Thursday, June 4, 2009

मल्ल काल आ मैथिली साहित्य



काठमाण्डू उपत्यकामे मल्लकालिन समयमें भेल मैथिली साहित्यिक विकासकें स्वर्णकाल मानल जाइत अछि । मल्लकालिन समयमें मैथिली काठमाण्डू उपत्याक राजकाजक भषाके दर्जा पओने छल । प्रायः सऽभ मल्ल राजा लोकनि मैथिली भषामें साहित्यक रचना कयने छलाह । मैथिली साहित्यमे अपन योगदान देनिहार किछु कवि मल्लराजा आ हूनक कृतिके सन्दर्भमें किछु जानकारी प्रस्तुत अछि ।

१. सिद्धिनरसिंह मल्ल(१६२०—१६५७) ः— हरिहरसिंहक पश्चात ई ललितपुर—पाटनशाखाक सुप्रसिद्ध साहित्यानुरागी राजा भेलाह । ओ शासक रहितहुँ सन्यासी जकाँ धर्मकर्ममें लीन रहैत छलाह । कृष्ण मन्दिरक शिलालेखमे हूनका युधिष्ठिरक समान धर्मात्मा, अर्जुनक समान परात्रmमी आ कर्णक समान दानी कहल गेल अछि । वस्तुतः ओ कोटाहुति यज्ञ कऽ अपन भक्ति—भावकेँ साकार कए देल तँ कृष्णविनायक पदावलीक रचना तथा कार्तिक नाचक प्रवर्तन कए साहित्य आ नृत्यक प्रति अपन सर्जनात्मक प्रतिभा सेहो अभिव्यक्त कएलनि ।ओना सिंहभूपतिक नामसँ प्रख्यात भेल एहि कविकेँ अनुमानहिसँ सिद्धिनरसिंह मल्ल कहलगेल छन्हि । एहिसँ पहिने नरेन्द्रनाथ गुप्त सिंहभूपतिके शिवसिंह अथवा विद्यापतिक उपाधि मानिलेने छलाह, मूदा ओ भ्रामक सिद्ध भेल । सिंहभूपतिक ‘रागतरंगिणी’ आ ‘नानारागगीतम्’ में दू÷दू गोट पद संग्रहित काएलगेल अछि । हिनक एकगोट पद ‘भाषा—गीत संग्रह’ में सेहो भेटैत अछि । हिनक किछु पंत्तिm एहि तरहक अछि ः—

सबहुँ सखि परबोधि कामिनि अनि देल पिय पास ।

जनि बाँधि व्याधञे विपिन सञो मृग तेजय दीघ निसास ।।

बैसलि शयन समीप सुवदनि जतने समुखि न होए ।

भेल मानस बुलय दहो दिस देल मनमथ फोए ।।

२. भूपतीन्द्र मल्ल(१६९५—१७२२) ः— जितामित्र मल्लकबाद भक्तपुरक राज भेल भूपतीन्द्र मल्लक स्थान नेपालक उत्कृष्ट कविगणमें उच्चतम अछि । ई विषेशतः भक्ति विषयक पदक रचना कएलन्हि । शिव, गौरी, हरि ओ शक्तिक अर्चना विषयक हिनक पदसऽभ छन्हि । हिनक पद एक पदावलीमे संकलित अछि, जकर अन्वेषण डा. बागची कएलन्हि । श्रीझबाली अपन ‘नेपाल उपत्यकाको मध्यकालीन इतिहास’ मे १०० मैथिली गीतक हिनक एकटा संग्रहक उल्लेख कएने छथि । हिनक बहुतो पद शिलोत्कीर्ण सेहो उपलब्ध अछि । हिनक किछु पंत्तिm एहि तरहक अछि ः—

पीत वसन कुमित विराज, खगपति आसन विराज

शंख चत्रm गदा पद्म वाहु सहास......

भूपतीन्द्र हरि गुण गाव ।

पदयुग सुन्दर हृदय विहाव ।।

३. जगज्ज्योतिर्मल्ल(शासन १६१३—१६३७) ः— संगीतशास्त्रक बड़का संरक्षकके सँगहि सुकवि रहल जगज्ज्योतिर्मल्लक दरबारमें अनेक मैथिल विद्वानसऽभ आश्रय पवैत छलाह । ‘मुदितकुवलयाशव(१६२८)’,‘हरगौरीविवाह(१६२९)’,‘कुंजविहारनाटक’ आदि हिनक रचना कहल जाइत अछि । तहिना विविध भाव—विषयक पदसंग्रह ‘गीतपंचाशिका’ सेहो उपलब्ध भेल अछि, जाहिमें भक्ति ओ श्रृँगारक अतिरिक्त बृद्धावस्थाक वर्णन, नवरसक वर्णन, विरहावस्थाक वर्णन संगृहीत अछि । हिनक किछु पंत्तिm एहि तरहक अछि ः—

कुसुम साजल सेज परिहर दूर, तोहे बिनु हृदयहोअए तसु झूर

जतन करए तुअ दरसन लाई, अविरल नयन नीर बहि जाई ।

अनुखन तोहर धरए धेयान, लए कुंकुम लिह तनु अनुमान ।

पए परि पुन पुन कर अनुताप, खन हँस खन रुस करए विलाप ।

नृप जगजोतिमल इहो सर गाय, दूति उकुति बुझ आठओ भाव ।

४. जगतप्रकाश मल्ल(शासन १६३७—१६७२) ः— हिनक अनेक मैथिली पद,‘पदसमुच्चय’, नानासंग गीतसंग्रह, ‘गीतपंचक’ अदिमें उपलब्ध अछि, विषयानुत्रmमें जे एहि प्रकारक अछि ः— १. भगवानक दशावतारक पद, २. विष्णुपद एवं ३. सदाशिवक पद । दरबार पुस्तकालयमे हिनक सात गोट नाटक सुरक्षित अछि, जाहि मध्य ओ मैथिली गद्यक बड़ सुललित प्रयोग कएने छथि । ओ नाटक सऽभ अछिः— ‘उषाहरण’, ‘नलीय नाटक(१६७०)’, ‘पारिजातहरण’, ‘प्रभावतीहरण(१६५६)’, ‘मलयगन्धिनी’, ‘मूलशशिदेवोपाख्यान’ एवं ‘मदनचरित’ । वस्तुतः जगतप्रकाश मल्लक समय मैथिली साहित्य—संगीतक उत्कर्ष नेपाल मध्य चरम सीमापर पहुँचि गेल छल आ एहि उत्कर्षमें हुनक महत्वपूर्ण योगदानक एहिसँ अनुमान कएल जाऽसकैया जे मध्ययुगीन इतिहासमे ओ ‘गन्धर्वविद्या—गुरु’ एवं ‘कविन्द्र’ नामे. प्रख्यात भेलाह । हिनक किछु पंत्तिm एहि तरहक अछि ः—

मोह ईसर कयल पितृ वनवास, तुअ पद पंकज मोरा आस ।

तिलक राख रताह तालक यति, बाम दिस नलय धरु मधुर जति

कान कुंडल अहि हाल मुण्डमाल ।

५. प्रताप मल्ल(१६४१—१६७४) ः— नरसिंह मल्लकबाद कान्तिपुरक राजा भेल, कवीन्द्र उपाधिसँ प्रख्यात प्रताप मल्ल पैघ विलासी छलाह । कूचबिहारक राजा वीरनारायणक पुत्री रुपमतिसँ, कर्णटकन्या राजमतीसँ, महुत्तरी राज्याधिपति कीर्तिनारायणक पुत्री लालमती आ अनन्तप्रिया, प्रभावती प्रभृतिसँ काएलगेल हूनक विवाह एकरा प्रमाणित करैत अछि । ओ संस्कृतज्ञ आ भाषाकविक संग—संग संगीत—नृत्य एवं तन्त्रादिक मर्मज्ञ सेहो रहथि । प्रताप मल्लक पदावली राष्ट«ीय अभिलेखालयमे सुरक्षित ‘गीतप्रतापमल्लीयम्’, ‘गीतागोविन्दम् प्रतापमल्लस्य’ आ ‘प्रतापमल्ल विरचित गीतम्’ प्रभृति गीतसंग्रहसबमे उपलब्ध होइत अछि । कान्तिपुरक तुलजाभवानीक मन्दिरमे उत्कीर्ण एकटा शिलालेखमे हिनक देवीवन्दना विषयक नौटा पद उपलब्ध होइत अछि जे उत्तम कवित्व आ प्रांजल भाषा—शैलीक दृष्टिएँ वस्तुतः हिनक ‘कविन्द्र’ उपाधिकेँ सार्थक बनबैत अछि । हिनक किछु पंत्तिm एहि तरहक अछि ः—

हेरह हरषि दूष हरह भवानि । तुअ पद सरण कएल मने जानि ।

मोय अति दीन हीन मति देष । नर करुणा देवि सकल उपेषि ।

कतनय करय सहस अपराध । तैअओ जननि कर वेदन बाध ।

परतापमल्ल कहए कर जोरि । आपद दूर कर करनाट किशोरि ।

६. श्रीनिवास मल्ल(१६५७—१६८५) ः— ललितपुर पाटन शाखाक कवि सिद्धिनरसिंहक बालक निवास मल्ल सेहो सुकवि छलाह आ मिथिलामे हिनक सुप्रसिद्ध प्रमाण ई अछि जे लोचनपर्यन्त अपन ‘रागतरंगिणी’ सन ग्रन्थमे हूनक पद उद्घृत कएलगेल । जगज्ज्योर्ति मल्लक पौत्र जगतप्रकाश मल्लक संग हिनक मैत्री छल से ‘मलय—गन्धिनी’क ‘ शिरिनिवास भूपतिशरण लेल जगतप्रकाश अति ताह सुख देला ।’सँ स्पष्ट होइत अछि । हिनक किछु पंत्तिm एहि तरहक अछि ः—

उपमिअ आनन नीज पंकज ससधर दिवस भलीने ।

भौहँ अनूपम अधर सोहाञोंन, नवपल्लव रुचि जीने ।।

सुन पेअसि की मोर, परल गरुअ अपराधे ।

वह मलयानिल जार कलेवर, न कर मनोरथ बाधे ।।

७. नृपमल्लदेव ः— ई निश्चित रुपमें कहल जाऽसकैय जे नृपमल्लदेव एक गोट प्रतिभाशाली सुकवि रहथि । जकर प्रमाण रुपमें हिनक एकटा विलक्षण पद ‘भाषगीत संग्रह’ आ एकटा ‘नेपाल—तालपत्र विद्यापति—गीत संग्रह’में सेहो उपलब्ध होइत अछि । रातिक चारिम पहरमे नायिकाकेँ विदा करबाक दूतीक वचन सुनि कविक निम्नलिखित उक्ति कतेक सरस आ अर्थ गर्भित अछि जे विशुद्ध मिथिलाभाषाक स्वभाविक शब्द —विन्यासमे श्रुँगारिक सहृदयताक मधुर अभिव्यक्ति कविक काव्यकुशलताक सूचना दैत अछि ः—

मल्लदेव नृप कैतय वचन सुनि तोहेँ दुति दुरमति जाती ।

ऐसनि प्रीति कैसे विघटाबह दुहु दिसँ दोगुन माती ।

८. रणजीत मल्ल(१७२२—१७७१) ः— भूपतीन्द्र मल्लक पश्चात् भक्तपुरक अन्तिम नरपति भेल रणजीत मल्लक समयमे सर्वाधिक संख्यामे नाटकक रचना भेल आ हिनकहि आश्रित भऽ काशीनाथ, धनपति, गणेश प्रभृति कवि —नाटककार साहित्य साधना कएलनि । हिनके पराजित कऽ पृथ्वीनारायण गोर्खा राज्यक विस्तार भक्तपुरधरि केलक ।

नेपालक अधिकाँश पदावली—साहित्य एखनहुँ धरि अप्रकाशिते अछि तेँ सर्वजन सुलभ नहि अछि । तथापि जएह किछु सामग्री अपलब्ध अछि ताही आधारपर एतऽ मल्ल राजा लोकनिक राज्याश्रयमे विकसित प्राचीन काव्य—धाराक रुपरेखा मात्र एतऽ प्रस्तुत अछि आ ताहूसँ मैथिली काव्य—साहित्यक हेतु नेपालमें उपस्थित ओहि स्वर्ण—युगक नीक जकाँ परिचय भेटि जाइत अछि । मुदा ई रुप—रेखा पूर्ण नहि कहल जाऽसकैत अछि ।


स्रोत मैथिली साहित्यक इतिहास