Sunday, July 5, 2009
कि अछि ई चारि वर्ण आ छत्तिस जातिक फूलवारी ?
ध्रुव महतो
नेपालमे शाहवंशीय राजतन्त्रक आरम्भ पृथ्वीनारायण शाहसँ भेल अछि । वएह नेपालके एकिकरण कएने रहथि, ताहिसँ हूनका राष्ट« निर्माता सेहो कहल जाइत छन्हि । राष्ट« कहलासँ जनतेके बुझल जाइत छैक । ताहिसँ नेपालीजनताके एकिकरण केनाइए नेपालक एकिकरण केनाइ अछि । प्रश्न स्वभाविक अछि कि कोन आधारमे, केना ओनेपालक एकिकरण केलथि ?
वास्तवमे पृथ्वीनारायण शाह बाहुवली रहथि जे अपन बाहुवलक आधारमे नेपाली जनताके एकिकरण कऽ नेपालराष्ट«केँ एकिकरण कएने रहथि । एकिकरणकबाद अपनाके ताई राज्यक राजा घोषित कएलथि आ अपनाद्वाराकहलगेल हरेक बातके कानून जकाँ मानवाक आ मनेवाकलेल सऽभके बाध्य कएलथि, विवशता वस सबके मानहिंपड़लनि । आखिरमे एकटा विवश मनुष्य कइये कि सकैय ? आब शासन करबाकलेल एकटा शासन प्रणलीकआवश्यकता होएब स्वभाविके छल । एहि सन्दर्भमें ओ विचार केलनि कि जौं मनुष्य विभेद रहित भऽजाएत तबाहुवलक आधारमें शासन करब कठीन होबऽसकैय, किया त अखन बन्दुकक डरसँ सबकियो हमर आदेश मानत, मुदा आगामी दिनमें प्रजासब अपन वास्तविक अस्तित्वकेँ बुझलाकबाद एकजुट भऽजाएत तखन बन्दूकक बलपरशासन चलाएब कठीन भऽ सकैय ।
अन्तोगत्वा ओ निर्णय केलथि कि जनताके विभेद रहित बनेनाई मूर्खता अछि, वरु छिन्न—भिन्न कऽरखलाकबादे हमर बाहुवलक शासनक समय किछुए दिनकलेल ‘पशुपतिनाथ’क कृपासँ टिकाऊ रहत । एहि भयककारणसँ हमसब नेपालीक एकताक प्रतीक ओहि शाहवंशी राजसब कहल करैत छल जे ‘पशुपतिनाथले हामीसबैको कल्याण गरुन्’ । ताहिसँ ‘डिभाइड एण्ड रुल’ अर्थात ‘फूटाउ आ राज करु’ के राजनीतिक प्रणली नेपालीजनताक उपर थोपव स्वभाविके छल आ ताही मनसायसँ प्रजाके सम्बोधन करैत कहलनि कि ‘हाम्रो नेपाल चारवर्ण र छत्तीस जातको फुलवारी हो’ मुदा ताहि समयक नागरिकसब एहि वाक्यक रहस्य बुझऽनईसकलाक बादोसुनिकऽ सब प्रसन्न भऽगेलथि । अखन सेहो प्रायः नेपालीसब एकर अर्थ बिनु बुझने प्रसन्न भेल करैत छथि ।
‘भुजवल विश्व वस करि राखेसि कोउ न स्वतन्त्र ।
मण्डलीक मनि रावण राज करइ निज मन्त्र ।।
रावण त्रmोध अनल निज स्वांश समिर प्रचण्ड ।
जरत विभिषण राखेउ दिन्हेउ राज अखण्ड ।।’
पृथ्विीनारायण शाहसँ पूर्व, प्राचीन कालमे महाराजा मनु व्यवस्था केलनि— किछु लोकके पढाइ—लिखाइ आनियम बनेबाक काजमे नियुक्त केलथि, जकरा ब्राम्हण कहलगेल, किछुके हात—हथियार संचालन आ सुरक्षाकरबाक जिम्मेवारी देलनि जकरा क्षत्रिय कहलगेल । किछुके धन—सम्पति संग्रह आ खाद्य पदार्थक आपुर्तिकरवाक काजमे लगाओलगेल जकरा वैश्य कहलगेल आ एहि सबहक सेवामे नियुक्त काएलगेल लोकसबके शुद्रकसंज्ञा देलगेल ।
अतः मनुष्य—मनुष्यक बीचमे भयंकर घृणाक भावना फैलयबाक काज पृथ्वीनारायण शाहसँ सेहो पूर्वहिं कालसँस्मृतिसब करैत आएल छल एवं पृथ्वीनारायण शाहक कार्यकालमे जाति प्रथाक जड़ि नीकजकाँ पसरिगेल छल ।वास्तवमे जन्ममे आधारित जातिप्रथा स्मृतिएसबहक देन होइतहुँ ‘चारि वर्ण आ छत्तीस जातिक फुलवारी नेपाल’ कहिकऽ पृथ्वीनारायण शाह आ हूनक वंशजसब एकरा अनुशरण करैत जाति प्रथाके मजबुती दैत आएल अछि ।
सऽभ स्मृतिसब महाभारत कालकबादे लिखलगेलाक कारणें जन्ममें आधारित जातिप्रथाक उत्थान सेहो महाभारतकालक बादे भेल मानल जाऽसकैय । ताई स्मृतिसबमें मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति आ पराशर स्मृति समाजमेबेसी प्रचलीत अछि । इतिहासक विद्वानसब कहैत अछि कि महाभारत कालसँ अखनधरि ने कोनो मनु नामक राजाभेल, न गौतमबुद्धक वाद याज्ञवल्क्य नामक रिषी ।
मौर्यवंशक अन्तिम सम्राट वृहद्रथक मृत्युवाद हूनक ब्राम्हण सेनापति पुष्यमित्र शूंगक शासन कालक उदय भेल ।पुष्यमित्र शुंग, भगवान बुद्धक सिद्धान्त सबकेँ खण्डन करैत जन्मेसँ निर्धारित ब्राम्हणसबहक पूज्यतामे आधारितचार्तुवण्र्य व्यवस्थाके स्थापित कएलथि । धर्मशास्त्रक नामसँ स्मृतिसब ताहि समयमे प्रतिष्ठित भेल धर्मक दायित्वआचार्य गुरुसबके ताहि समयसँ देलगेल ।
पृथ्वीनारायण शाहक कार्यकालमें हूनक चारुकात फैलल घृणस्पद वंशावलीक सूचक लाखो—करोड़ो नामक, व्यवसायसबहक परिचायक छल । धर्मक परिचायक नहिं छल । ताइ लोकसबके अस्पृश्य घोषित करबाक धर्मकदायित्वलेने ओ धर्माधिकारीसब, न्यायाध्यक्षसब आ हूनकासबद्वारा प्रदत्त स्मृतिजन्य व्यवस्थासब जाहि अनुसाररहन—सहन एवं जीवन यापन करबाक काजकेँ धर्म कहल जाइत छल । जकरा ‘चारि वर्ण आ छत्तिस जातिकनेपाल’ कहि पृथ्वीनारायण शाहसँ अखनधरि हूनक वंशजसब सिञ्चित कएलनि । ओ राजतन्त्र आब नई अछि, समाप्त भऽगेल । अतः हीन भावनाके सूचीत करऽवला आदिवासी, जनजाति, दलीत, चमार, डोम, कोल—भील, केवट, कहार इत्यादि....जकर कोनो आधारे नहि अछि, ई आधारे नई रहल उपाधीसबसँ आइयो सटल रहबाकऔचित्य कि ? ई बहुत पैघ गल्ती अछि, अभिशाप अछि । कियाकि यहि प्रकारसँ सटल रहब त राजतन्त्र परिवर्तनभेलाक बादो जातीय पहिचानसबहक आधारमे नेपालीक फेर शोषण होएबाक संभावना अछि । अतः हमरासब उपरथोपलगेल एहि जातीय उपाधिसबके त्याग कऽ अपन वास्तविकतासँ जूड़ी, इतिहासक मुख्यधारासँ जुटी ।
अखन अपना नेपालमे एकटा प्रश्न एकदम ओझराएल अवस्थामें अछि, जाहिसँ सबकियो डेरायल अछि आ ओअछि—‘जातिप्रथा’ । चारि जाति आ छत्तीस वर्णक फूलवारी नेपाल अखन चारि जाति आ छत्तिस चूर्णमें परिणतभऽगेल अछि । जातियताक बात लऽकऽ देश विखण्डन होएबाक खतरा बढि रहल अछि । विविध जात—जातिसबजातीय राज्यक माँग जोड़दाररुपसँ उठाऽरहल अछि त जातीय आरक्षणक माँगसँ नेपाली आकाश गुञ्जयमानभऽरहल अछि । प्रमुखरुपमें नेकपा माओवादी जातीवादके उठवैत देखापड़ि रहल अछि त आन—आन पार्टीसब सेहोअपनाके एहिसँ अछुत नई रखने अछि । जातीवादक बात लऽकऽ दँगा सेहो होइत रहल अछि, एकटा मनुष्य दोसरमनुष्यकेँ खुन पिपासु बनल अछि, किया ? किया त, प्रकृति सदैव अपनाके सर्वश्रेष्ठ रहल प्रमाणित करैत आएलअछि, एकटा भाई दोसर भाइसँ लड़ैत आएल अछि । एहि तरहक जाती—गुटबन्दी अज्ञान आ अविवेकसँ उत्पन्नहोइत अछि ।
एकरे परिणाम अछि कि सम्पूर्ण नेपाल लाल—कारी, उज्जर—पियर रंगमें बाँटल अछि । एक दोसरके दमनकरबाकलेल हात—हथियार जम्मा करबाक होड़बाजीमें लागल अछि । शीतयुद्धक वातावरण बनल अछि । ई युद्धकहियो जाति आ जमीनकलेल होइत अछि त कहियो व्यवसाय आ आकृतिक लेल, मुदा युद्ध निश्चित रुपसँ होएबेटाकरैत अछि, होइते रहत । एहि युद्धक कारण जाति—पाति, उँच—नीच, छुवा—छुत इत्यादि मनुष्यकेँ अन्तःकरणमेरहल राग आ द्वेष आदि प्रकृतिजन्य विकार सबहक देन अछि । मुदा यहि युद्धके धर्मक सँग कोनो सम्बन्ध नहिअछि ।
आई चारि वर्ण आ छत्तीस जातिक चूर्ण नेपालमे जातिवादक नहि अछि ? सब जातीवादी बनिगेल अछि । कियात— जाति, सम्प्रदाय, भाषा आ क्षेत्रिय संकिर्णतासबकेँ आधार बनाकऽ चुनावमें टिकट देल जाइत हछि , ताहिजातिक लोकसबके चुनाक प्रचारमे पठाओल जाइत अछि आ हुनकेसबसँ प्रभावित भऽ हमसब अपन भोट सेहो दैतछी । कर्मचारीसबहक नियुत्तिmमें सेहो कि हमसब जातिवादसँ अपरिचित छी ? मुदा ई मात्र कहलाधरिसँ होबऽवलानहि अछि, अपितु व्यवहारमे लागु करबाक बात अछि ।
हमसब कहैत त छी, मुदा अपना व्यवहारमें लागु नई करैत छी । तहन दोष ककरा देवै ? एकरालेल दोषीहमही—आँहाँ छी, जेकरा हम—आँहाँ कहियो सरकारक आरक्षण नीतिमे तकैत छी, कहियो जातीय राज्यकनिर्माणमें तकैत छी त कहियो एकरालेल धर्मके दोषी कहैत छी । ओना त धर्म शास्त्रसबमे कोनो एकौटा एहन श्लोकनहिं अछि जे भगवानद्वारा मनुष्यकेँ विभाजन काएलगेल हुए, उँच—नीच, छुत या अछुत बनाओलगेल होए ।जातीवादकलेल दोष ओ व्यवस्थाकारसब सेहो नहि अछि जे अपना समयक समाजक संचालनकलेल जातीवादसँसम्बन्धित कानूनसबके संरचना कएलनि । वास्तवमे कहल जाए त हमरे—आँहाँक दोष अछि जे अखनोजातीवादके मानैत छी ।
सत्य कि अछि से बेगर जननहीं डिंगँ हँकैत रहैत छी । सम्भवतः याह हमरा आँहाँके फोकटिया डिंगँ देखिकऽपृथ्वीनारायण शाह सोंचलथि जे नेपाल त चारि वर्ण आ छत्तिस जातिक फूलवारी अछि, जकरा नामपर शासनकरब उपयुक्त रहत । ताएँहेतु अपना समयक ओहि समाजिक व्यवस्थाकारसबकेँ गारि देबऽसँ नीक अपनामे सुधारकरब सबहकलेल उपयोगी भऽ सकैय ।
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