Friday, June 10, 2022

प्रदेश नं.२ क नामाकरण : ‘मधेश’ सँ भऽ रहल घात !!


                                             –मनोज झा मुक्ति

देश संघीयतामे चलिगेलाकवाद सात प्रदेशके निर्माण भेल आ सभ प्रदेशमे निर्वाचित सरकार चलिरहल अछि । निर्वाचीत सरकारद्वारा नामाकरण करवाक उद्देश्यसँ तात्कालिकरुपमे प्रदेश चिन्हवाकलेल अंकमे नामाकरण कयलगेल । नीति अनुरुप अधिकांश प्रदेशके नामाकरण भऽगेल त किछु प्रदेशक नामाकरण संस्कार बाँकि अछि । विषेश कऽ प्रदेश नं.२ क नामाकरणमे जाहि तरहें राजनैतिक दलसब अपन विचार प्रस्तुत कऽरहल अछि, ओ अपने आपमे नमूना अछि ।

प्रदेश नं.२ क सभामे राजनैतिक दलद्वारा विभिन्न नाम प्रस्तावित कयलगेल अछि । जसपा,लोसपा आ माओवादी संयुक्तरुपमे ‘मधेश प्रदेश’ नाम प्रस्तावित कयने अछि त नेपाली कांग्रेस ‘मिथिला–भोजपुरा’ आ एकिकृत समाजवादी पार्टी एवम् नेकपा एमाले ‘जानकी’ प्रदेशक नामाकरण करयवाक पक्षमे रहल अछि ।

‘एक मधेश, एक प्रदेश’,‘समग्र मधेश, एक प्रदेश’,‘‘मेचीसँ महाकालीधरि मधेश’क नारा देनिहार आ नारा लगौनिहार जहन १९\


२२ जिल्लाक बदलामे ८ टा जिल्ला मात्रके ‘मधेश प्रदेश’ नामाकरण करवाकलेल चिचिया रहल अछि त आनके कि कहवैक ? 

आठ जिल्लाक भूभागके ‘‘मधेश’’ नामाकरणपर उपजैत प्रश्न ?

ई प्रश्न कठीन अछि, आम लोककलेल । सबल आ विश्वसीय सेहो ।

कि मधेश आन्दोलन मात्र एखुनका प्रदेश नं.२ क आठे जिल्लामे भेल रहै ? जय मधेशक नारा नेपालगञ्ज आ कैलालीमे नई लागल रहै ? त, आब ओ मधेशी रहलै कि नई ? आब ओ जय–मधेश कहतै कि नई ? कहतै त कोन नैतिकतासँ ? ककरा आशमे आ कहियातक कहैत रहतै जय मधेश ?

कि एहि आठटा जिल्लाक मधेशलेल ‘एक मधेश, एक प्रदेश’,‘समग्र मधेश, एक प्रदेश’,‘‘मेचीसँ महाकालीधरि मधेश’क लगायतक नारा देलगेल रहै ? आठ जिल्ला बाहेक मधेशक भूमि जे विभिन्न प्रदेशक नामाकरण वरण कऽलेने अछि, तकरा कोना आहाँ समाहित करवै ? अपनाके मधेशी कहऽमे गर्व कयनिहार विराटनगर, नवलपरासी आ महेन्द्रनगर सहित आठो जिल्लामे रहल मधेशीके विश्वास करऽ योग्य संभावनायुक्त, भिजन आहाँलग की ?

मात्र आठे जिल्लामे ‘‘मधेश’’के सिमीत कऽ मधेश नामसँ घृणा कयनिहारके मनसुवा पुरा करऽमे हीट आइटम डानसर त हमसब नई बनऽजारहल छी ? 

‘‘मधेश’’ नामाकरण किया ?

प्रदेश नं.२ क नाम ‘‘मधेश’’ प्रस्ताव कयनिहारसबक कि मनोदशा ? किछुके कहव छन्हि जे आन्दोलन मधेशके नामपर, जय मधेश के नारापर भेलई, मधेशी शहिद भेलै, कमसँकम मधेश नामाकरण होयतई त मधेशीके एकटा ईज्जत रहि जयतै,मधेश आन्दोलनपर एकटा ठोस पहिचानके मोहर लागि जयतै...लगायतक तर्कसब छन्हि ।

‘‘जानकी’’ नामक पक्षधर होइथ  या मध्य मधेश,मिथिला,मिथिला–भोजपुरा या जनकपुर नामाकरणक पक्षधर होइथ सबके अपने–अपने तर्क छन्हि ।

विचारणीय बात छैक जे मिथिला,भोजपुरा, कोच, अवध,थरुहट सब मिलिकऽ ‘‘मधेश’’ भेल छैक कि मात्र मिथिला आ भोजपुराक किछु भाग मधेश छै ? मधेशके भितर मिथिला,भोजपुरा, कोच, अवध,आ थरुहट लगायतक भूभागक स्तित्व छै कि नईं ?

विनु ऐतिहासिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषिक आदिके व्यवहारिक एवम् वैज्ञानिक विश्लेषण केनहि, अपने सहभागि आन्दोलनके नामो निशान बचवऽलेल ‘‘मधेश’’ नामाकरण करव कतेक उचीत ? अपना पार्टीक नाम आ विधानसँ अक्षरसः ‘‘मधेश’’  शब्दके भौतिक आ वैचारिकरुपमे हटालेने राजनैतिक दलसब ‘‘मधेश’’ नामाकरण मार्फत अपन कोन ईज्जत जोगावि रहल अछि ?

संघीयताक मर्म होइत अछि जे नागरिकके अपन पहिचान सहितक अधिकार भेटओ । ई नई छैक ने, जे जनतासँ चुनायल प्रतिनिधि अपना पार्टीक विवेकहीन, अदुरदर्शी निर्णयके विनु छलफलके, बिनु संवाद केनही आज्ञा पालनक चक्करमे परिकऽ ‘‘मधेश’’ नामक पक्ष पडल किछुलोकके बुझाई छन्हि ।

अधिकांश प्रतिनिधि रहल नेता,कार्यकर्ता अपन विचार बिनु रखने, अपनेसँ बिनु सोचने पार्टीक फरमानपर हुस्से–हुस्से करऽमे लागल अछि त किछुलोकके अपन विचार करवाक क्षमता होइतो एहि झन्झटमे नर्ई परऽ चाहिरहल छथि । नगण्य लोकलग अपन बात रखवाक हैसियते नई छन्हि । आम जनताके विचारक प्रतिनिधित्वसँ बेसी अपन दंभ आ झूठामूठक शानक लेल ‘‘मधेश’’ नामाकरण करयवाक पक्षसब लागल किछुके विश्लेषण छन्हि । किछु त एकरा मधेशवादी कहयनिहार जसपा आ लोसपाके आत्माके तुष्टिकरण आ माओवादी केन्द्रक मधेशके संकुचित करवाक षड्यन्त्रक संज्ञा देवऽसँ सेहो पाछा नहिं छथि । 

पूवसँ पश्चिमधरिक मधेशमे साँस्कृतिक विविधता व्याप्त अछि, जकरा माओवादी स्वीकारैत अपन तात्कालिन संरचनामे व्यावहारिक एवम् लिखितमरुपसँ लिपीवद्ध कयने छल । मधेश आन्दोलन कोनो एकटा व्यक्ति आ एकटा संस्थाक दमपर नई भेल छल । सयकडों वर्ष पहिनेसँ सुनगैत चिनगारी जहन विभिन्न भाषा अभियानी सबहक बल पौलक तहन मात्र धधराक रुप लऽसकल । मधेशक भूभागमे रहल मैथिली,भोजपुरी, अवधी, थारु लगायतक भाषा अभियानी ‘मधेश’ आन्दोलनमे अपन भविष्य देखि आन्दोलनके मजबुत बनवैत गेल । मधेशवादी नेता सबहकसँग भाषा अभियानी सबकेँ पहिने मधेश आ तहन कोचिला, मिथिला,भोजपुरा, अवध आ थरुहटक स्तित्वक स्थापना सन बातचीत बहुतो बेर होइत आएल । फलस्वरुप मधेश आन्दोलनमे सब अभियानी अपन उर्जा समाहित करैत आन्दोलनके सफल बनवऽमे अपन दिनराति लगादेलक । विभिन्न दाओ–पेँचक खेलमे देशमे आएल संघीयतामे जाहि तरहें प्रदेश सबहक निर्माण कयलगेल ओ अपनेमे प्रश्नक कटघेरामे ठाढ अछिए । जहन पहिचानके लिपीबद्ध करवाक बात अबै त कोचिला, मिथिला,भोजपुरा, अवध आ थरुहटक वेइमानी किया ? 

संघीयताक मूल तत्वमे ‘पहिचान’  सबसँ प्रमुख मानल जाइत अछि । देशक आन–आन प्रदेशक जे नामाकरण भेल अछि, सबकेसब अपन इतिहास, संस्कृति आ पहिचानेके नामाकरण मादे स्थापित कयने अछि । मुदा, प्रदेश नं.२ क अधिकांश नेता,कार्यकर्ताक अल्पज्ञान, मूढ बुद्धीक प्रदर्शन जोरशोरसँ भऽरहल अछि । विनु तर्कक तर्क, कुतर्क प्रस्तुत करैत प्रदेश २ के कुसीयार जकाँ छिलल जारहल अछि, अल्हुआ जकाँ सोहल जारहल अछि । प्रदेश नामाकरण करवाकलेल सबपक्षपर विचार करवाक चाही कि नहिं ? प्रदेशमे रहल राजनैतिक दलक नेता÷प्रतिनिधिके आओर प्रदेशमे अपनाओलगेल विधि,प्रक्रिया,आधार सनसन विषयपर त खुलिकऽ विमर्श करवाक चाही कि नहिं ?

नागरिकके हवा मिठाई बाँटऽमे सफल भऽरहल नेता, कार्यकर्ता ‘‘मधेश’’ नामाकरण करवाक तर्क याह सेहो प्रस्तुत करैत छथि जे मिथिला राखु त भोजपुराबला विरोध करत, मिथिला–भोजपुरा राखु त बज्जिका आ मगही बला विरोेध करत त किया नईं ‘‘मधेश’’ नामाकरण कऽदेल जाय ।

कियो नई मानै छै, नईं मानतै ताहिलेल अपना हातमे आयल शक्तिके दुरुपयोग करव, जएह मोन होयत, जाहिमे अपन व्यक्तिगत स्वार्थ पुरा होयत सएह करव कि बुद्धिमताके परिचय होयतै ?

जँ एहन–एहन संवेदनशील विषयपर अपने विचार शून्यताके अवस्थामे चल आबि त जन विमर्श होयवाक संस्कार कहियासँ बैसत ?

हमर कहव कथमपि ई नई अछि जे प्रदेश नं.२ क नाम ‘‘मिथिला’’,‘‘भोजपुरा’’,‘‘मिथिला–भोजपुरा’’,‘‘जनकपुर’’,‘‘जानकी’’ या ‘‘मधेश’’ चाहे ‘‘मध्य–मधेश’’ होयवाक चाही से नहिं अछि । कोनो एकटा नाम अएतै त किछुके विरोध रहवे करतै, किया त एतऽ अपने सोंचव आ विचार करवसँ बेसी हमसब अपन लगानीकर्ता, भाग्यविधाताके आदेश मात्रके पालन कयनिहार बनिगेल छी । जरुरी अछि एहिपर विचार,विमर्श आ पुनर्विमर्श हुए । एतुक्का माटि कि कहैत छैक ? एतुका जनताक भावना कि छैक ? एतुक्का इतिहास आ संस्कृतिक रंग कि छैक ? तकरा व्यावहारिक, राजनैतिक आ वैज्ञानिक विर्मश कइएकऽ कोनो विन्दुपर पहुँचल जाय । जँ, अपन विवेक काज नईं करय त निष्ठापूर्वक जनआकांक्षा लेवाक चाही ।

मात्र ८ टा जिल्लामे रहल प्रदेश नं.२ क नामाकरण ‘‘मधेश’’ ककऽ विशाल मधेशसँ घात त नईं होवऽजारहल छैक ?? भगवती समय अछैते हमरासबके सदबुद्धि देथु ।


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