Wednesday, September 8, 2021

भ्रष्ट प्रतिनिधि आ लुटेरा रखवार


मनोज झा मुक्ति

चाह दोकान, पान दोकान, चौक, चौबटियासँ लऽकऽ प्रायः सऽभठाम जँ सबसँ बेसी चर्चाक विषय रहैत अछि त भ्रष्टाचारकेँ । एहि चर्चमे सर्व साधारण सोझ लोकसँ नामूद भ्रष्ट सेहो सहभागि रहैत छथि । कखनो काल त ई बुझाइत अछि जे सबठाम एहि तरहें भ्रष्टाचार भऽरहल अछि, तथापि देश कोना चलि रहल अछि ? जकरालेल देश अछि, जकरा देश चलयवाक जिम्मेवारी देल जाइत अछि आ जकरा लुटसँ बँचयवाक जिम्मेवार बनाविक राखलगेल अछि ओसब जहन भ्रष्ट भऽजाई त देशमे बिनु भ्रष्टाचारके कि होयत ? सबके सब नीक जकाँ बुझिरहल अछि जे भ्रष्टाचार चरम सीमापर भऽरहल अछि, पूर्णरुपेण संस्थागत भऽगेल अछि तैयो भ्रष्टाचारमे शून्य सहनशीलताक बात जोरसोरसँ चलैत अछि । देखलगेल अछि जतऽ भ्रष्टाचारके विरोधमे जतेक बेसी अमृतवाणी लिखल भेटैत अछि, ओतऽ ओतवे बेसी भ्रष्टलोककेँ हाली मोहाली रहैत अछि ।

सबहक मोनमे ‘‘सबसँ भ्रष्ट के ? कोन कार्यालय या विभागमे सबसँ बेसी भ्रष्टाचार होइत अछि ?’’ अएनाई स्वभाविक अछि । 

के अछि सबसँ बेसी भ्रष्ट ? केना बढिरहल अछि भ्रष्टाचार दिन दून्ना आ राति चौगुन्ना ?

जतऽके आमलोकके मोनमे बिनु लेनदेनके कोनो काज नई होएत या जतुक्का परिस्थिति सेहो बिनु लेनदेनके कोनो काज नई होबऽवला होई ओतऽ भ्रष्टाचारक खेत लहलहेवे करत ।

कोनहुँ व्यक्तिके निर्माण कोनो परिवारसँ होइत अछि । जकरा जेहन संस्कार देलजाइत अछि, ओकर निर्माण ओहने होइत अछि । कखनो काल एहि देशके जनताके व्यवहार आ सोंच देखलाकवाद ई लागव अस्वभाविक नहि जे ‘‘ बहुसंख्यक जनताक एहन सोंच भेलाकवादो एतेक कम भ्रष्टाचार केना भऽरहल अछि ?’’

जतुक्का जनता पडोसीक आरि छाँटऽमे बहादुरी बुझैत होई, सरकारी या सार्वजनिक सम्पतिके लुटके माल बुझैत होई, मिटर रहलाक बादो बन्सी फँसाकऽ बिजुली वारैत होई, अपन या धीयापुताक नोकरीलेल घुस देवाकलेल तैयार रहब अपन संस्कार बुझैत होई, जातिपातिक, टोल–गाम, पाई आ दारुपर अपन प्रतिनिधि चयन करैत होई, मानवताके ताखपर राखिकऽ नितान्त व्यक्तिगत स्वार्थकलेल ककरो गरदनि कटवाकलेल सदति उद्धत रहैत होई, ओतऽ केहन समाजिक वातावरण रहतै ? ओहि समाजमे भ्रष्टाचारी नै जनमतै आ भ्रष्ट वातावरण नई रहतै त प्रकृतिके त उपहासे होएतै कि ?

जतुक्का व्यापारी ग्राहकके जानके बिनु कोनो परवाह कयने खाद्य वस्तुमे मिलावट कएनाई अपन धर्म बुझैत होई, एक्कहिटा सामानक भाओ ग्राहकके मुँहकान देखिकऽ अलग–अलग लगाओल जाइत होइक, तौलमे कमी करब अपन बुधियारी बुझैत होई, देशक राजश्वके चोरी करवाकलेल अनेक जालझेल करब अपन कर्तव्य बुझैत होई आ व्यापारीके रोकनिहार–टोकनिहार कियो नई होई, तहन कालाबाजारी आ कोनो हालतिमे पाई कमयवाक या कहु जनताके लुटवाक सोंच रखनिहार व्यापारी भ्रष्टाचारमे लिप्त कोना नई भेटत ?

देशक निर्माणक जिम्मालेने ठीकदारे जहन १०० रुपैयाक समान ५०से रुपैयामे उपलब्ध करायब कहिकऽ कोनो तरहें ठीक्का हथियवैत होई, सिमेन्टक बदलामे राखे धऽकऽ ढलान कएनिहानके बोलबाला होई ओतुक्का कोनो निर्माण टिकाउ होएवाक चाही से कहब त बुडिबकइय छैक ने ?

अपना सनसन लोकतान्त्रिक देशक जनप्रतिनिधिए जहन चोर–बनोर भऽ जाई त समग्र विकासके बात त हवेमिठाई होएतै ने ? जतुक्का जनप्रतिनिधिए अपन–परायाक भाव राखिकऽ काज करैत होई, जे कोनहु परिस्थितिमे पाई–पाई आ मात्र पाई देखैत होई, ओतुक्का विकास केहन होएतै ? अपना कार्यकर्ताद्वारा कयलगेल केहनो कुकर्मके झाँपतोप करवाक काज कएनिहार जनप्रतिनिधिके भ्रष्ट नई कहवै त कोन नाम देल जाऽसकैय ?

लोकतन्त्रमे खवरदारी कयनिहार विपक्षीएसब जहन निर्वाचित जनप्रतिनिधिके कुकर्ममे सहभागि भऽजाई तहन बजनिहार के बँचि जयतै ? जतुक्का विपक्षी पार्टीक नेता÷कार्यकर्ता जनप्रतिनिधिके योजना सबहक ठीकदार भऽ कमीसन दैत होई ताहि स्थानके वातावरण भ्रष्टाचारमय नई रहतै त केहन रहतै ?

देशमे जनप्रतिनिधि अपन मनमानी नई करय ताहिके रखवारी करैत अनियमितता रोकवाकलेल जनताके राजश्वसँ राज्यद्वारा राखल राष्ट्रसेवक कर्मचारीए भ्रष्टाचार करवाक बाट देखवऽबला भऽ जाई, ओतऽ बजेटक सदुपयोग कोना होयतै ? जतऽ कर्मचारिय भरिसालके बजेट खर्चकरवाकलेल जनप्रतिनिधिसँ ठिक्का लऽलै, ओतऽ भ्रष्टाचारक गाछ दिन दुन्ना आ राति चौगुन्ना चतरतै कि नहिं ?

जाहि देशमे सबपर नजर रखनिहार पत्रकारक कलम लेनदेनमे ओझरागेल होई, जतऽ भ्रष्टाचारक समाचार नई लिखवालेल आ अपन झूठमूठक प्रचार करवाकलेल संचारकर्मी प्रयोग कयल जाइत होई, ओतऽ भ्रष्टाचारक बात बाहर कोना अओतैक ? यदाकदा बाहर चलियो अबै आ अख्तियार सन निकायधरि कहुना चलि जाई एवम् अख्तियारे जतऽ सबके क्लिन चीट थम्हादैत होई, तहन भ्रष्टाचारक विकास चौतर्फी किया नई होएतै ?

जाहि धर्तीपर सुरक्षेकर्मीक प्रत्यक्ष संलग्नतामे तस्करी कराओल जाइत होई, केहनो जघन्य अपराध कएलाक बादो पाईयक बलपर प्रहरी÷प्रशासन अपराधीके जमायक सम्मान दैत होई, ओतऽ अत्याचारके रुपमे भ्रष्टाचार कि समाप्त होयतै ?

आखिर भ्रष्टक श्रेणीमे के अव्वल आ के दूर्वल कहनाई कठीन अछि । समग्रतामे ई कहल जाऽसकैय जे आम जनता आ समाजे सबसँ पैघ भ्रष्टाचारी अछि जे कोनो ने कोनोरुपें अपनो भ्रष्टाचारमे शामिल अछि या भ्रष्टाचारके सहयोगी बनल अछि । नई त कमसँकम अपना चारुदिस भ्रष्टाचारके देखैत चुपचाप गुवदी लदने अछि ।

आखिर कहिया तक होइत रहत भ्रष्टाचार ?

जँ कोनो शिक्षित या बुझनुक लोकलग ई प्रश्न करवै त उत्तर सामान्यरुपसँ भेटत– समय अओतै त अपने आपसब समाप्त भऽजयतै । प्रश्न ई अछि जे– ओ समय कहिया अओतैक ? कि अपने आप ओ समय चलि अओतै कि ककरो ने ककरो प्रयास करऽ पडतैक ?

जाधरि सबकियो देशक उन्नतिक सोंच अपनाआपमे नई लाओत आ अपनाके कोनो तरहक भ्रष्टाचार करऽसँ नई रोकत, तहियाधरि भ्रष्टाचारक गाडी दौडते रहत । अपन–पराया, जाति–पातिक फेरिमे नई परिकऽ जहियासँ भ्रष्टाचारक विरोध खुलिकऽ नई भेनाई शुरु होयत ताधरि भ्रष्टाचार हटवाक काज प्रारम्भ नहिं भऽसकैय । आ जहन कोनो काजके प्रारम्भे नईं होएत त काज आगा कोना बढत ? भगवति हमरासबके भ्रष्टाचारी बनऽसँ रोकथि आ भ्रष्टाचारके विरोध करवाक मतिक संग शक्ति प्रदान करथि । 

 


Monday, May 17, 2021

मारिपीटके राजनीतिकहियाधरि ?


–मनोज झामुक्ति

एकदिस संसारक देशसब चानपर वस्ती वैसावऽके जोगारमे लागल अछि । आमजनताके मानवअधिकारप्रति देशसब संवेदनशील अछि । आमलोकके समर्थन हासिल करैत विपक्षके परास्त करवाकलेल नव–नव कार्यक्रम राजनीतिकदलसब लएवामे दिनरातिलगौने अछि । त दोसर दिस नेपालमे अपन सत्ता टिकावऽलेल, वर्चश्व बढावऽलेल आ अपनविरोधीक आवाजके चुप्प कराबऽलेल नंगई, दवंगई देखायवसन निकृष्टकाज एखनोधरि समाप्तनई भेल अछि । मारिपीट या दवंगईयक सहारे कहियाधरि राजनीतिक गाडी खिचाइत रहत ? प्रजातन्त्र या गणतन्त्रकलेल बहुत पैघ समस्या आ अपनाके प्रजातान्त्रिक कहनिहार सबहक चरित्रपर प्रश्नचिन्ह ठाढ करैत अछि ।

किछुए दिनपहिने पर्सा जिल्लामे भेल मुकेश चौरसियाक हत्या आ महोत्तरीक मटिहानीमे नेकपाक नेता विजयकुमार चौधरी एवम् मेयर हरी प्रसाद मण्डल पक्षक बीचमे एक देसरपरभेल आक्रमण हमरासबहक समाजक राजनीतिके सहजहिं वर्णन करैत अछि । ई दुनू घटना अपना देशक राजनीतिक चरित्रक प्रतिनिधि घटना मात्र अछि, देशक हरेक जिल्ला, पालिका, वार्ड आ गाम–टोलमे रहल राजनीतिकर्मीमे एहनमानसिकता घर बनौने बैसल अछि ।

पार्टी एकिकरण भेलाकवाद दूटा गुटक वर्चस्वताक लडाईमे जान गुमौने मुकेश चौरसियासन हाल आन बहुतोठाम नईं होएत से कहव कठीन अछि । 

  मारिपीटक कारण की ?

ओना त राजनीतिक दल सबहक अपन अपन सिद्धान्त आ विचार भेल करैत अछि । मुदा, नेपालसन देश जतऽ आम जनता मात्र आ मात्र अपन व्यक्तिगत स्वार्थपूर्तिकलेल कोनो ने कोनो पार्टीक समर्थक या कोनो नेताके अनुयायी भेल देखवैत अछि एवम् केहनो अपराधिक काज कएलाक बावजुद अपना समर्थककेँ सहयोग करवाक काजके राजनीतिक धर्म निर्वाह करवाक मान्यता घर बनौने अछि, ओतऽ कोन राजनीतिक सिद्धान्तके राजनीति भऽ रहल अछि से आमलोकसँ लऽकऽ राजनीति कएनिहार सबके नीकजकाँ बुझल अछि ।

अपन गुटक नेताके वर्चश्व बढएवाकलेल, अपन पक्षक नेताके विरोधीके शान्त करवाकलेल, अपना पक्षके अपराध नुकएवाकलेल, विरोधीके नीचा देखएवाकलेल मारिपीट भेल करैत अछि आ ओकरा राजनीतिक चादर ओढादेल जाइत अछि ।

जनताक मतसँ जितल प्रतिनिधि अपन कार्यकालधरि अपनाके सेवकके बदलामे राजा बुझवाक, अपन कमजोरीके विरोध कएनिहारकेँ गुन्डा लगाकऽ पीटपाटिकऽ शान्त करवाक जे मानसिकता देशक राजनीतिकर्मीमे बढल अछि, मारिपीटके संस्कृतिके आओर बढावा भेटिरहल अछि ।

जनताके भयत्रासमे रखवाक आ अपन मनमानी करैत रहवाक मारिपीटके प्रमुख कारण देखलगेल अछि ।

  मारिपीटके राजनीतिके प्रश्रय केना भेटिरहल अछि ?

गणतन्त्रमे जतऽ विचारके राजनीति होएवाक चाही, एकटा विचारसँ सहमत लोक एकठाम या कहु एकटा पार्टीमे रहव सामान्य मान्यता अछि । मुदा, नेपाल आ ताहुमे मधेशमे विचारसँ बेसी एक्कही जाति, वडका जाति–छोटका जाति, अपन टोल–दोसर टोल, धन्नीक–गरीबक नारापर राजनीति भऽरहल सत्यके केओ अस्वीकार नई कऽसकैत छी ।

अपराधी, चोर, भ्रष्ट, दमनकारी, बदमासके कोनो जाति या कोनो पार्टी नई होइत छैक । लेकिन जाइ देशमे÷जाइ प्रदेशमे अपराधी, चोर, भ्रष्ट, दमनकारी, बदमासमे अपन पार्टीक सदस्य नजर अवैत होइ, ओतऽ विचारके राजनीति हुकुर–हुकुर करवे करतै । अपना पार्टीक सदस्यता लेने अपराधी, चोर, भ्रष्ट, दमनकारी, बदमास जँ पकरा जाइत छैक त पार्टी आ पार्टीक भातृ संगठनद्वारा प्रेस विज्ञप्ति निकालिकऽ सरकार या विपक्षीके गरियाविकऽ संरक्षण प्रदान करब सन–सन काज मारिपीटक राजनीतिके समाप्त करऽसँबेसी प्रश्रय दऽरहल अछि ।

अपन पार्टीक सदस्य या समर्थकके बचाउमे धर्ना÷प्रदर्शनसन काज आओर राजनीतिके शर्मसार कऽरहल अछि । जतऽ अपराधी, चोर, भ्रष्ट, दमनकारी, बदमासके पक्षमे प्रेस विज्ञप्ति, धर्ना, प्रदर्शन आ दवाव रैली निकालल जाइत होई, ओतऽ अपराधक राजनीतिके प्रश्रय भेटतैक कि नहिं ? 

राजनीतिक दलमे आवद्ध नेतासब मारिपीटके राजनीतिके प्रश्रय दऽरहल अछि, ताइमे कोनो दू मत नहिं । जाधरि अपराधी, चोर, भ्रष्ट, दमनकारी, बदमासमे राजनैतिक दलक नेतासब समाजक कलंककेरुपमे देखवाक शुरु नई करतैक, ताधरि मारिपीटक राजनीतिके अन्त्येष्ठी होएव कठीन छै । 

देशक कानूनके जाधरि स्वतन्त्र नई छोडल जएतै, अनावश्यक राजनैतिक दवावके राजनीति बन्द नई होएतै अपराधी, चोर, भ्रष्ट, दमनकारी, बदमासके मनोवल बढिते जएतै आ मारिपीटक राजनीति दिनानुदिन बढिते जएतै ।

प्रशासनके ढुलमुल रवैया, ककरो प्रतिके सहानुभूति आ आक्रोशक कारण सेहो देशमे मारिपीटक राजनीतिके मलजल दैत आएल अछि । अपन पद बँचयवाक, बढुआ आ पारितोषिक पएवाक आश या लोभक कारणे जे प्रशासन आ सुरक्षा निकाय ढुलमुल नीति बनौने अछि, तकरा कारण सेहो वास्तविक अपराधी, चोर, भ्रष्ट, दमनकारी, बदमासके मनोवल बढिरहल अछि आ मारिपीटक राजनीति समाप्त होयवाक बदलामे दिनानुदिन फुलाएल जाऽरहल अछि ।

  कोना हटत ई मारिपीटक राजनीति ?

गणतान्त्रिक देशमे मतपत्रके सबसँ पैघ महत्व रहैत अछि । गणतन्त्रके जनताके शासन सेहो कहल जाइत अछि, जतऽ जनतासँ चुनल प्रतिनिधि शासन करैत अछि । मुदा, जतऽ मतपत्र जातिपाति, पाई, दारु, अपन गउँआ–दोसर गउँआमे ओझराएल रहत, ताधरि समाजमे परिवर्तन नई भऽसकैय । मत पएवाकलेल राजनीतिकर्मी कतवो नीच काज करवाक चलन देशमे विद्यमान अछि । जाऽधरि अपराधी, चोर, भ्रष्ट, दमनकारी, बदमासके खराब नै मानल जएतै, ताधरि मारिपीटक राजनीति चलैत रहतै । जतऽके अधिकांश जनता व्यक्तिगत स्वार्थमे लीन रहतै, ओतुक्का नेता अपन स्वार्थक पूर्ति अपराधी गतिविधिसँ करिते रहतै । जाधरि राजनीतिक दलक सिद्धान्त अनुरुप राजनीतिक दलक सदस्यसबहक आचरण नई होएतै, मारिपीटक राजनीतिके गाडी फूल स्पीडमे दौडिते रहतै ।

अतः अपनाके सजग आ वास्तविकरुपमे अहिंसाके समर्थक कहनिहार लोक, आम जनतामे जनजागरण नई करौतै, अपन व्यवहारके आत्मसात नई करतै ताधरि सबकियो अहिंसा–अहिंसा जपैत रहतै आ समाज सब तरहें दूर्गतीसँ भरैत जएतै । जानकी सबके समयमे सदबुद्धी देथुन । नीकके नीक आ खराबके खराब कहवाक सामथ्र्य सबमे आवैक ।


भौतिक पूर्वाधार विकासक क्रममें लोप होइत स्थानीय संस्कृति

 मनोज झा मुक्ति

देश संघीयतामे गेलाकवाद सबठाम भौतिक पूर्वाधारक काजमे आमूल परिवर्तन भऽ रहल अछि । गाम गामक सडक गल्लीसब ढलान भेल अछि त कार्यालय भवन आ प्रवेशद्वारक संगहि धार्मिक स्थलसब एवम् पोखरिक सौन्दर्यीकरणक काज जोरसोरसँ होइत देखल जाऽरहल अछि । भऽरहल भौतिक निर्माण कतेक टिकाउ अछि से अलग बात । बिनु नालाके सडक ढलान या ठामठाममे निर्माण भेल या निर्माणक क्रममे रहल प्रवेशद्वारक आवश्यकता आ अपरिहार्यताक विषय अपने ठाम अछि । समग्रमे ई कहल जाऽसकैय जे भौतिक पूर्वाधारक विकास देशमे यत्र तत्र सर्वत्र भऽरहल अछि । गामघर आ छोटमोट शहर सुन्दर लागऽलागल अछि । मुदा, पहिचानकलेल आएल संघीय देशमे पहिचानक प्रमुख अवयव रहल संस्कार आ संस्कृति मरनासन्न अवस्थामे पहुँचैत स्पष्टरुपसँ देखल जाऽरहल अछि ।

स्थानीय संस्कृतिक विकास होई, अप्पन संस्कृतिक संरक्षण आ संवद्र्धन होई ताहिलेल स्थानीय तहमे यथेष्ट बजेटके व्यवस्था कयलगेलाक वादो निर्वाचित पदाधिकारक आ संस्कृतिकर्मीक निष्कृयतासँ पहिचानक पर्याय रहल संस्कृति लोप होएवाक क्रममे अछि । 

जाहि प्रकारक स्थानीय, प्रादेशिक आ संघीय सरकारक दृष्टिकोण संस्कृतिक विकासमे देखल जाऽरहल अछि, बहुत चिन्तनीय अछि । जनप्रतिनिधिसबके संस्कृति जेना विसराइएगेल होय तेना प्रतित होइत अछि, त संस्कृति अभियन्तासब मंच, सभा\सेमिनार आ गोष्ठीमे जहिना संस्कृति बचयवाक बात करैत छथि, कार्यपत्रसब प्रस्तुत करैत छथि ओ गामगाम आ टोलधरि नहिं पहुँचि ओतहि ठमकल रहि जाइत अछि । संस्कृति संरक्षण आ प्रवद्र्धनक नामपर जे बजेट जाहि निकायमे अवैत अछि ओ सबटा खर्च भेल अधिकांशठाम देखल गेल अछि ।

मिथिला संस्कृतिक पर्याय बनल फगुआ होय या जुडशीतल, सामा होय या झिझिया, जटजटिन होय या डोमकच्छ सबके सब आब नामेकलेल जिवीत रहिगेल अछि । कोनो सांस्कतिक कार्यक्रमक स्टेजपर गीतमे एकर प्रदर्शन धरि मात्र सीमित भऽ कऽ रहिगेल बातसँ कियो असहमत नहिं होएवाक अवस्था अछि ।

अपन संस्कृतिप्रतिक उदासिनता देखाविरहल विभिन्न तहक सरकार अपना ठाम दोषी त अछिए, संस्कृति बँचयवाक नामपर खोलल संघ\संस्थासब आ अपनाके अभियानी होएवाक दावा कएनिहान सभ सेहो एहिमे दोष मुक्त नहिं देखल जाऽरहल अछि । जनप्रतिनिधिपर दवाव देवाक काज हुए या संस्कृतिके जिवन्त करवाक काज हुए, एहिपर सभके संवेदनशील भऽकऽ लगनाई अत्यावश्यक अछि । आब सबके एकमत होबहि परत जे पहिचानक पर्याय आ मिथिलाक परिचायक रहल संस्कृति आब मञ्चधरि मात्र सीमित रखवाक अछि दोसरके देखयवाकलेल कि वास्तविकरुपसँ सांस्कृतिक जागरणक अभियान गामगाम आ टोलटोलधरि लऽ जएवाक चाही ?

शहरमे रहनिहार धियापुतासब त अपना संस्कृतिसँ अनभिज्ञ अछिए, संस्कृतिक डीह मानल जाइत गामघर आ टोलटोलक बच्चासब सेहो अपन संस्कृतिक वास्तविक रुपसँ दूर जाऽरहल अवस्था आविगेल अछि । संसारक सबसँ वैज्ञानिक आ सामाजिक एकताक बन्हनक रुपमे रहल संस्कृति शिक्षण आ प्रशिक्षणक आभावमे या त शुन्य प्रायः अछि, या विकृतरुप धारण करैत जाऽरहल अछि । संस्कृति धरापमे पडलाक कारणे सामाजिक व्यवस्था डगमगा रहल सत्यके सबके स्वीकार करहिटा पडत ।

स्थानीय सरकारसबपर विशेष कऽ दवाव बनाविकऽ गामगाममे अनिवार्य आ विधिवतरुपसँ प्रशिक्षणक काज जँ आरम्भ नई कयलगेल त मिथिलाक संस्कृतिके संरक्षण करव अत्यधिक कठीन भऽजाएत । जे जतवा संस्कृतिक जानकार गामघरमे जीवित रहिगेल अछि जे एहिमे उत्साह पूर्वक सहयोग कऽसकैत छथि, हुनकर सबहक सहयोगसँ जतेक सरलसँ संस्कृतिके संरक्षण आ प्रवद्र्धन कयल जा सकैय से मौका हातसँ निकलि जाएत ।

ओना संस्कृतिक संरक्षण प्रवद्र्धनक नामपर सरकारी बजेट निकालि रहल संघ\संस्था सबके कमी नई रहितो सतहीरुपमे काज नई भऽरहल अछि । संस्कृतिक संरक्षण आ प्रवद्र्धनक नामपर निकालल बजेटसँ अपन विलासिता पुरा करवाक काजके बन्द करहिटा पडत । जाधरि हमसब मात्र आ मात्र देखावालेल संस्कृतिक संरक्षण आ प्रवद्र्धनक काज करैत रहव त एकर नाश होएव प्रायः निश्चित अछि ।

भौतिक विकास होइत समयमे नष्ट होइत जाऽरहल सामाजिक व्यवस्था आ सांस्कृतिक विकासप्रति स्थानीय जनप्रतिनिधि जँ सचेत नई होएता त गाम,शहर त पक्की भऽजाएत, पोखरि सौन्दर्यीकरण, ठामठाममे प्रवेशद्वारक निर्माण आ मठमन्दिरक निर्माण भऽजाएत, मुदा सामाजिक आ सांस्कृतिक विचलनसँ गाम शहर आदमी अछैतमे श्मसान तुल्य बनवाक संभावना बेसिए अछि ।

ताँए, अपन अपन दायित्व आ कर्तव्यप्रति इमान्दार भऽ सब तहक सरकारमे रहल कर्मचारी, जनप्रतिनिधि आ सामाजिक\सांस्कृतिक अभियानीसबके अपन पहिचानक प्रमुख तत्व रहल संस्कृतिके वास्तविकरुपसँ संरक्षण आ संवद्र्धनक काजमे जँ नई लागव त अपन अन्तरआत्मा आ अपन सन्ततिक आगा मुँह देखयवाक योग रहिसकव ताईमे शंका अछि । जानकी सबके समयमे सदबुद्धि देथु ।


अस्तित्वक कटघेरामे मिथिला : मैथिलीक संघ संस्थासब

 मनोज झा मुक्ति

संसारक समृद्ध संस्कृति, मिठ्ठ भाषा आ दुराग्रही संस्कारसँ भरल मिथिला धिरेधिरे अपन सबचीज गुमवैत जाऽरहल अछि । सऽभ तरहें मिथिलाक पहिचान संकटमे पडैत जाऽरहल बातके स्वीकार करवामे किनको आपत्ति नई होएवाक चाही । आखिर, ई अवस्था कोना अएलै ? एकर दोषी के ? के एकर खोज करत ?

विद्वानक बात करव त एकसँ एक विद्वताक व्यक्ति सर्टिफिकेट सहित सहजे उपलब्ध भऽजएता । अभियानक बात करबै त उत्कृष्ट अभियान संचालन कएने प्रमाण सहित प्रस्तुत होवऽबलाके कमी नै भेटत । मिथिला आ मैथिली प्रति अपन जीवन समर्पण कऽदेने कहनिहार व्यक्ति आ संस्थाक गन्ती सेहो संख्यामे कम नई । मुदा, ई सब बात पेपर–पत्रिका, सभा–सेमिनार, गोष्ठी या मंचपरक गप्प अछि । ई आ एहन बात कहऽ\सुनऽमे जेतवे बड सुहनगर लगैत छैक, निर्वाह करऽमे ओतवे कठीन छै । किया त कहऽ÷सुनऽमे पाई आ परिश्रम नई लगैछै । ‘मंगनीके पाई त नौ मन तौलाई’ से सबठामकलेल बनल कहावत होइतो अपनासबहक माटिपानिकलेल एकदम सटीक बैसैत अछि ।

मिथिला÷मैथिलीकलेल मात्र नेपाल÷भारतमे बहुतो रास संघ\संस्था खुजल । बहुत, किछु दिन अस्तित्वमे रहल आ शिथिल होइत बिलागेल । किछु समय–समयपर खुजैत अछि, पुनः बन्द भऽजाइत अछि । आ किछु नामेमात्रलेल बोर्ड टांगिकऽ बैसल अछि । विगतमे मैथिली÷मिथिलाकलेल जमिनीरुपमे काज कएने संस्थासब एखन नाफा–घाटाके दोकानमे परिणत भऽ साइन बोर्ड झमकौने अछि । कहियो अभियान मुख्य उद्देश्य रहल संस्था अपनाके पूर्ण व्यावसायीक बनालेने कहैत अछि आ केहनो काजमे जीविकोपार्जनक प्रश्नके ठाढ कऽदैत अछि । 

मैथिली\मिथिलाकलेल काज कएनिहार व्यक्ति या संस्थाके जहन पुरस्कार या सम्मानक बात होइत छैक तहन मैथिली\मिथिलाक नाम भँजौनिहार व्यक्ति आ संस्थासब बुलबुलाकऽ निकलव कोनो नव बात नहि ।

हमर शिर्षक अछि जे मिथिला\मैथिलीसँ जुडल संघसँस्था सबहक अस्तित्व संकटमे अछि ।  ओना अस्तित्व बिहीन लोकसब रहल संस्थाक अस्तित्व कोना लहलहाओत ? कहवाक तात्पर्य ई जे नैतिक धरातलके बिसरिगेल लोक जहने कोनो संस्थामे रहत त धिरेधिरे अपन चरित्रके प्रभाव ओहि संस्थापर छोडवे करत । 

मिथिला\मैथिलीक संरक्षण आ संवद्र्धनलेल कोनो काज नईं होइत अछि या संस्थासब नई करैत अछि सेहो बात नई छै । मुदा, प्रश्न छै जे जाहि तरहक काज मिथिला\मैथिलीक अस्तित्व निखरारऽलेल÷जोगावऽलेल होएवाक चाही से कि भऽरहल छैक ? जाहि स्तरके काजक आवश्यकता मिथिला÷मैथिलीक छै, से कि कएलजारहल छै ? या जे काज कोनो व्यक्ति अथवा संस्था जे कऽरहल अछि, ताहिसँ मिथिला÷मैथिलीके अभिष्ट पुरा भऽरहलैय ?

हमरा जनतवे मिथिला÷मैथिलीकेलेल बहुत रास व्यक्ति आ संस्था काज कऽरहल देखवैत अछि । अन्तरर्राष्ट्रि«य मैथिली सम्मेलन, मैथिली लिटरेचर फेस्टिभल, मैथिली साहित्य सम्मेलन, कवि गोष्ठी, कथा गोष्ठी, विचार गोष्ठी, सम्मान कार्यक्रम, पुरस्कार वितरण समारोह, फग्ुआ फुर्रर् दंग, महामूर्ख सम्मेलन, विद्यापति स्मृति कार्यक्रम, चनमा,सांगितिक कार्यक्रम, नाटक महोत्सव लगायतक बहुत सभा÷सेमिनार महोत्सवक आयोजना प्रायः कतौ ने कतौ होइते रहैत अछि । लोक सहभागियो होइत छथि, खर्चो जुटवैत छथि, खर्चो करैत छथि । मुदा की मिथिला\मैथिलीके ओहिसँ उपलब्धी छै त ? जँ छै त, केहन ?

जहने काज होइत छै या कएल जाइत छै त किछु ने किछु उपलब्धि भेनाई स्वाभाविक छै, होएवो करैत छै । मुदा, जाहिरुपसँ मिथिला\मैथिलीक अस्तित्वपर चौतर्फी प्रहार कएल जाऽरहल छै, मान मर्दन कएल जाऽरहल छै, ओतऽ जाहिरुपक काज होएवाक चाही से कि भऽरहल छै त ? 

चाहे मिथिला राज्य नामाकरणक प्रश्न होई या मिथिला क्षेत्रमे मातृभाषामे पढाइयक । सरकारी कार्यालयसबमे मातृभाषाक प्रयोग बढावऽके अभियान होई या मिथिला क्षेत्रमे साइनवोर्ड, पर्चा÷पम्पलेट, वालपेन्टिगं अपन भाषामे लिखएवाक अभियान, कतेक संस्था जमिनीस्तरपर एहि काजमे अपन उर्जा लगौने अछि ? विगतमे कएलगेल काजके कतेकदिनधरि गन्ती कराविकऽ दोकानक बिक्री होइत रहत या बेचैत रहब ? 

भाषा कोनो जातिक नईं होइत छै, भूगोलक होइतछै से साश्वत सत्यके जनितो मिथिलाक क्षेत्रमे भाषागत जे वितण्डा मचाओल जाऽरहल छैक, ताहिपर मात्र सभा÷सेमिनारमे विचार विमर्श कहियाधरि सिमीत रहतै ? मिथिला क्षेत्रक लोककेँ जाहिं तरहें झूठफूस बाजिकऽ मैथिलीक विरोधी मानसिकता तैयार कएल जाऽरहल छै, तकरा के फरिछेतै ?

जँ कोनो राजनीतिक दल या कोनो नेताके भरोसे बैसल रहब त सबहक अस्तित्व बँचत कि डूबत से प्रायःलोक बुझिरहल छियै । विवेकहीन विभिन्न पार्टीक कार्यकर्ता आ नेताक कारणे सेहो मिथिला÷मैथिलीकेँ अस्तित्वपर प्रहार कएल जाऽरहल छै से सबके नीकजकाँ बुझल अछि । भोंटक लोभे आ दोपटा ओढवाकलेल कोनो नेता या मन्त्री केहनो एवम् ककरो मंचपर जाऽकऽ आयोजक अनुसारके भाषण करऽमे कनिक्को नईं हिंचकिचाएल करैछ अछि । नेता अपना माइयक बोलीके कखनो कोनो भाषा त कखनो कोनो भाषा कहऽमे कनिक्को विचारधरि नई करैत अछि ।

एहन अवस्थामे मिथिला÷मैथिलीकलेल लागल प्रत्येक व्यक्ति आ संघ\संस्थापर ऐतिहासिकरुपसँ कलंकक टीका थारी सजल दरबज्जापर प्रतिक्षा कऽरहल अछि । जौं सबकियो अपन–अपन काजके जमिनी स्तरपर नई करव, मिथिला क्षेत्रक लोकके मानसिकतामे विष रखनिहारकेँ नंगा करैत, फरिछिएवाक काज अविलम्ब शुरु नई भेल त सबहक अस्तित्व घोर संकटमे लगभग लगभग पडैत जाऽरहल अई ।

अपनाके मिथिला\मैथिलीक सेवक कहनिहार, मिथिला\मैथिलीक अभियानी कहनिहार, मिथिला\मैथिलीक नामपर पेट पालनिहार व्यक्ति आ संघसंस्थासबके अविलम्ब एकटा रणणीति बनाविकऽ मिथिलाक गामगाम आ टोलटोलमे पैसऽके शुरु कऽदेवऽपरत ।

नेपाल आ भारत संविधानमे मातृभाषामे पठन–पाठन कराओल जएवाक बात रहितो बहुत कम व्यक्ति आ संस्था एहिदिस प्रयास कएलक । किछु व्यक्ति या संस्थाक प्रयाससँ मैथिली विद्यालयधरि पहुँचल त, मुदा सहयोगक आभावमे थकमका रहल अछि । जँ सहयोगी हाथ, संघसंस्थासबके आवाज बुलन्द नई कएलगेल त पाठशालाधरि पहुँचल मैथिली दम तोडिदेत । एहिलेल व्यक्तिगतरुपसँ या संस्थागतरुपसँ मिथिला\मैथिलीकलेल कएल जाऽरहल खर्चमेसँ मैथिलीक पठनपाठनके सहयोग कऽ जोगौनाई सन ठोस काजक संस्कार कहियासँ शुरु होएतै ?

सरकार जनगणनाक तैयारीमे अछि, पाईकेलेल अपना मायके बेचिलेने मैथिलीएक किछु बेटा गामगाममे नौटंकी करऽमे लागल अछि । ककरो राजनीतिक अभिष्ट पुरा करवामे अपन भाषाके दोसर ठामक भाषा, जातिक भाषा कहिकऽ विभिन्न गतिविधि कऽरहल अछि । गामगाममे अभियानी या संघसंस्थाके जाऽकऽ अपन अस्तित्व रक्षा सन महत्वपूर्ण काज शुरु करवामे शारिरीक, नैतिक आर्थिक सहयोगक वातावरण निर्माणकलेल गोष्ठी कहिया होएतै ?

एकटा बात निश्चित अई जे मिथिला÷मैथिलीक बात कएनिहार, काज कएनिहार, दोकान खोलनिहार, भँजौनिहार सबहकलेल खतराक घण्टी बाजिगेल अछि । एहन समयमे मिथिला÷मैथिलीकलेल खुजल संघसंस्थाक अस्तित्व कटघेरामे अछि । जँ अस्तित्व जोगएवाक अछि, नैतिकता बँचल अछि त संघसंस्थासब एहि दिस ठोसगर सोंच बनाविकऽ आगा बढऽमे विलम्ब नई करी । ओना त किछु विलम्ब भइएगेल अछि, आब जँ आओर विलम्ब भेल त सबहक अस्तित्व मात्र संकटमे नई अछि, सबहक नामके इतिहास कलंकीत करवाक प्रतीक्षामे सेहो अछि । जानकी समय अछैते सबमे चेतना देथुन्ह ।