Thursday, April 29, 2010

संविधान, सरकार, आन्दोलन आ जनता....

–मनोज झा मुक्ति
संविधान ककरालेल ? सरकार ककरालेल ? आ, आन्दोलन ककरालेल ? एहि प्रश्नक उत्तर जतवे सहज अछि ततवे जटील सेहो अछि । सामान्यतया जौं एकर उत्तर ककरोसँ पुछल जाए त उत्तर भेटत –जनताकलेल ।
संविधान निर्माणकलेल विभिन्न पार्टी आ तकर सभासदसँ पुछल जाय, “आहाँ सभासद किए भेलहुँ ? या आहाँ संविधानसभामें किए गेल छी ?” त तपाक दऽ रेडिमेड उत्तर भेटत –“जनताक अधिकार सुनिश्चित करबाक वास्ते÷नयाँ संविधान निर्माणकलेल ।”
सरकारमे रहल राजनीतिक दलसबसँ जौं प्रश्न पुछव,“आहाँ सरकारमें किए बैसल छी ?” त भूमिका बन्हैत कहता, “जनताक अधिकारके रक्षा एवं जनताके शान्ति, सुरक्षाकलेल ।”
कोनो पार्टी जे आन्दोलनमे रहैत अछि, ओकरा नेतासँ पुछल जाइछ, “आन्दोलन किएक ?” जवाव भेटत–“जनताक अधिकारक ग्यारेन्टी, जनताक शासन व्यवस्थाकलेल ।”
जहन सबकियो जनतेकलेल बेहाल अछि त जनताक ई दूर्दशा किया ? “जखन एकहुटा सहयोगी या शुभचिन्तक ककरो भेट जाइछ, त ओ सऽभ तरहें आगा बढ़ि जाइत अछि ।” ई प्रायः प्रमाणित बात अछि । मुदा, जहन संविधानसभामें रहल सभासद, सरकारमें सहभागि नेतासब, सड़कपर आन्दोलन कऽरहल पार्टीसब, सबकियो साभ काज जनतेकलेल करैत छथि त जनताक स्थिति सुधरबाक बदला दिनानुदिन दयनीय किए भा रहल अछि ? या त जनतासँ हिनका सबके तालमेल नई मिलैत अछि या मात्र सबहक नाटक अछि, जे सबकियो साभ काज जनतेक जामपर करैत अछि ?
अखनधरिक सबहक बोल ीआ काजके देखैत संविधानसभाक सभासद, सरकारमे रहल राजनीतिक दलसब आ समय–समयमें आन्दोलन कयनिहार सबके जौं ठग, जाली आ फेरेबीके उपनाम देल जाय त कोनहुँ अतिशियोक्ति नहिं होयबाक चाही । जनताक नामपर सरकारी भत्ता खएनिहार सभासदसब, जनताक नामपर सरकारी पाईपर मौजमस्ती उड़ारहल मन्त्रीसब आ जनताक नामपर जनतेके दुःख देनिहार आन्दोलन कयनिहारसब, कि कयिो जनतासँ पुछवाक औचित्यता बुझलक अछि जे जनताक ईच्छा कि छैक ? या अपनाके देशक बाहक कहबैकासब कोन काज एहन कयलक अछि, जे जनताक हीतकलेल होई ?
जौं ई प्रश्न सबसँ पुछल जाए, “आहाँसब जनताकलेल अखनधरि कि केलहुँ ?” त ओसब अपन काजसब गन्ती कराबा लगताह । किछु अपना या अपना पार्टीद्वारा कएल काज कहता त किछु काजक सम्बन्धमें कहताह, “हम(हमर पार्टी) काज करयबाकलेल तत्पर छलहुँ त विरोधी पार्टीसब मौका नई देलक या विरोध का देलक । जे किछु काज ओ कहैत छथि ‘हम कएने छी’, ओहुमें कोनो ने कोनो रुपे हूनकर स्वार्थक पूर्ति अवश्य भेल रहैत छन्हि ।
प्रश्न उठैत अछि जे, “जहन सब कियो साभ काज जनतेकलेल करैत अछि त जनता अपने कि कारहल अछि ?”
जौं जनताक बात करी, त सबकियो अपनेलेल अफसियाँत भेटत । केओ नेता आ पार्टीके गारि पढैत भेटताह, त कियो मात्र अहि जोगाड़में जे कोन नेताक पाछु लगलासँ व्यक्तिगत फएदा होयत, पद या पाई भेटत, ताही फिराकमे बेहाल भेटत । जहन चुनावक समय आओत त जनता अपन चालि(शक्ति)क प्रयोग बहुत नीक जकाँ करैत अछि । ओ ककरो अपन भोंट(मत) एहि वास्ते नहिं दैत अछि जे ‘ई जीतिका जेताह त देशक विकास या जनताक भलाईयक काज करताह ।’ प्रायः जनता तखन ई सोंचिका मतदान करैत अछि जे “हमर जातिक नेता कोन अछि ? हमरा बेटा÷बेटीक नोकरी के लगादेत ?, हमरा पदपर के पहुँचाओत ? दारु–पानीक व्यवस्था के करत ? अधिकांश जनता ई नहि देखैत अछि जे ‘के ईमान्दारीसँ काज करत ।’ जनताक प्रवृति त एहने देखल गेल अछि, “जौं एकटा ईमान्दार आ राष्ट्रवादी नेता पैदल कोनो गामें जाइत अछि त हुनकर बात कियो नहिं सुनैत अछि, आ जौं एकटा भ्रष्टाचारी नेता ५÷७ टा पँजेरो गाड़ी ला का गामें अवैत अछि त सबकियो माइए–पुते दौड़ैत अछि ।” कोनो पार्टीक नारा–जुलुश होइत अछि त किछु पएवाक लोभसँ हमसब ओहिमें शामील भा जाइत छी ।जहन हमरे सबहक(जनतेक) ई प्रवृति अछि त नीक नेता आ विकसित देशक कल्पना हमसब कोन आधारपर का सकैत छी ?
हमसब कहियो ई सोंचलहुँ अछि ? जे एहि तरहक ठक, जाली आ फरेबीके हमसब किया जीताका पठवैत छी ? कि ओही कालमे हमसब अपन देश आ अपना आपके बिसरि जाइत छी ? कशबी छैक,“रोपे पेंड़ बबुरका तो आम कहाँसे पाई” जहन नेता जीतिका जाइत अछि त हमसब अपना स्वार्थकलेल जेनतेन प्रकारे(प्रेमसँ,धम्किसँ या पैसासँ) हुनकासबके अपनालेल प्रयोग करैत छी । हमसब जौं अपना छातीपर हाथ राखिका ई सोंची, “नेताके विगारामे÷देशकलेल काज नई करादेवामे हमर दोष कतेक अछि ?” तहन बझाजाएत जे के कतेक दोष्ी छी । नेताके अपना या देशक काजसँ बेसी हमसब नोकरा सरुवा÷बढुआ एवं राजनैतिक नियुक्तिकलेल दबाव देबा लगैत छी ।
जौं वास्तविक रुपमें देशके बनयवाक अछि, नयाँ संविधानके निर्माण करबाक अछि त सभासदसब, सरकारवादी दलक नेतासब, आन्दोलनकारीसब आ जनतासबके व्यक्तिगत÷जातिगत÷पार्टीगत स्वार्थसँ उपर उठहिटा पड़त । “कम्मल ओढ़िका घि पीवाक आदति” छोड़ा परत । एक–दोसराकलेल अपना मोनमें सम्मानक भावना लाबहिटा पड़त । अप्पन खराब काजके “आलोचना” आ दोसराक नीक काजके “सराहना” करबाक आदति लगावा पड़त । आ सबसँ पैघ बात सबकियो के झूठक खेतीके बन्द करा पड़त । नईं त अखने कि ? ई संविधान कहियो नई बनत, देशक अवस्था दिनानुदिन पाछा घुसकैत जाएत आ हमरा सबहक झूठक खेतीमें देशक संगे नेतासब, जनतासंगे झिझिरकोना खेलाइत रहत.......

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