शन धरि मात्र सीमित भऽ कऽ रहिगेल बातसँ कियो असहमत नहिं होएवाक अवस्था अछि ।

अपन संस्कृतिप्रतिक उदासिनता देखाविरहल विभिन्न तहक सरकार अपना ठाम दोषी त अछिए, संस्कृति बँचयवाक नामपर खोलल संघ\संस्थासब आ अपनाके अभियानी होएवाक दावा कएनिहान सभ सेहो एहिमे दोष मुक्त नहिं देखल जाऽरहल अछि । जनप्रतिनिधिपर दवाव देवाक काज हुए या संस्कृतिके जिवन्त करवाक काज हुए, एहिपर सभके संवेदनशील भऽकऽ लगनाई अत्यावश्यक अछि । आब सबके एकमत होबहि परत जे पहिचानक पर्याय आ मिथिलाक परिचायक रहल संस्कृति आब मञ्चधरि मात्र सीमित रखवाक अछि दोसरके देखयवाकलेल कि वास्तविकरुपसँ सांस्कृतिक जागरणक अभियान गामगाम आ टोलटोलधरि लऽ जएवाक चाही ?

शहरमे रहनिहार धियापुतासब त अपना संस्कृतिसँ अनभिज्ञ अछिए, संस्कृतिक डीह मानल जाइत गामघर आ टोलटोलक बच्चासब सेहो अपन संस्कृतिक वास्तविक रुपसँ दूर जाऽरहल अवस्था आविगेल अछि । संसारक सबसँ वैज्ञानिक आ सामाजिक एकताक बन्हनक रुपमे रहल संस्कृति शिक्षण आ प्रशिक्षणक आभावमे या त शुन्य प्रायः अछि, या विकृतरुप धारण करैत जाऽरहल अछि । संस्कृति धरापमे पडलाक कारणे सामाजिक व्यवस्था डगमगा रहल सत्यके सबके स्वीकार करहिटा पडत ।

स्थानीय सरकारसबपर विशेष कऽ दवाव बनाविकऽ गामगाममे अनिवार्य आ विधिवतरुपसँ प्रशिक्षणक काज जँ आरम्भ नई कयलगेल त मिथिलाक संस्कृतिके संरक्षण करव अत्यधिक कठीन भऽजाएत । जे जतवा संस्कृतिक जानकार गामघरमे जीवित रहिगेल अछि जे एहिमे उत्साह पूर्वक सहयोग कऽसकैत छथि, हुनकर सबहक सहयोगसँ जतेक सरलसँ संस्कृतिके संरक्षण आ प्रवद्र्धन कयल जा सकैय से मौका हातसँ निकलि जाएत ।

ओना संस्कृतिक संरक्षण प्रवद्र्धनक नामपर सरकारी बजेट निकालि रहल संघ\संस्था सबके कमी नई रहितो सतहीरुपमे काज नई भऽरहल अछि । संस्कृतिक संरक्षण आ प्रवद्र्धनक नामपर निकालल बजेटसँ अपन विलासिता पुरा करवाक काजके बन्द करहिटा पडत । जाधरि हमसब मात्र आ मात्र देखावालेल संस्कृतिक संरक्षण आ प्रवद्र्धनक काज करैत रहव त एकर नाश होएव प्रायः निश्चित अछि ।

भौतिक विकास होइत समयमे नष्ट होइत जाऽरहल सामाजिक व्यवस्था आ सांस्कृतिक विकासप्रति स्थानीय जनप्रतिनिधि जँ सचेत नई होएता त गाम,शहर त पक्की भऽजाएत, पोखरि सौन्दर्यीकरण, ठामठाममे प्रवेशद्वारक निर्माण आ मठमन्दिरक निर्माण भऽजाएत, मुदा सामाजिक आ सांस्कृतिक विचलनसँ गाम शहर आदमी अछैतमे श्मसान तुल्य बनवाक संभावना बेसिए अछि ।

ताँए, अपन अपन दायित्व आ कर्तव्यप्रति इमान्दार भऽ सब तहक सरकारमे रहल कर्मचारी, जनप्रतिनिधि आ सामाजिक\सांस्कृतिक अभियानीसबके अपन पहिचानक प्रमुख तत्व रहल संस्कृतिके वास्तविकरुपसँ संरक्षण आ संवद्र्धनक काजमे जँ नई लागव त अपन अन्तरआत्मा आ अपन सन्ततिक आगा मुँह देखयवाक योग रहिसकव ताईमे शंका अछि । जानकी सबके समयमे सदबुद्धि देथु ।


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