Thursday, May 7, 2009

हमसब कतऽ छी ?

मनोज झा मुक्ति
देश संघीयतामें जाएब प्रायः निश्चित अछि । सब भाषा—भाषी, जातजाति लोकनि अपन—अपन भषा—सँस्कृतिके जागरण करबामें जुटिगेल अछि । ताही अनुरुप मैथिली भाषीसब सेहो जागृत भेल छथि । मुदा ई एहि तरहक जागृति मात्र देखवामें अवैत अछि जे देखावाधरि बुझाऽरहल होए । मिथिला आ मैथिलीक नामपर किछु भेट जाए या राजनीति करैत रही ताइ तरहक काज मात्र भऽरहल अछि ।

ठीक छई, राजनीति केनाई कोनो खराब गप्प नई मुदा जाहि नामपर राजनीति करैत छी तकरा पूर्णरुपेण बिसरि जेनाई कतेक नीक बात । दोसर केलक तकरा मानब नई आ अपनेसँ करब नई, एहि तरहक सोंच सँ बाँचिरहल, अपनाके मात्र मैथिलीक ठिकदारी लेने जँका बात कएनिहारसबके अपन सँस्कार, अपन सँस्कृतिके याद कोना बिसरा जाइत छन्हि ? æहम नई करब त केओ नई करय, हमही मात्र मैथिलीक अभियानी आ दोसर केओ मैथिलीक काज करय त ढोंगी”, ताई तरहक दरिद्र मानसिकताक लोकसबके देखिकऽ एकटा मैथिलीक पुतके दुःख भेनाई स्वभाविक होइत अछि । प्रसँग अछि २०६६ सालक मैथिली दिवस अर्थात जानकी नवमीके ।

कोनहुँ मञ्चपर या कतौ मैथिली आ मिथिलाक काजप्रति अप्पन एकाधिकार मात्र रहल सन—सन मूर्खतापूर्ण सोंच रखनिहारके कि मैथिल आ मिथिलाके आदर्श, सीता बिसरा गेलनि ? जानकी नवमी अर्थात मैथिली दिवसके अवसरपर खास कऽ काठमाण्डूमें देखलगेल उदासीनता कि ई नई प्रष्ट करैत अछि जे ओ भाषण कयनिहारसब कतेक मिथिला आ मैथिलीप्रति सजग छथि ? ओऽत धन्यवाद देवाक चाही काठमाण्डूक शान्तिनगरमें स्थित मैथिल यूवा क्लवबलाकेँ जे अपन स्थापना कालहिँसँ प्र्रत्येक वर्ष जानकी नवमी अर्थात मैथिली दिवस मनवैत आएल अछि ।

ककरो गारि पढनाई या खोदवेद केनाइ सामान्य एवं सरलबात छई, मूदा केनाई ओतवे कठीन । जौं अपने नई कऽ सकैत छी आ कमसकम करऽवलाके सराहना नई करऽ सकैछी तहन आलोचनो त नई करियौ । हँ, कोनो काजक समीक्षा अवस्य होएबाक चाही जाईसँ आगादिनमे परिपक्वता अवैक, किया त कियो पेटेसँ सबकिछु सिखिकऽ नई आएल रहैत छैक ।
ओना हमरा सभमे एकटा अवगुण यहो अछि कि जे कियो भाषण करैत छथि हुनकरबात हमसब एक्कहीवेरमे स्विकार कऽलैत छी । हमसब कहियो ई बुझबाक कोशिश नई करैत छी जे ओ भाषण देनिहार अपना जीवनमे कतेक ताई बातके पालना करैत अछि ? संस्कार, सभ्यता आ सँस्कृतिके भाषण देबहीटा मात्रसँ ककरो नेता या अभियानी मानि ली ? या हुनकर काज एवं हुनकर जीवन पद्धतिके सेहो देखनाई जरुरी छई ? कि देशमें गणतन्त्र एहिलेल मात्र आएल छई जे जकरा जे मन लगै बजैत रहय, लिखैत रहय ? जौं वास्तविकरुपमे हमसब, खासकऽ मैथिल यूवासब ताहि तरहक प्रवृति रहल लोकके खुलेआम, सबहक बीचमें उदाङ्ग नई करबै त एहि तरहक ठग प्रवृति रहल लोकके मनोबल बढैत—बढैत समाज आ देशके मटियामेट होएव निश्चित अछि । æहम ई केने रही, हम ओ केने रही” ई माला मात्र जाप क कऽ अपन बराई अपने करबाक प्रवृतिके अन्त जाऽधरि नई होएत विशेष कऽ मिथिला आ मैथिलीक समृद्धि असम्भव अछि ।

एकर मतलव ई नहिं कि काज कयने लोकके सम्मान नई भेटवाक चाही से, जे कियो मिथिला आ मैथिलीकलेल कनियोटा काज केने छथि ओ सम्मानक पात्र छथि आ जे केओ कोनो छोट या पैघ काज मिथिलाकलेल करताह ओहो सम्मानक पात्र होएताह । æहम जौं कोनो तरहक नीक या खराब काज करब त ओकर सम्मान या दुत्कार हम अपने नई कि इतिहास करतै” ताईबातके मनन कऽ बुझनाइ जरुरी भऽ गेल अछि ।

जानकी या मैथिलीके अपन जननी, अपन प्रेरणाक श्रोत कहैत हमसब नई थकैत छी, मूदा सीता जयन्तिमे जानकीके हमसब बिसरि जाइत छी । जौ वास्तविकरुपमे आहाँ मिथिला आ मैथिलीक हितैषी छी त नयाँ मैथिल पुस्ता जिनका अपन सँस्कृतिके सम्बन्धमे नईं बुझल छन्हि हुनका बुझेवाकलेल, आन—आन समुदायक लोकमे अपन सँस्कृतिक महानता देखयवालेल हमरासबके पहिने अपना सभ्य आ सुसँस्कृत भेनाइ अति आवश्यक अछि । मिथिलाके प्र्रत्येक पावनि—तिहार, दिवस—समरोहके खुलारुपसँ मनावहिटा परत, जौं अपनाके अभियानी या मिथिलाक ठिकदारके दावी करैत छी तहन ।

एकटा सर्वसाधारण मैथिलके अपना राजीएरोटीसँ फुरसति नई छई आ ओसब अपना आपके ठिकदारो रहल दावी नईं करैत छथि । बातेसँ नईं अपन जीवनशैली आ अपन काजसँ देखावऽ परत जे कोन—कोन कारणे मिथिलाके अनदेखी कऽ कोनो सरकार या समुदाय नई जाऽसकैया ।

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