Monday, August 9, 2010

कि मात्र खसे'नेपाली' भाषाक लेल अछि प्रज्ञा प्रतिष्ठान ?

 
                                       
    २२ जुन १९५७ ई.मे तात्कालिन शाह वंशिय राजा महेन्द्रद्वारा भाषा,साहित्य, कला, संगीत, नाटक एवं संस्कृतिक संरक्षणकलेल नेपाल साहित्य कला एकेडमीक नामसँ स्थापना भऽ ३ मार्च १९५८ ई. मे पुनः नेपाल राजकीय प्रज्ञा प्रतिष्ठान अर्थात नेपाल एकेडमी नामाकरण कएलगेल एहि एकेडमीसँ देशमे रहल ९२टा भाषा मध्ये मात्र नेपाली भाषाक ,साहित्य, कला, संगीत, नाटक एवं संस्कृतिक विकासलेल काज होइत आएल अछि ।
राजनीतिसँ जकडागेल एहि प्रतिष्ठानक सम्बन्धमे  विद्वान लोकनि दुःखित छथि । अवधि भाषानुरागी  एवं लेखक दिजग्वजय मिश्र, प्रज्ञा प्रतिष्ठानमे अवधि भाषी विद्वानके जगह नई भेटवामे राजनीति आ अवधि भषाप्रति भेदभावक संज्ञा दैत छथि ।  दिजग्वजय मिश्र मात्र नहिं, नेपालक बहुत भाषाभाषीके संग पहिनहिंस प्रतिष्ठानक रवैया भेदभावक रहैत आएल अछि ।
     प्रज्ञा प्रतिष्ठान अपना स्थापनाक ४२ वर्षक आयुमे लगभग पच्चिस सालसँ निरन्तर पुस्तक छपवैत आएल अछि । आ ओहो मात्र राज्यद्वारा संरक्षित नेपाली भाषाके । एहि पच्चिस वर्षमे प्रतिष्ठान प्रतिवर्ष २०सँ२५टा पुस्तक निकालैत अछि । जौं एहि संख्याके मानी त अखनधरि लगभग एतसँ पाँचसय पुस्तक बहराएल अछि । नेपालमें मैथिली भाषा भाषीक संख्या नेपाली भाषीकवाद दोसर रहितो, सरकारी उपेक्षाक कारण एतेकवर्षमे नेपाल एकेडमीसँ मैथिलीके मात्र ११ टा पुस्तकक प्रकाशन भऽ सकल अछि । जकरा वर्तमानक मैथिली भाषी प्राज्ञ रामभरोस कापडि स्विाकारैत छथि । हुनका अनुसार एहिसँ पहिनुका मधेशमूलक प्राज्ञसब साहित्य विधासँ प्रत्यक्ष जुड़ल नई रहवाक कारणे मैथिलीपर विषेश काज नई होबऽ सकल । ओ कहैत छथि,‘पहिनुका समयमे ओहन वातावरण नईं छल ताहु कारणे मैथिलीके अपहेलनाक शिकार होमऽ पड़ल, मुदा हम प्रयासमें छी ।’
 परम्परागत शैलीमे अपना कार्यक्रमके प्रस्तुत करैत आएल एकेडमी, आन आन भाषाक नव साहित्यकारकलेल अभिषापे जकाँ बनल अछि । पहिनहीसँ एकेडमीक कार्यक्रममे सहभागि होइत आएल साहित्यकार,कविके कोनो कार्यक्रममे बजेबाक परम्परा अखनो चलि रहल अछि ।  कहबीए वनिगेल छैक, ‘एकेडमीक नजरिमे साहित्यकार बनवाकलेल या त अपन केश पकाव परत नई त जीहजुरिया करऽ परत ।’
  ओना भोजपुरी भाषाक कवि आ प्रज्ञा प्रतिष्ठानक प्राज्ञ ,दिनेश गुप्ता कहैत छथि,‘पहिने  मात्र केशपाकलवला, एक बित्ता आँखि भितर धँसल लोकके मात्र प्राज्ञ प्रतिष्ठान कवि या साहित्यकारक रुपमे सम्मानित करैत छल । मुदा आब एहि सोंचमे व्यापक परिवर्तन होेएत, बुढ़क अनुभव आ युवाक क्षमताके सम्मान भेटवाक परम्पराके शुरुवात होयत ।’ प्रतिष्ठानक अखनधरिक रवैयासँ परेशान आन आन भाषीके आव बेसी अफसियाँत नहि होयबाक बात ओ सेहो कहैत  छथि ।
     नेपालमे राजतन्त्रक समाप्तिक आ गणतन्त्र प्राप्तीकवादो प्रज्ञा प्रतिष्ठान अर्थात नेपाल एकेडमी अपन पुरने रंगमे रंगल अछि । आशाकरी नीतिमे परिवर्तन भेलाक बाद एकेडमीक उपकुलपति,प्राज्ञसभ, परिषदक सदस्यसभ एवं कर्मचारीक नीयतिमे परिवर्तन हुए आ नेपाल एकेडमी मात्र नेपालीए भाषाक एकेडमी नईं भऽ देशमे रहल ९२मे ओटा भाषाक सझिया एकेडमी बनय ।

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