Thursday, April 29, 2010

छठि महान लोकतान्त्रिक पावनि

सँसारक प्रत्येक ठाम मनाओ जाएबला हरेक पावनि तिहारक अपन अपन महत्व रहैत अछि । मूदा सब तरहें छठि पावनि विशिष्ट रहल अछि । जहिया लोकतन्त्र,प्रजातन्त्र या गणतन्त्र शब्द सँ केओ परिचित नई रहल हेताह, ताही समयसँ लोकतन्त्र, प्रजातन्त्र या गणतन्त्रक प्रयोगात्मक रुप सँसारके देखवैत आएल अछि छठि पावनि । किया त मानव सभ्यताक विकाश जहिया सँ शुरु भेल तहिये सँ छठि पावनिके शुभारम्भ भेल बात प्रमाणित भऽ गेल अछि ।
छठि पावनिमे कायल जायबला हरेक विधानके देखल जाय त ताहिमे लोकतन्त्र, प्रजातन्त्र या गणतन्त्रक सफल प्रयोग भेटत ।जकरा समाज या समाजक लोक एक प्रकारे छोडि दैत अछि या कहु कोनो काजक नई मानैत अछि, तकरा सेहो एहि छठि पूजामे उच्च सम्मान देल जाइत अछि ।
कोन तरहें छठिक हरेक विधि विधान, सँस्कार सँस्कृतिमे लोकतन्त्रक प्रयोग, कोनाकऽ ?
©सूर्यक आराधना....
सूर्य प्रत्यक्ष फल देवऽबला देवताक रुपमें सगरो पूजित छथि । एहि सँसारमे रहल प्रत्येक सजिवके सूर्य भगवान जीवन दैत छथिन्ह । ताहि कारण सँ सँसारमे सबठाम सूर्यके पूजा कायल जाइत अछि ।
एकटा प्रसिद्ध कहबि छइ– “उगैत सुरुजके सब प्रणम करैत छैक” या “सब हेओ उगिते सुरुजके प्रणम करैत अछि ।” मूदा छठिमे डुबैत या अस्त होइत सुरुजके सेहो ओतबे निष्ठासँ पूजल जाइत अछि । एहिसँ ई स्पष्ट होइत अछि जे प्रजातन्त्र, लोकतन्त्र या गणतन्त्रमे सबहक सँग समान व्यवहार होयबाक चाही से बात छठि पावनि उगैत आ डुबैत सूर्यके पूजाक माध्यम सँ प्रमाणित करैत अछि ।
©छठि पावनिक प्रसादमे लोकतान्त्रिक मmलक....
छठि पावनिमें दिनकर दिनानाथ या छठि मैयाके अर्पण कायल जाएबला प्रसादमें सेहो लोकतान्त्रिक प्रयोग भेटत ।
गम्हरी धानक प्रयोग एक प्रकारे समाजसँ उठिगेल अछि । समान्य दिनमे जिविकोपार्जनक क्रममें गम्हरी धानक प्रयोग केओ नई करैत अछि, मूदा छठि पावनिमे सबसँ जौं पैघ सम्मान भेटल अछि त गम्हरीके । तहिना प्रायः उपलब्ध रहल सब फलफूलके सम्मानके सँग भगवानके अर्पण कायल जाइत अछि ।
गाम समाजमे अछोप मानल जायबला “डोम” जातिके बुनल बियनि, सुपती, सुप आ छिट्टीके बिनु छठि पावनि समभव नई भऽ सकैया । लोकतन्त्रक सफल प्रयोगक उदाहरण एहि सँ पैघ कतऽ भेटत ?
©जलाशय किनार( छठिक घाट) में लोकतान्त्रिक करण....
छठि पावनि, बिनु जलाशयके सम्भव नई होइत अछि । गामक सब जाति एवं वर्णक लोक एकैठाम जम्मा भऽ क ई पावनि सम्पन्न करैत छथि ।(जतऽ इनारमें एकटा सवर्ण पानि भरैत कालमे एकटा अछोप ठाढ भ गेल त पानि अशुद्ध भेल मानल जाइत अछि) ओतऽ समाजक सब जाति एक्कहिठाम रहैत छथि, एक्कहिटा जलाशयमे ठाढ भऽ सब कियो छठि मइयाके पूजा करैत छठि । जाहि तरहें लोकतन्त्रक परिभाषामें जाति–पातिक भेदभाव नई होएबाक चाही से कहल अछि तकर सफल प्रयोग छठि पावनिमे देखल जाइत अछि ।
©नटुआ नाच...
समाजक लोकसब विभिन्न मनोकामना पूर्ण होयबाक लेल आँचरपर नटुआ नचयबाक कबुला कयने रहैत छथि । जाहि अनुसार मनोकामना पूर्ण भेलाकबाद छठिक घाटपर कबुला अनुसार अपना–अपना आँचरपर नटुआ नचबैत छथि ।नटुआ बनल व्यकित समाजमें अछोप मानल जाएबला जातिक होइतो अपनाके सवर्ण कहयनिहार महिलासब उत्साहित भऽ अपना आँचरपर नटुआके नचबैत छथि । एत जाति–पातिक भेदभावक कनिको स्थान नई देल जाइत अछि ।
©अर्घपर दूधक ढार...
छठि पावनिमे कायलगेल कबुला अनुरुप जलाशयके किनारमे बनाओलगेल घाटपर राखलगेल अर्घपर गायक दूधके ढार देल जाइत अछि । इनार या कलपरसँ माटिक बासनमे लऽ जाइत पानि जौं कोनो अछोप स्पर्श कऽ दैत अछि त ओहि बासनके सेहो फेकि देल जाइत अछि अपना समाजमें । मूदा छठिक घाटपर राखलगेल अर्घपर एकटा चमार, डोम या कोनहुँ अछोप मानल जायबला जाति जौं दूधक ढार दैत अछि तऽ ककरो कोनहँु आपत्ति नई होइत छैक आ ताई प्रसादके श्रद्धापूर्वक सबकेओ ग्रहण करैत छथि । कि लोकतन्त्रक सफल प्रयोग नई अछि ई ?
समाजक सब व्यक्ति एक्कहिठाम जम्मा होएब, सबहक मत अनुसारे एक्कहिटा काज होयब, जत केओ उँच–नीच नई, केओ छोट–पैघ नई से प्रत्येक वर्षमें हमरा सबके याद करबैत अछि छठि पावनि । स्वस्थ्य जीवन यापन करबाकलेल अपन शरीरक, अपन घर–दुवारिक आ प्रयोग कायल जाएबला हरेक वस्तु शुद्ध आ सफा रहबाकचाही से स्मरण करबैत अछि छठि पावनि हमरा सबके । मूदा दुखद पक्ष ई अछि जे एतेक सफल लोकतन्त्र, प्रजातन्त्र या गणतन्त्रक प्रयोग हमसब प्रत्येक वर्ष त मनबैत छी, सबठाम लोकतन्त्र, प्रजातन्त्र आ गणतन्त्रक भाषण दैत छी, मूदा जीवनक यात्रामे व्यवहारमें लागु नई करैत छी ।
जौं वास्तविक रुपमें हमसब लोकतन्त्र, प्रजातन्त्र या गणतन्त्रक अनुयायी छी त प्रत्येक वर्षक एकदिन ( छठिक दिन) मात्रे नई कि जीवनक हरेक क्षणमे एकरा लागू करी । सबदिन छठिए दिनके व्यवहार अनुसरण करी त लोकतन्त्र, प्रजातन्त्र या गणतन्त्रक पाठ मधेशवासी सम्पूर्ण सँसारके सिखाओत ।

२. छठिक गीत


काँचही बाँसके मन्दिरबा
कञ्चन लागल केबाड
ताही पैसी सुतलनि सुरुज देव
माय बेनिया डोलाय

उठबय गेलखिन्ह चन्द्रमा बहिनो
उठू भैया भएगेल भोर
हमे कोना उठियौ हे चन्द्रमा बहिनो
आजु जाँचुक बेर

सत्तीके सत्त हम जाँचब
आजु धिरे धिरे आएब
पापीके सत्र भँगठायब
आजु जाँचक बेर
काँचही बाँसके मन्दिरबा
कञ्चन लागल केबाड
ताही पैसी सुतलनि सुरुज देव
माय बेनिया डोलाय

उठबय गेलखिन्ह चन्द्रमा बहिनो
उठू भैया भएगेल भोर
हमे कोना उठियौ हे चन्द्रमा बहिनो
आजु जाँचुक बेर

सत्तीके सत्त हम जाँचब
आजु धिरे धिरे आएब
पापीके सत्र भँगठायब
आजु जाँचक बेर
३. छठि व्रतक कथा
एक समयमे नैमिषारण्यमे सर्वशास्त्रज्ञ शौनक मुनि सूतजी सँ जिज्ञासा कयलनि¬ एहि पृथ्वीपर जे लोक सब तरहक रोग सँ ग्रस्त अछि, ककरो सन्ताने नहि होइत छैक, त ककरो पुत्र अल्पायुमे मरि जाइत छैक तकरा लोकनिक दुःखक नाश कोना हेतैक ? सूतजी ताहि पर कहब प्रारम्भ कयलनि । ठीक इएह बात सत्यव्रती भीष्म पुलस्त्य मुनि सँ पूछने छलखिन से हमरा बुमmल अछि । ई कथा कहनाहर आ सुननाहर दुनूक पापक विनाश होइत छैक । प्राचीन कालमे एकटा बलवान आ इष्र्यालु दुष्ठ क्षत्रिय राजा छलाह । हुनका पूर्व जन्मक पापे कुष्ठ भऽ गेलनि । हुनका यक्ष्मा रोग सेहो धऽ लेलकनि । ओ एहन जिन्दगी सँ मरण नीक बुमिm गेलाह । ठीक ओही समयमे एकटा शास्त्रज्ञ, धर्मात्मा, तेजस्वी ब्राम्ह्ण ओहिठाम पहुँचलाह । राजा हुनका देखि अत्यन्त प्रसन्न भेलाह । हुनक पूर्ण स्वागत सत्कार कएलनि आ विनम्रसँ प्रश्न कयलनि जे हम कुष्ठ आ यक्ष्मा रोग सँ पीडीत छी । कियो पुत्र विहीन छथि । कोनो व्क्तिक सन्तान नहि जीवैत छनि । एहि स्त्रीके पति त्यागि देने छैक । एहि सभ दुःखक कि निदान ? तखन ओ ब्राम्ह्ण विचारलनि जे सुर्यदेव लोकक सब तरहक पापके नाश कऽ ओरोग्य प्रदान करैत छथि । तैं ओ राजा के कहलदिन जे आहाँलोकनि सुर्यक व्रत करैत जाउ अवश्य कल्याण होएत । तखन ओ ब्राम्ह्ण हुनकालोकनिके पञ्चमीक खरनासँ लऽ सप्तमीक प्रात कालक अर्घ( छठि व्रतक पूर्ण विधान ) बुमmौलनि । ओ सब ओही तरहे केलनि तँ सभक क्लेश दूर भऽ गेलनि । तकर बाद एकटा जे एकटा नीक वंशक ब्राम्ह्ण दरिद्र, मूर्ख अविवाहित छलाह ओ एके वर्ष ई व्रत कएलनि तँ ओ अत्यन्त यशस्व ीओ सुखी भऽ गेलाह । ओ राजा सेहो जखन पाँच वर्ष व्रत कएलनि तखन हुनको मन्त्री सब अपनामे विचारि राजा लग आबि हुनका अपन सभक अगुआ बना कऽ सेना लऽ विद्रोहीके मारि भगौलनि आ राजा पूर्वे जकाँ निष्कंटक राज्य करए लगलाह ।
अतः जे केओ ई ब्रत कएलनि सब मनवांछित फल प्राप्त कएलनि । जे केओ ई व्रत कऽ कथा सुनि शक्ति अनुसारे कथावाचककेँ दक्षिणा देती तिनका सब तरहक क्लेश दूर भऽ जेतनि ।
कथा सुनलाक बाद पूजित देवताके प्रणम कऽ विसर्जन कऽ ब्राम्ह्णकेँ दक्षिणा आ प्रसाद दऽ व्रती पारण करथि ।


४. छठि व्रत करबाक विधान
छठि व्रत सप्तमी युक्त षष्ठीमे कायल जाइत आछि । सुर्यक पहिल अर्घ ओहि दिन देल जाइत अछि जाहि दिन उदयकालमे कनिओ काल षष्ठी पडैत छैक । तहिना उदय कालमे कनिओ काल सप्तमी रहला पर दोसर अर्घ देल जाइत अछि । छठि पावनिमे सुर्य भगवानक पूजा कायल जएबाक कारणे साँमmमे षष्ठीमे पहिल अर्घ आ प्रत काल सप्तमीमे दोसर अर्घ देल जाइत अछि । जे वस्तु साँमmमें अर्पित काएल जाइत अछि सएह भिनसरमे सेहो । आरोग्य लाभ एहि व्रतक मुख्य उद्देश्य अछि ।
छठि व्रत कयनिहर सब चौठके नहा कऽ अर्वा¬अर्वाइन खाइत छथि , पंचमी दिन दिनभरि उपवास राखि सायंकाल नव चूूल्हि पर नव कोहामे अरबा चाउरमे गूड दऽ पायस बनबैत छथि तकरा डालीक अनुसार अथवा एके ठाम उत्सर्ग कऽ अपनो खाइत छथि आ प्रसादो बँटैत छथि । षष्ठी दिन व्रत कएनिहार सब साँमmुक पहर नित्यक्रिया सँ निवृत्त अर्घ देबाक रहैत ततेक डाली, सूप वा ढाकनमे अर्घ सामग्री जेना¬ ठकुआ, भुसवा,केरा, फ, फूल, पान, सुपारी, धूप, दीप, अँकुरी जुटालैत छथि ।
पवनैतिन सब एहि मन्त्र सँ संकल्प लैत छथि¬ “नमेऽद्य कार्तिक मासीय शुक्ल पक्ष्ीय पाष्ठम्यां तिथौ ( अपन गोत्रक नाम लऽ क) जनम¬जन्मान्तरार्जित ज्ञाताज्ञात कायिक वाचिक मानसिक सकल पाप कामावाप्ति¬काम अद्य प्रातश्च सूूर्यायार्घमहं दास्ये ।” तखन अक्षत लऽ¬“ नमो भगवन सूर्य इहागच्छ इहतिष्ठतः ,कहि सराइमे अक्षत राखि जल लऽ¬ “एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पूूनराचमनीय नमो भगवते श्री सूर्यनारायणय नमः कहि जल चढा फूलमे लाल चानन लगा, लाल फूल, दूबि, अक्षत पकवान सहित जल लऽ सूर्य के देखैत नमोस्तु सुर्याय नमः ।” कहि सब डाली उत्सर्ग कऽ घर चल अवैत छथि आ पुनः सब सामान उत्सर्ग कऽ कथा सुनैत छथि ।




६. सूर्यदेवता के अनेक नाम
सूर्य, दिनमान, अंजिष्ट, अंघकारी, अंबर मणि, अंबरस्ष, दिनमाली, दिनेश, दिवाकर दिवा, अंशुघर, अंशुमाली, अकूरवार, अग, अदिती, देवमणि, धुपति, युमणि, घाम, नग, नभोमणि, सुत, अन्नपति, अरणि, अरविंद बंधु, अरुण, पद्मकारी, पद्मपाणि, पद्मबंधु, पद्रमिनी, कांत, अरुण, सारथि, अर्यमा, अहमणि, आकाश, पावक, पुष्कर, पूषा, प्रकाशात्मा, प्रजापति, पथिक आदितय, उष्णरश्मि, ओषधि, गर्भ, प्रधोत, प्रभाकर ,भानु, भास्कर मणि, कपिंजल ,कमलबंधु, कमलिनि कांत, कमलिनी कुल वल्लभ, करमाली कर्मसाक्षी, कवि, कालचक्र, किरण पणि, खग ,खतिलक, खधोत, खेचर , गगण विहारी, गगन मणि, गोपति, ग्रहपति, चंडरश्मिी, चित्रभानु, जनचक्षु, जिवितेश, ज्योतिक्ष्मान, ज्वालमाली, तपनांशु, तरणि, तीक्ष्णंशु, त्रिलोकेश्वर, दिनकर, दिनकांत, दिनपति, दिनमणि, मरीचिमाली, मरीची, मार्तड, मित्र, मिहिर, मेह, मैत्रेय, यज्ञेश, यमुना जनक, रवि, रित, लोक, बंधु, वरुण, विभाकर, विभावसु ,वेदोय, सप्ताश्व, सविता, सवितृ, सहस्त्रांशु, सांवत्सर रथ, सुर, सुरोत्तम, सुरज, सूरि, सूर्यनारायण, सोमबंधु, स्वणरिता, हंस, हरिवाहन, हिरण्यरेतिा, हेलिर ।

मनोज झा मुक्ति

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